पर्यावरण की रक्षा से ही प्राणियों का बच सकता है जीवन : न्यायमूर्ति गोयल
झारखंड न्यायिक अकादमी में पर्यावरण, खान एवं खनिज कानून पर राज्य स्तरीय सम्मेलन
रांची (वरीय संवाददाता). धुर्वा स्थित झारखंड न्यायिक अकादमी में पर्यावरण, खान एवं खनिज कानून पर राज्य स्तरीय सम्मेलन का आयोजन किया गया. सम्मेलन में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एवं राष्ट्रीय हरित अधिकरण के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल मुख्य अतिथि थे. मौके पर न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल ने कहा कि भारत में अनादि काल से पर्यावरण की पूजा की जाती रही है. पर्यावरण की रक्षा से मनुष्य के साथ ही अन्य प्राणियों का जीवन बच सकता है. भारत में अनादि काल से पर्यावरण की पूजा की जाती रही है. पर्यावरण संरक्षण में चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए न्यायमूर्ति गोयल ने कहा कि हम खनिजों का अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं. अवैध खनिज दोहन का कारोबार करीब 126 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. भारत में करीब 351 नदियां प्रदूषित है. विकास परियोजनाओं को शुरू करने से पहले पर्यावरण प्रभाव आकलन शुरू करने की कोई संस्कृति नहीं है. स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा है और साथ ही अनुच्छेद 48 (ए) और 51 (ए) राज्य और नागरिकों पर स्वच्छ और टिकाऊ पर्यावरण बनाये रखने का कर्तव्य बताता है. कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि सह भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एवं राष्ट्रीय हरित अधिकरण के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल, न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद, न्यायमूर्ति आर मुखोपाध्याय, न्यायमूर्ति एसएन पाठक व अनुभा रावत चौधरी, पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने किया. पर्यावरण के साथ हमारे खराब व्यवहार के कारण संतुलन प्रभावित : पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने कहा कि इस दुनिया में हर चीज का मूल आधार संतुलन है, लेकिन दुख की बात है कि पर्यावरण के साथ हमारे खराब व्यवहार के कारण यह संतुलन बुरी तरह प्रभावित हुआ है और इसका परिणाम भारत में 40 डिग्री से अधिक तापमान, लंबे समय तक सूखा और गुणवत्तापूर्ण वर्षा जल की कमी के रूप में दिखाई देता है. झारखंड में जीवन जंगलों से जुड़ा हुआ है और लोग अपने अस्तित्व के लिए जंगलों पर निर्भर हैं. उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि स्वच्छ पेयजल और जलवायु परिवर्तन के बीच सीधा संबंध है और चुनौतियों का समाधान करने के लिए हमें वर्षा जल को संग्रहित करने की आदत डालने की आवश्यकता है. इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता संजय उपाध्याय ने पर्यावरण की पारंपरिक समझ के महत्व पर प्रकाश डाला और उच्च न्यायालयों के निर्णयों को रेखांकित किया, जिसमें नदियों को जीवित इकाई के रूप में बताया गया. इस अवसर पर उच्च न्यायालय के अधिवक्ता इंद्रजीत सिन्हा ने भी विचार रखे. कार्यक्रम में न्यायाधीश और वरिष्ठ अधिवक्ता मौजूद थे.
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