झारखंड में भू-राजस्व अभिलेख समय के साथ अपडेट नहीं किये जा रहे हैं. इससे बैंकों को सरकारी योजनाओं को लागू करने और ऋण देने में परेशानी हो रही है. जमीन खरीद-बिक्री के बाद वास्तविक मालिक की पहचान स्थापित करते समय वित्तीय अधिकारियों को भयभीत होकर काम करना पड़ रहा है. इसका असर भूमि की खरीद-बिक्री पर पड़ रहा है.
साथ ही सरकार को पंजीयन से होनेवाली आय का भी नुकसान हो रहा है. आरबीआइ द्वारा दी गयी जानकारी के मुताबिक, अधिकांश मामले में करेंट टाइटल होल्डर का नाम अब भी वेबसाइट पर स्पष्ट नहीं है. उसका कहना है कि सरकार बैंकिंग सिस्टम में ऐसी व्यवस्था करे, जहां भौतिक सत्यापन और रेवेन्यू ऑफिस जाने की बाध्यता नहीं हो.
शताब्दी के अंत में झारखंड और छत्तीसगढ़ दोनों एक ही समय में अस्तित्व में आये. लेकिन, ऋण जमा अनुपात में छत्तीसगढ़ काफी आगे निकल गया है. छत्तीसगढ़ जिस हाल में बना था, उसमें ऋण जमा अनुपात (सीडी रेशियो) का लगातार विकास हुआ, लेकिन उसकी तुलना में आज भी झारखंड वहां तक नहीं पहुंच पाया है. छत्तीसगढ़ और झारखंड के ऋण जमा अनुपात में 26.39 प्रतिशत का बड़ा अंतर है.
डिजिटल रिकॉर्ड अपडेट नहीं रहने से इसके फिजिकल वेरिफिकेशन में बैंकों का समय बर्बाद हो रहा है. इसके सत्यापन के लिए उन्हें जगह-जगह स्वयं जाना पड़ रहा है. आरबीआइ के नियम 13-2 और 13-4 के तहत लोन एनपीए हो जाने की स्थिति में वास्तविक नाम नहीं रहने के कारण इसके मॉर्गेज में भी परेशानी हो रही है.
छतीसगढ़ : मध्य प्रदेश में 1994-95 से 2001-02 के बीच औसत वृद्धि दर 3.1% थी. छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के बाद 2001-02 से 2011-12 के बीच नये राज्य की औसत वृद्धि दर 8.6% दर्ज की गयी. बाद में छत्तीसगढ़ (2.5%) ने मध्यप्रदेश को (2.0%) को पीछे छोड़ दिया.
झारखंड : 1994-95 से 2001-02 के बीच बिहार की औसत वृद्धित दर 3.6% थी. अलग राज्य बनने के बाद झारखंड में 2001-02 से 2011-12 के बीच औसत वृद्धि दर 6.3% रही. इस अवधि में बिहार में ही 11.4 प्रतिशत की औसत दर से विकास हुआ. इधर, अलग होने के बाद बिहार (2%) के मुकाबले झारखंड ने 2.1% की दर से मामूली वृद्धि दर्ज की.