Loading election data...

Loan Scam in Jharkhand : सीबीआइ की जांच रिपोर्ट में हुआ खुलासा, चार करोड़ के लोन घोटाले में बैंक मैनेजर भी शामिल

फर्जी दस्तावेज के आधार पर चार करोड़ रुपये का लोन देने के मामले में बैंक मैनेजर शामिल हैं, सीबीआइ ने अपनी जांच रिपोर्ट में यह दावा किया है

By Prabhat Khabar News Desk | January 14, 2021 12:48 PM

रांची : फर्जी दस्तावेज के आधार पर चार करोड़ रुपये का लोन देने के मामले में इलाहाबाद बैंक (बिस्टुपुर) के तत्कालीन मैनेजर शामिल हैं. सीबीआइ ने अपनी जांच रिपोर्ट में यह बात कही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्ज के बदले गिरवी रखी गयी धनबाद की जमीन के दस्तावेज फर्जी थे. फिर भी मैनेजर ने उसे सही माना था. साथ ही रांची स्थित बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा कंपनी के उपकरण के सिलसिले में उठायी गयी आपत्तियों का गलत जवाब दिया था.

एसके जैन को गारंटर बनाया गया था :

सीबीआइ जांच में पाया गया कि संजय सिंह मेसर्स एनसी इंटरप्राइजेज के नाम पर इलाहाबाद बैंक (बिष्टुपुर) से तीन करोड़ रुपये कर्ज लेने का प्रस्ताव दिया था. कर्ज लेने का उद्देश्य लौह अयस्क को चूर कर एक खास आकार का बनाना था. कंपनी के निदेशक संजय सिंह की ओर से यह दिखाया गया था कि उनकी कंपनी ने मेसर्स खाटू मेटालिक से 140 एमटीपीएट क्षमता का क्रशर लीज पर लिया है.

Also Read: Bird Flu : झारखंड में बर्ड फ्लू की आशंका, जमशेदपुर के कई पॉल्ट्री फॉर्म से नमूने जांच के लिए भेजे गये रांची

कर्ज के प्रस्ताव के साथ ही धनबाद की 4.52 एकड़ जमीन का दस्तावेज गिरवी रखने के लिए दिया था. एसके जैन को इस जमीन का मालिक बताते हुए गारंटर बनाया गया था. जमीन की कीमत करीब 4.25 करोड़ रुपये आंकी गयी थी. जमीन के म्यूटेशन का दस्तावेज नहीं होने की वजह से बैंक के वकील ने इस पर आपत्ति की थी. हालांकि बैंक के तत्कालीन मैनेजर प्रदीप कुमार मित्रा (अब सेवानिवृत्त) ने इन आपत्तियों को नजरअंदाज करते हुए मेसर्स एनसी इंटरप्राइजेज को तीन करोड़ रुपये का कर्ज देने की अनुशंसा रांची स्थित क्षेत्रीय कार्यालय को भेजी.

इलाहाबाद बैंक (बिष्टुपुर) के तत्कालीन बैंक मैनेजर प्रदीप कुमार मित्रा ने दिया था लोन

फर्जी थे कर्ज के बदले गिरवी रखी गयी धनबाद की जमीन के दस्तावेज

कर्ज लेने का उद्देश्य लौह अयस्क को चूर कर खास आकार का बनाना था

ब्रांच मैनेजर ने क्षेत्रीय कार्यालय को भेजी रिपोर्ट

ब्रांच मैनेजर ने क्षेत्रीय कार्यालय को भेजी गयी अपनी रिपोर्ट में लिखा कि उन्होंने बड़ा जामदा स्थित कंपनी का निरीक्षण किया. वहां 35 एमटीपीएट का क्रशर पाया गया. उनकी रिपोर्ट के बाद मुख्यालय ने यह सवाल उठाया कि कर्ज देने के मूल प्रस्ताव में 140 एमटीपीएच क्षमता के क्रशर का उल्लेख है.

फिर यह 35 एमटीपीएट कैसे हो गया? क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा उठाये गये सवाल के जवाब में ब्रांच मैनेजर ने यह जानकारी दी कि मेसर्स एनसी ने अब मां तारिणी ओरस प्राइवेट लिमिटेड से क्रशर मशीन लीज पर लेने की योजना बनायी है. इसके साथ ही एकरारनामा भी क्षेत्रीय कार्यालय को भेजा. इसके बाद ब्रांच मैनेजर ने 20 अप्रैल 2009 को तीन करोड़ रुपये कर्ज दिया.

ब्रांच मैनेजर ने नवंबर 2099 में कर्ज की सीमा बढ़ा कर चार करोड़ रुपये कर दी. वर्ष 2013 में कर्ज एनपीए हो गया. साथ ही कर्ज की राशि बढ़ कर 6.18 करोड़ रुपये हो गयी. सीबीआइ ने जांच में पाया कि मेसर्स एनसी ने बैंक से कर्ज लेने के बाद उसे दूसरे काम में लगाया.

एसके जैन ने धनबाद की जिस 4.52 एकड़ जमीन को गारंटर बन कर गिरवी रखी, उस जमीन को 1996 में ही ब्रजेंद्र कुमार गुप्ता को बेच दिया था. सीबीआइ ने जांच के दौरान यह भी पाया कि मेसर्स एनसी ने सिर्फ एक महीने ही 35 एमटीपीएच क्षमता का क्रशर चलाया था. इसके बाद इस कंपनी ने कभी काम ही नहीं किया.

Posted By : Sameer Oraon

Next Article

Exit mobile version