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झारखंड : लिट्टीबेड़ा-रांची एक्सप्रेस वे के भू-अर्जन में गड़बड़ी, आधी जमीन का ही अधिग्रहण

मामले को एनएचएआइ ने भी गंभीरता से लिया है. साथ ही चेटे में बची हुई जमीन को अर्जित करने के लिए 3 (ए) प्रक्रिया करने को लिखा है. इस मामले को एनएचएआइ ने पहले भी कई बार उठाया और रांची के उपायुक्त को पत्र लिखा है

मनोज लाल, रांची :

भारतमाला परियोजना के तहत लिट्टीबेड़ा (ओडिशा) से रांची के सीठियो तक बनने वाले ग्रीन फील्ड कॉरिडोर के भू-अर्जन में बड़ी गड़बड़ी का मामला सामने आया है. रांची के नगड़ी अंचल के मौजा चेटे में अभी तक सिर्फ आधी जमीन के अधिग्रहण की ही प्रक्रिया हुई है, जबकि आधी जमीन को छोड़ दिया गया है. इस वजह से इस जमीन की बड़े पैमाने पर खरीद-बिक्री तक होने की सूचना है. आधी जमीन को क्यों छोड़ दिया गया : सवाल उठ रहे हैं कि जब सड़क निर्माण के लिए जमीन चिह्नित हो गयी है, तो केवल आधी जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया क्यों की गयी और आधी जमीन को क्यों छोड़ दिया गया. सबसे बड़ी बात यह है कि एक ही परियोजना के लिए एक ही मौजा में आधी जमीन का गजट नोटिफिकेशन हो गया और आधी जमीन की नहीं हुआ.

मामले को एनएचएआइ ने भी गंभीरता से लिया है. साथ ही चेटे में बची हुई जमीन को अर्जित करने के लिए 3 (ए) प्रक्रिया करने को लिखा है. इस मामले को एनएचएआइ ने पहले भी कई बार उठाया और रांची के उपायुक्त को पत्र लिखा है. पत्र में कहा गया है कि नगड़ी अंचल के चेटे मौजा के थाना नंबर 256 में कुल 82 प्लॉट का अधिग्रहण करना है, जबकि इसमें से केवल 40 प्लॉट का 3 (ए) प्रारूप तैयार कर भू-अर्जन कार्यालय से भेजा गया था. यह भारत सरकार के राजपत्र में प्रकाशित भी हो चुका है. बचे हुए 42 प्लॉट का अभी तक 3 (ए) का प्रारूप तैयार कर नहीं भेजा गया है.

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क्या है 3 (ए)

3 (ए) भूमि अर्जित करने की प्रक्रिया है. इसके तहत केंद्र सरकार किसी सार्वजनिक उद्देश्य यानी राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण आदि के लिए भूमि की आवश्यकता को देखते हुए इसके अधिग्रहण करने की घोषणा करती है.

अब रैयतों को ज्यादा कीमत देनी होगी

एनएचएआइ ने यह भी लिखा है कि एक ही परियोजना में अलग-अलग समय पर 3 (ए) प्रकाशित करने से रैयतों की भूमि के मूल्य में अंतर आयेगा. जमीन का रेट बढ़ने पर रैयतों को ज्यादा कीमत देनी होगी. अक्सर जमीन की कीमतें बढ़ती हैं. काफी समय बाद दूसरी जमीन का नोटिफिकेशन होगा, तो रैयतों को ज्यादा पैसा देने में परेशानी होगी.

कानूनी अड़चनें भी आयेंगी

एक ही मौजा में दो अलग-अलग रेट होने पर रैयतों के बीच मतभेद होगा. साथ ही भू-अर्जन में कानूनी अड़चनें भी आयेंगी. यह सवाल खड़ा किया जायेगा कि एक ही जमीन के अलग-अलग रेट क्यों दिये जा रहे हैं. अगर ऐसा हुआ, तो जिला भू-अर्जन कार्यालय ही जिम्मेवार होगा.

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