रांची : नीलिमा निलय ठाकुर ने बताया : वर्ष 2007 की बात है, जब मुझे संगीतकार सुरेश वाडेकर की अजीवासन म्यूजिक एकेडमी के उद्घाटन सत्र में शामिल होने का मौका मिला था. एकेडमी बांद्रा में खुलनेवाली थी़ इसमें शामिल होने के लिए मैं काफी उत्साहित थी, क्योंकि इसका उद्घाटन स्वर कोकिला ‘लता मंगेशकर’ करनेवाली थीं. मैं उनके साथ साक्षात्कार का मौका नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए कार्यक्रम में तीन घंटे पहले यानी शाम चार बजे ही पहुंच गयी.
इस अवसर पर सांस्कृतिक संध्या का आयोजन हुआ. लताजी शाम सात बजे पहुंचीं और सिर्फ 15 मिनट तक रुकीं. इस दौरान लताजी ने कहा था : संगीत कला एक साधना है. इसे रियाज के जरिये ही बरकरार रख जा सकता है़ उनकी यह बातें आज भी जेहन में है. मैं लताजी को अपने सामने पाकर काफी भावुक हो उठी थी़ हालांकि साक्षात्कार का मौका नहीं मिला.
नीलिमा ठाकुर ने बताया : मैं काफी छोटी थी, जब मां लताजी के गाने रिकॉर्डर में सुनाया करती थी. यही कारण है कि छह वर्ष की आयु में पहली बार स्टेज परफॉरमेंस का मौका मिला़ स्टेज पर सिर्फ लताजी के गाने बच्चे मन के सच्चे…, ज्योत से ज्योत जगाते चलो…, तू कितनी अच्छी है, अो मां… गाया करती. इसके बाद उम्र के साथ संगीत की शिक्षा पूरी की.
बड़े मंच पर जब भी गाने का मौका मिला, तो उसकी शुरुआत लताजी के गाने ‘सत्यम शिवम सुंदरम…’ से करती. आज भी इस गाने के साथ ही स्टेज परफॉरमेंस की शुरुआत करती हूं. इनके अलावा लग जा गले…, यूं हसरतों को देख…, तेरा जाना…, बाबुल प्यारे… जैसे गानों को सुनना काफी पसंद है़ इन गानों के जरिये ही मैं रियाज करती, ताकि लताजी की तरह गा सकूं.
जब अपार्टमेंट का दरवाजा खुला तो दोनों बहनें एक साथ खड़ी मिलीं. लताजी के जाने से संगीत जगत में मायूसी है. उनका जाना संगीत प्रेमियों के लिए अपूर्ण क्षति है. पर उनकी यादें, संगीत के प्रति लगन और साधना से मिली सीख संगीत प्रेमियों को हमेशा प्रेरणा देगी. मैं 1990 में मुंबई गयी थी. जानकारों से संपर्क कर लताजी के आवास पहुंची.
लता मंगेशकर और आशा भोंसले एक ही अपार्टमेंट में साथ रहती थीं. जब अपार्टमेंट का दरवाजा खुला, तो दोनों बहनें साथ खड़ी थीं. मैंने प्रणाम किया और संगीत से जुड़ी चीजों को समझा. लता और आशाजी से संगीत के क्षेत्र में बेहतर काम करने का आशीर्वाद लेकर लौटी. अब पीढ़ी दर पीढ़ी संगीत के क्षेत्र में आनेवाले साधकों को उनसे सीख लेने की जरूरत है. लता दीदी का पंच तत्वों में विलीन हो जाना दु:खद है.
जमशेदपुर की रंगकर्मी सीता सिंह की जेठानी नीलम सिंह के स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के साथ घरेलू संबंध थे. नीलम सिंह के पिता लक्ष्मी राम तोमर फिल्म इंडस्ट्री के म्यूजिक डायरेक्टर थे. उन्होंने 1961 में रजिया सुल्ताना फिल्म में म्यूजिक दिया था, जिसमें लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी साहब ने गाना गाया था. गाने के बोल थे- ढलती जाए रात शम्मा परवाने का न होगा फिर साथ. सीता सिंह की रिश्तेदार मीना की शादी में लता दीदी सभी बहनों के साथ शामिल हुईं थी. मीना की शादी म्यूजिक डायरेक्टर आनंद से हुई है.
लता मंगेशकर को क्रिकेट से भी काफी लगाव था़ 1983 में जब टीम इंडिया वर्ल्डकप जीती थी, तब बीसीसीआइ के पास खिलाड़ियों को इनाम देने के लिए पैसे नहीं थे. तब लताजी ने ही कंसर्ट आयोजित कर खिलाड़ियों के लिए पैसे जुटाये थे. वहीं क्रिकेट के मास्टर ब्लास्ट सचिन तेंदुलकर के प्रति भी इनका काफी प्यार-दुलार था. इसके बाद जुलाई 2019 में जब टीम इंडिया वर्ल्डकप से बाहर हो गयी थी, तो महेंद्र सिंह धौनी के संन्यास लेने की खबरें आने लगी.
इन खबरों को देखकर लताजी काफी दुखी हुईं. उन्होंने महेंद्र सिंह धौनी से भी संन्यास नहीं लेने का आग्रह किया था़ इसके लिए ट्विटर पर एमएस धौनी को ट्वीट भी किया. इस ट्वीट में लताजी ने लिखा : नमस्कार धौनी जी ! आज-कल मैं खबरों में देख रही हूं कि आप क्रिकेट से संन्यास लेना चाहते हैं. कृपा आप ऐसा मत कीजिये़ देश को आपके खेल की बहुत जरूरत है. इसके आगे लताजी ने धौनी से प्रार्थना भी की और कि मेरा आपसे यह आग्रह है कि आप रिटायरमेंट का विचार भी अपने मन में मत लाइये.
Posted By : Sameer Oraon