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ख्वाबों का किक : अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए फुटबॉल में झारखंड की ये महिलाएं दिखा रही हैं दम

झारखंड की महिलाएं अधूरे ख्वाब को पूरा करने के लिए इतनी व्यस्तता के बावजूद फुटबॉल में पावर किक जमा रही हैं. विशेष बात है कि इन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का एक बेहतरीन मंच भी मिल चुका है.

Jharkhand News: नाम अनीता भेंगरा. उम्र 24 वर्ष. पेशा खेतीबारी. विवाहित हैं. दो बच्चों की मां भी. शौकिया फुटबॉल खेलती हैं. पति सुरेश भेंगरा एचइसी में कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं. अनीता कहती हैं : दूसरों को फुटबॉल खेलते देखा, तो इसमें रुचि जागी. पिछले रविवार को बीच में ही मैच छोड़ कर बाहर निकलना पड़ा. कारण था : छह महीने का बेटा, जो भूख से रो रहा था. अनीता पहले बेटे को दूध पिलाती हैं, फिर पूरा मैच खेलती हैं. यही कहानी ममता देवी, किरण देवी, सुशीला देवी, पुष्पा कच्छप, अंश कच्छप, नागी मुंडा, एलिशबा बाखला की भी है. खास बात है कि सभी माताएं हैं. कोई एक, तो कोई दो बच्चों की मां हैं.

मातृ शक्ति फुटबॉल टूर्नामेंट में इस बार 360 माताएं खेल रहीं

सभी मेहनत-मजदूरी करती हैं. सभी घर-परिवार और मेहनत-मजदूरी के बीच संतुलन बनाते हुए बचपन के सपने को साकार कर रही हैं. कभी फुटबॉल खेलना इनका ख्वाब था. उसी अधूरे ख्वाब को पूरा करने के लिए इतनी व्यस्तता के बावजूद फुटबॉल में पावर किक जमा रही हैं. विशेष बात है कि इन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का एक बेहतरीन मंच भी मिल चुका है : मातृ शक्ति फुटबॉल टूर्नामेंट. इसमें 20 से 36 साल तक की महिलाएं शामिल होती हैं. इस बार 360 माताएं खेल रहीं.

महिलाओं को एकजुट करना है उद्देश्य

‘प्रतिज्ञा’ संस्था के सचिव अजय कुमार ने बताया कि 2018 में मातृ शक्ति फुटबॉल टूर्नामेंट नाम से स्पोर्ट्स फॉर डेवलपमेंट (एस4डी) नाम से एक पहल शुरू की. यह विशेष रूप से माताओं का फुटबॉल टूर्नामेंट है. इसका उद्देश्य महिलाओं को एकजुट करना और जीवन में खेल की भूमिका को लेकर जागरूक करना है. इसकी शुरुआत जगन्नाथपुर में हुई. फिर खूंटी के आदिवासी बहुल गांव चंदापारा में भी शुरू हुआ. पहले वर्ष टूर्नामेंट में छह टीमों (90 माताओं) ने हिस्सा लिया और बचपन के अधूरे सपने पूरे किये. 2019 में टूर्नामेंट के लिए 24 टीमों ने रजिस्ट्रेशन कराया. दूसरे सत्र में 360 माताओं ने भाग लिया. फिर कोरोना के कारण दो वर्ष टूर्नामेंट नहीं हुआ, लेकिन इस वर्ष एक बार फिर माताएं पूरे उत्साह के साथ टूर्नामेंट में हिस्सा ले रही हैं.

डर, शर्म और बाधाओं को पीछे छोड़ दिखा रहीं दम

ये महिलाएं पेशेवर फुटबॉलर नहीं हैं, न ही उनके पास किसी तरह का किट या कोच हैं. महिलाओं ने बताया कि घर से भी उनके खेलने पर कोई पाबंदी नहीं है. पति, सास-ससुर उत्साह बढ़ाते हैं. वे कहती हैं : टूर्नामेंट हार-जीत के लिए नहीं खेलती हैं, बल्कि उनके लिए यह एक ऐसा अवसर है, जो आत्मविश्वास बढ़ाता है. बचपन का सपना पूरा करने का इससे बेहतर अवसर और क्या हो सकता है. सभी डर, शर्म और बाधाओं को पीछे छोड़ कर खेलना इन माताओं का सबसे बड़ा जुनून है.

अभ्यास के लिए एक घंटे पहले उठती हैं, फिट रहने में भी मदद

महिलाओं ने बताया कि शुरू में परिवार, पेशा और खेल में संतुलन बनाना थोड़ा मुश्किल था. इस कारण सभी सुबह एक घंटे पहले उठने लगीं. इससे अभ्यास का भी मौका मिलने लगा. फुटबॉल खेलने से स्वस्थ और फिट रहने में भी मदद मिल रही है.

परिवार के सभी लोगों ने सपोर्ट किया : सुशीला तिर्की

खूंटी की सुशीला तिर्की के पति आर्मी में हैं. सुशीला ने बताया कि जब वह मिडिल सरकारी स्कूल में पढ़ती थी, तभी खेलती भी थीं. हाइस्कूल स्तर पर हॉकी और फुटबॉल खेलने का मौका मिला. इंटर कॉलेज में फुटबॉल से ज्यादा वॉलीबॉल खेलने का मौका मिला. 26 साल की उम्र में शादी हो गयी. अब पति समेत पूरा परिवार फुटबॉल खेलने के लिए सपोर्ट करते हैं.

खेलने के लिए पति भी प्रोत्साहित करते हैं : ममता

हलदामा की ममता टोप्पो बताती हैं : बचपन में स्कूल और घर के आसपास के मैदान में खेलती थी. हाइस्कूल में एनसीसी ज्वाइन करने पर शूटिंग में भी हाथ आजमाया. शादी के बाद यहां फुटबॉल खेलने का अवसर मिला. पति मजदूरी करते हैं, लेकिन कभी मना नहीं किया, बल्कि हमेशा प्रोत्साहित करते रहते हैं. एक बच्चा भी है, तो अगले साल फरवरी में दो साल का हो जायेगा.

बचपन के शौक को पूरा करने का मौका मिला है : अनीता

स्कूल में फुटबॉल होता था. लड़के-लड़कियों को खेलते देखती, तो मुझे भी खेलने का मन करता था. शादी के बाद बचपन के इस शौक को पूरा करने का मौका मिला. अब तो अभ्यास के लिए सुबह जल्दी उठती हूं. अभ्यास के बाद घर का काम खत्म करती हूं. यदि कोई काम अधूरा रह जाता है, तो उसे पति पूरा कर देते हैं.

अब जाकर हमें खेलने का मौका मिला है : किरण देवी

31 वर्षीया किरण देवी खेती-किसानी कर परिवार चलाती हैं. तीन बच्चे हैं. किरण देवी ने बताया कि बचपन में ईंट भट्ठे में काम करना पड़ा. तब स्कूली बच्चों को कबड्डी, खोखो, फुटबॉल खेलते देखती थी. 20 वर्ष की उम्र में शादी हो गयी. अब खेलने का मौका मिला है, तो बचपन का सपना पूरा कर रही हूं. पति और बच्चे भी अभ्यास में साथ देते हैं.

रिपोर्ट : सुनील कुमार, रांची

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