लॉकडाउन ने बदल दी दामोदर की सूरत, कभी काला पानी बहता था, आज साफ हो गया है नदी का जल

लॉकडाउन के दौरान पर्यावरण में कई बदलाव दिखे. इस दौरान जनता से जुड़ी कई गतिविधियां बंद रही. इसका असर नदी-नालों पर भी पड़ा. कई स्थानों पर गंगा और यमुना के पानी के साफ हो जाने की खबर आयी.

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 25, 2020 1:39 AM

मनोज सिंह, रांची : लॉकडाउन के दौरान पर्यावरण में कई बदलाव दिखे. इस दौरान जनता से जुड़ी कई गतिविधियां बंद रही. इसका असर नदी-नालों पर भी पड़ा. कई स्थानों पर गंगा और यमुना के पानी के साफ हो जाने की खबर आयी. इसी तरह लॉकडाउन के दौरान राज्य की सबसे प्रदूषित नदी दामोदर की सूरत भी बदल गयी. यहां का पानी भी कई स्थानों पर साफ हो गया. जहां कभी काला पानी बहता था, वहां साफ पानी और बालू नजर आने लगा है.

सीसीएल के पर्यावरण विभाग ने लॉकडाउन के दामोदर नदी पर पड़े असर का अध्ययन किया है. इसमें पाया है कि करीब एक माह से अधिक समय तक लॉकडाउन के बाद नदी में प्रदूषण कम हुआ है. कंपनी के अधिकारियों ने बेरमो कोल फील्ड्स को अध्ययन का केंद्र बनाया. इसके लिए आंखों से देखने के साथ-साथ कुछ प्रदूषण के पारामीटरों का भी अध्ययन किया. आंखों से देखने पर पाया कि रात के समय पानी में तारा दिख रहा था.

जनवरी से 10 मई तक हुई 404 मिमी बारिश : अध्ययन में पाया गया कि 10 मई तक राज्य में कई जिलों में अच्छी बारिश हुई. बेरमो वाले इलाके में एक जनवरी से 10 मई तक करीब 404 मिमी बारिश हुई. पिछले साल इस अवधि में मात्र 103 मिमी ही बारिश हुई थी. इससे नदी में जल स्तर बरकरार रहा. इसका आसपास के लोगों के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ा. लोगों को उपयोग के लिए अच्छा पानी मिल पाया.

लगातार निकलता रहा कोयला : लॉकडॉउन में कोयले का आवश्यक सेवाओं की श्रेणी में रखा गया था. केवल कोयला कंपनियों स्टील प्लांट में कोयला नहीं जा रहा था. पावर प्लांट को नियमित रूप से कोयला दिया गया. मार्च का महीना होने के कारण कंपनियों ने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अधिक से अधिक कोयला निकालने का प्रयास किया. कोयला कंपनियों का दावा है कि दामोदर को प्रदूषित करने में कोयला कंपनियों की भूमिका नहीं है.

वर्षों दामोदर नदी के किनारे रहने का मौका मिला है. लॉकडाउन के बाद जो स्थिति दिखी, वैसी पहले कभी नहीं थी. अध्ययन में भी प्रदूषण के कई मानकों में अप्रत्याशित सुधार दिखा. यह लॉकडाउन के बिना संभव नहीं था. जबकि इस दौरान कोयले का खनन निर्बाध रूप से होता रहा.

डॉ मनोज कुमार, मैनेजर पर्यावरण विभाग सीसीएल.

posted by : Pritish Sahay

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