बिपिन सिंह, रांची : केंद्र सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड का दायरा खेती-किसानी से बढ़ाकर पशुपालन और मछलीपालन तक कर दिया है. इसके बावजूद झारखंड में न्यूनतम उत्पादन लागत (स्केल आॅफ फाइनेंस) तय नहीं होने के कारण इसका लाभ ऐसे किसानों को नहीं मिल रहा है. हालत यह है कि राज्य में करीब 17.5 लाख सक्रिय केसीसी खातों में से अब तक 490 खातों को ही मदद दी जा सकी है, जबकि स्कीम के लांच हुए करीब एक साल होने को है.
राज्य में इस क्षेत्र में कार्यरत 20 बैंकों में से नाबार्ड ने अकेले 468 मछली पालकों को कर्ज उपलब्ध कराया है. इसके अलावा यूनियन बैंक और यूनाइटेड बैंक ने करीब डेढ़ दर्जन ऐसे लोगों को इस ऋण सुविधा से जोड़ा है. इसके बाद अन्य सभी बड़े बैंकों का स्कोर शून्य है. अब, भारतीय रिजर्व बैंक ने नाबार्ड को निर्देश जारी कर 30 जून तक हर हाल में स्केल ऑफ फाइनेंस तय करने को कहा है.
प्रदेश सरकार बीमा कंपनी के लिए फसलों का स्केल ऑफ फाइनेंस तय करती है. स्केल ऑफ फाइनेंस का मतलब होता है ‘उत्पादन की लागत’. बीमा के तहत इसे ही कवर किया जाता है. हर वर्ष प्रति हेक्टेयर जितनी फसल लागत होती है, उसे बीमा के तहत कवर किया जाता है.
राज्य में कृषि क्षेत्र की वित्तीय हालत अच्छी नहीं है. बैंकों ने इस साल 4238.52 करोड़ का कृषि ऋण वितरित किया है. हालांकि, यह राष्ट्रीय स्तर पर तय ऋण सीमा से 18 फीसदी कम है. वित्त मंत्रालय ने इस पर चिंता जतायी है. लोन के लिए तीन तरह के कागजात जरूरी है. आवेदन कर्ता को खुद के किसान होने संबंधी पेपर के अलावा निवास प्रमाण पत्र तथा इस आशय का शपथ पत्र कि आवेदन कर्ता का किसी बैंक में लोन बकाया नहीं है, इसके पेपर जमा करने होते हैं.
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अब तक तय नहीं हुआ स्केल ऑफ फाइनेंस
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नाबार्ड को छोड़ कई बैंकों का नहीं खुला खाता
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राज्य के अंदर करीब 17.5 लाख केसीसी खाते सक्रिय
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अब तक 490 खातों को ही दी जा सकी मदद
दूसरे राज्यों में फसलों के उत्पादन की तर्ज पर इस श्रेणी में दो लाख रुपये तक का लोन मिल रहा है. पशुपालक और मछली पालक बैंक जाकर न्यूनतम डॉक्यूमेंट्स पर इस तरह का लोन ले सकते हैं, जिससे कि उन्हें अपना कारोबार बढ़ाने के लिए पूंजी की दिक्कत न हो.
posted by : Pritish Sahay