लालकृष्ण आडवाणी की गहरी यादें जुड़ी हैं बिहार-झारखंड से, पढ़ें यह खास लेख
सबसे चर्चित घटना थी आडवाणी की गिरफ्तारी की. 25 सितंबर, 1990 को आडवाणी ने राममंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से यात्रा आरंभ की थी. प्रमोद महाजन साथ थे. 19 अक्तूबर को रथयात्रा बिहार पहुंची.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा की है. यह देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है. आडवाणी का हर क्षेत्र में योगदान रहा है, चाहे भाजपा या देश की मजबूती की बात हो या अयोध्या मुद्दे पर जनसमर्थन तैयार करने का आंदोलन हो. आडवाणी का झारखंड से बड़ा लगाव रहा है और यहां से उनकी कई महत्वपूर्ण स्मृतियां जुड़ी हुई हैं. दो तो खास तौर पर याद किये जाते हैं. 1990 में रथयात्रा के दौरान जब आडवाणी को समस्तीपुर में गिरफ्तार किया गया था, तो उन्हें दुमका के मसानजोर गेस्ट हाउस में रखा गया था. एक संयोग ही है कि आडवाणी को जब समस्तीपुर में 23 अक्तूबर, 1990 को गिरफ्तार किया गया था, तब वहां के जिलाधिकारी आरके सिंह और पुलिस अधीक्षक रामेश्वर उरांव थे. पूर्व आइएस आरके सिंह केंद्र में अभी मंत्री हैं, जबकि पूर्व आइपीएस रामेश्वर उरांव हेमंत सरकार में वित्त मंत्री थे. झारखंड राज्य बनाने में आडवाणी की बड़ी भूमिका रही है. यही कारण है कि जब 15 नवंबर, 2000 को झारखंड राज्य बन रहा था, उस समय राजभवन में शपथ ग्रहण समारोह में खुद आडवाणी भी मौजूद थे.
सबसे चर्चित घटना थी आडवाणी की गिरफ्तारी की. 25 सितंबर, 1990 को आडवाणी ने राममंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से यात्रा आरंभ की थी. प्रमोद महाजन साथ थे. 19 अक्तूबर को रथयात्रा बिहार पहुंची. रांची में बड़ी सभा हुई थी. फिर धनबाद गयी. धनबाद में ही आडवाणी की गिरफ्तारी की योजना थी, लेकिन तब अफजल अमानुल्ला धनबाद के उपायुक्त थे. वहां उनकी गिरफ्तारी से मामला दूसरा रूप ले सकता था. इसलिए गिरफ्तारी टाल दी गयी. पटना होते हुए जब यात्रा समस्तीपुर पहुंची, तो आडवाणी, कैलाशपति मिश्र, प्रमोद महाजन, यदुनाथ पांडेय (हजारीबाग के पूर्व सांसद) और दीनानाथ पांडेय (जमशेदपुर के पूर्व विधायक) को गिरफ्तार कर लिया गया था. गिरफ्तारी के बाद आडवाणी को दुमका से 35 किलोमीटर दूर मसानजोर में सिंचाई विभाग के गेस्ट हाउस में रखा गया था. आज भी मसानजोर गेस्ट हाउस की चर्चा होती है तो आडवाणी को उसी गेस्ट हाउस में रखने की बात भी होती है.
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1988 के आगरा अधिवेशन के बाद से ही आडवाणी अलग वनांचल राज्य के समर्थन में रहे. जब वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, तो अलग वनांचल के लिए आंदोलनों को हरी झंडी देते रहे. 1 से 3 जुलाई, 1988 में जमशेदपुर में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी. तब आडवाणी राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और उन्होंने वनांचल के लिए आंदोलन करने को कहा था. इसके लिए 23 नवंबर, 1988 को रांची में रैली करने का आदेश दिया था. जब रैली हुई तो उसमें भाग लेने के लिए खुद आडवाणी रांची आये थे. यह वनांचल के लिए झारखंड भाजपा की पहली बड़ी सभा थी जिसमें आडवाणी ने कहा था-यहां के लाेगों के नियोजन और क्षेत्र के विकास के लिए वनांचल राज्य की मांग के लिए आंदोलन चलाने का भाजपा ने सर्वसम्मत निर्णय लिया है. बाद में हर बड़े मंच पर झारखंड में आडवाणी वनांचल का समर्थन करते दिखे.
12वीं लोकसभा में दिसंबर, 1998 में जब उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और वनांचल राज्य के लिए विधेयक लाना था तो विरोध हो गया और अंतत: वनांचल विधेयक नहीं लाने का फैसला हुआ. इस घटना के बाद जमशेदपुर की तत्कालीन सांसद आभा महतो संसद की लॉबी में रोने लगी. भाजपा के कई नेताओं ने समझाया लेकिन वह नहीं मानी. जब इसकी जानकारी आडवाणी को मिली, तो वे खुद आभा महतो के पास पहुंच गये और कहा-आभा, मैं आपकी भावना और पीड़ा को समझ रहा हूं, तुम चुप हो जाओ. मैं विधेयक लाने की कोशिश करता रहा, लेकिन कई पार्टियों के विरोध एवं सर्वदलीय बैठक में लिये गये निर्णय के कारण बिल पेश नहीं हो पाये. फिर भी मैं कोशिश करूंगा. आडवाणी के आश्वासन पर आभा महतो समेत झारखंड के सांसदों को उम्मीद बंधी थी. आडवाणी के आग्रह पर दूसरे दिन कैबिनेट की बैठक बुलायी गयी. उसके बाद वनांचल विधेयक को संसद में पेश किया गया था. इसी के बाद झारखंड राज्य का गठन हो सका. इससे स्पष्ट है कि आडवाणी ने झारखंड के बारे में न सिर्फ आश्वासन दिया बल्कि उसे पूरा करने में पूरी ताकत लगा दी थी.