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कानूनी कौशल बढ़ा कर न्याय को अंतिम द्वार तक पहुंचाये एलएडीसी : न्यायमूर्ति सुजीत नारायण

जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद ने कहा कि एलएडीसी मंथन करें कि वे अपने कानूनी कौशल को कैसे बढ़ाएंगे़

रांची़ झारखंड हाइकोर्ट के न्यायाधीश सह झालसा के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद ने कहा कि कानूनी सहायता रक्षा परामर्शदाताओं (एलएडीसी) की राज्य स्तर पर पहली बैठक हो रही है. इस बैठक में उन्हें मंथन करना चाहिए कि वे अपने कानूनी कौशल को कैसे बढ़ाएं और उनसे कैसे लाभ उठाएं, ताकि कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के उद्देश्य और इरादे को हासिल किया जा सके. उन्होंने कहा कि कानूनी सहायता की अवधारणा वर्ष 1987 में विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम बनाकर आयी है. उस कानून को लाने का कारण यह है कि राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों को कैसे प्राप्त किया जाये और लोगों को न्याय वितरण प्रणाली में लाने के उद्देश्य से अंतिम द्वार तक कैसे पहुंचा जाये. न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद ने उक्त बातें झारखंड विधिक सेवा प्राधिकार के तत्वावधान में एलएडीसी के लिए आयोजित प्रथम राज्यस्तरीय बैठक में कही. मौके पर झारखंड हाइकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आनंद सेन ने कहा कि प्रत्येक जिले के एलएडीसी और डीएलएसए (डालसा) न्याय पाने के हकदार और वंचितों के बीच के अंतर को पाट सकते हैं. न्यायमूर्ति डॉ एस एन पाठक ने कहा कि झालसा का कार्य एवं कर्तव्य वंचित वर्ग को राहत देना है. जिस वंचित वर्ग के पास राज्य द्वारा दी गयी कोई भी सुविधा नहीं पहुंची है, उनकी देखभाल करना झालसा का परम कर्तव्य है. कार्यक्रम में स्वागत भाषण झालसा की सदस्य सचिव कुमारी रंजना अस्थाना ने दिया. कार्यक्रम में चार तकनीकी सत्र हुए. तकनीकी सत्र को न्यायमूर्ति एसएन पाठक, न्यायमूर्ति दीपक रोशन, न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार श्रीवास्तव, आइसीएफएआइ विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ आलोक कुमार, डॉ मिथिलेश पांडेय आदि ने संबोधित किया. झालसा के दो पहल की घोषणा : इस अवसर पर झारखंड विधिक सेवा प्राधिकार ने दो महत्वपूर्ण घोषणाएं की है. पहला वृद्धाश्रम में रहने वाले महिला-पुरुषों को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए छह सप्ताह लंबा अभियान चलाने का निर्णय लिया गया है. वहीं दूसरी घोषणा के तहत झारखंड की जेलों में बंद गर्भवती महिला कैदियों को कानूनी सहायता प्रदान करने की कार्य योजना का शुभारंभ किया गया है.

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