Prabhat Khabar Special: कभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाह (लाख) के क्षेत्र में रांची के बुंडू की पहचान होती थी, लेकिन अपनी पहचान को बुंडू कायम नहीं रख पाया. आज पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है. रांची के बुंडू सहित पूरे पंच परगना क्षेत्र में लाह के उत्पादन में भारी गिरावट आई है. इस खेती से जुड़े किसानों के रोजगार पर संकट आ गया है. कहा जाता है कि मौसम की मार और प्रदूषण ने लाह के कारोबार को चौपट कर दिया. इससे किसानों के हाथ खाली हैं. लाह किसानों ने सरकार से सहयोग की मांग की है.
कभी रांची जिले में खूब होती थी लाह की खेती
जानकारी के अनुसार तीन दशक पूर्व रांची के बुंडू के किसान लाह की खेती से अच्छी आमदनी करते थे. इस कारण कभी अंतरराष्ट्रीय फलक पर लाह के व्यापार में अपना नाम कमानेवाला बुंडू अपनी पहचान नहीं बचा पाया. 50 साल पहले लाह की खेती रांची जिले में खूब होती थी. पलाश, बैर, कुसूम और पाकड़ के पेड़ों में यह लाह का उत्पादन होता है. लाख की खेती साल में दो बार होती है. एक बार अप्रैल और दूसरी बार अक्तूबर महीने में होती है. इसमें कुसुम की लाह सबसे अच्छी होती है.
Also Read: JPSC Result 2022: सफलता पर बोले अंकित बड़ाईक, झारखंड की शिक्षा व्यवस्था में सुधार पर होगा जोर
40 से ज्यादा थी लाह कोठी
बुंडू के किसान लाह की खेती से होनेवाली आमदनी से खुशहाल थे. सिर्फ बुंडू में ही 40 से ज्यादा लाह कोठी हुआ करती थी, जिसमें लगभग 500 से ज्यादा मजदूरों का यहां काम करने से परिवार चलता था. कच्चे लाख की प्रोसेसिंग कर चपड़ा और चौरी बनाया जाता था. इन दोनों वस्तुओं की अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी मांग थी.
लाह के थे बड़े कारोबारी
बुंडू में काली प्रसाद गुप्ता, खोखा बाबू, हबलू बाबू, शिव भगत, विजया भगत सागरमल शर्मा, केवला प्रसाद उपाध्याय इत्यादि उस समय लाह के कारोबार में बड़ा नाम थे. बुंडू में भारत ही नहीं, विदेशी खरीदार और बिचौलिए बुंडू आते थे. विदेशों में लाह के निर्यात का कारोबार भी खूब चलता था. व्यापारी भी मालामाल थे, लेकिन न जाने किसकी नजर लग गयी. मौसम और प्रदूषण की मार ने किसानों के लाह की फसलों को बर्बाद कर रख दिया. लाख के पेड़ों की टहनियों भी वैसी नहीं बन रही है. अच्छी फसल न होने के कारण इसकी कीमतों में आये उतार-चढ़ाव ने लाह से जुड़े व्यापारियों को बर्बाद कर रख दिया.
Also Read: Jharkhand News: झारखंड के पलामू में नयी नवेली दुल्हन प्रेमी के साथ फरार, FIR दर्ज
लाह किसानों के हाथ खाली
इस वर्ष लाह का फसल एकदम नहीं है. मई महीना लाह की खेती का समय है, लेकिन फसल नहीं है. इसीलिए इस वर्ष लाह के दाम में आग लगी हुई है. एक किलो लाह का दाम अभी 850 रूपये है. लाह की फसल नहीं रहने से किसानों के हाथ खाली हैं. किसानों के हाथ खाली रहने से उसका असर बाजार पर भी पड़ता है. क्षेत्र के किसान लाह की अच्छी फसल के लिए सरकार से भी सहयोग की अपील कर रहे हैं. भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान नामकुम (रांची) से भी सहयोग लिया जा रहा है.
रिपोर्ट : आनंद राम महतो