झारखंड के लोगों में खतरनाक स्तर तक पहुंचा सीसा का स्तर, बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर

लंबे समय तक खनिज उत्खनन के कारण वातावरण में मौजूद सीसी का अंश खत्म या कम करने के लिए अब झारखंड में एक हाई लेवल स्टेट टास्क फोर्स का गठन किया गया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 28, 2024 3:29 AM

झारखंड में लेड (सीसा) प्वाइजनिंग बड़ी आबादी के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है. सीसा न केवल छोटे बच्चों में न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का कारण बन रहा है, बल्कि गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य व किडनी सहित अन्य मानव अंगों पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है. लेड की अधिकता से गर्भवती महिलाओं को सांस लेने में परेशानी होती है. साथ ही पाचन तंत्र भी प्रभावित हो रहा है. यह बात भारत सरकार के काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआइआर), नीति आयोग और यूनिसेफ की साझा रिपोर्ट में सामने आयी है. इसमें झारखंड देश में चौथे स्थान पर है. यहां के लोगों में लेड की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है.

खनिज बहुल इलाकों में खून के अंदर सीसा का स्तर 8.15 माइक्रोग्राम-डेसीलीटर से अधिक है, जबकि इसका स्तर तीन या फिर इससे कम होना चाहिए. नीति आयोग की समीक्षा के बाद झारखंड के लोगों में लेड की अधिकता को लेकर चिंता बढ़ गयी है. इस मामले की गंभीरता को देखते हुए नेशनल रेफरल सेंटर फॉर लेड प्वाइजनिंग इन इंडिया (एनआरसीपीएलआइ), बेंगलुरु के निदेशक डाॅ थुप्पी वेंकटेश जमीनी हकीकत जानने के लिए झारखंड आ रहे हैं.

झारखंड में हाई लेवल स्टेट टास्क फोर्स का गठन

लंबे समय तक खनिज उत्खनन के कारण वातावरण में मौजूद सीसी का अंश खत्म या कम करने के लिए अब झारखंड में एक हाई लेवल स्टेट टास्क फोर्स का गठन किया गया है. ऐसे इलाकों में वातावरण में मौजूद लेड सेहत (विशेष रूप से मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य) को कितना नुकसान पहुंचा पाने की कितनी स्थिति में हैं, इसको आधार बनाकर पूरी रिपोर्ट तैयार की जायेगी. वहीं, रिम्स के प्रिवेंटिव एंड कम्युनिटी सोशल मेडिसीन (पीएसएम) विभाग को राज्य संसाधन केंद्र (एसआरसी) बनाया जायेगा. जमशेदपुर के खनिज बहुल इलाकों में दूसरा सेंटर बनाया जायेगा. यह लेड प्वाइजनिंग के लिए राज्य टास्क फोर्स के सचिवालय के रूप में काम करेगा.

टास्क फोर्स में ये हैं शामिल : स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव, एनएचएम के संयुक्त सचिव, अपर मिशन निदेशक, निदेशक प्रमुख स्वास्थ्य सेवाएं, एचओडी पीएसएम रिम्स, नेशनल रेफरल सेंटर फॉर लेड प्वाइजनिंग इन इंडिया (एनआरसीपीएलआइ), बेंगलुरु के निदेशक, केंद्रीय खान योजना के महाप्रबंधक (प्रशासन), सीएमपीडीआइ के जीएम (प्रशासन), कोल इंडिया लिमिटेड सहित संबंधित विभागों के सचिव.

वर्जन

शरीर में लेड की थोड़ी मात्रा भी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है. महीनों या वर्षों तक लगातार एकत्रित हो रहे लेड के कारण लेड प्वाइजनिंग की समस्या हो सकती है. कम उम्र के बच्चों में इस तरह की समस्या से खतरा अधिक होता है. बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है.

डॉ सुमंत मिश्रा, सीनियर एडवाइजर, यू-सैड एसएएमवीइजी

जिन स्थानों पर लेड प्रदूषण अधिक होता है, वहां के लोगों का जीवन भी खतरे में हो सकता है. लेड प्वाइजनिंग सेहत के लिए किस तरह से संकट का कारण बन सकती, इसके लिए कुछ खास जगहों की पहचान कर पीने का पानी, खाने योग्य चीजें, वायु और रक्त नमूनों का परीक्षण किया जायेगा.

डॉ विद्यासागर, एचओडी, पीएसएम, रिम्स

टास्क फोर्स का काम :

स्टेट लेवल टास्क फोर्स राज्य में पीने का पानी, खाने की चीजें, पान-मसाला, चीनी मिट्टी की चीजे, मिट्टी के चमकीले या पॉलिश्ड बर्तन (सिरेमिक ग्लेज), पेंट, पेंटेड खिलौने, बैट्री या धातु से जुड़े निर्माण स्थल (रिसाइक्लिंग) का परीक्षण कर लेड की विषाक्तता का पता लगायेगा.वहीं, संभावित स्रोतों की पहचान कर उसके नियंत्रण और रोकथाम पर काम किया जायेगा. साथ ही शरीर से जमा लेड को निकालने की दिशा में काम किया जयेगा.

पेट्रोल पंप पर बिक रहा सीसा रहित तेल : इंजन नॉकिंग की समस्या कम करने के लिए पहले पेट्रोल में टेट्राएथिल लेड मिलाया जाता था. हालांकि, वर्तमान में झारखंड में ज्यादातर पेट्रोल पंप पर सीसा रहित तेल की बिक्री की जा रही है.

अमेरिका ने मेड इन चाइना खिलौने पर लगायी रोक : अमेरिका ने मेड इन चाइना (मेटल) कंपनी के खिलौने के आयात पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया.

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