रांची : लॉकडाउन में मनोचिकित्सकों से ऑनलाइन सलाह लेनेवाले मरीजों की संख्या करीब 256 फीसदी बढ़ गयी. टेलीमेडिसिन के माध्यम से सलाह लेने पर जोर रहा. इसकी जानकारी क्लिनिकल साइकियाट्री जर्नल को लैनसेट के माध्यम से कराये गये सर्वे में मिली. लॉकडाउन के दौरान 2020 में मनोचिकित्सालयों में आनेवाले मरीजों की संख्या काफी कम हो गयी थी. सबसे अधिक मरीजों की संख्या एडिक्शन (लत) की बढ़ी थी. इसमें मोबाइल व टीवी एडिक्शन और नशे की लत भी शामिल हैं. मनोचिकित्सक से सलाह लेनेवाले मरीजों में 51 फीसदी में नशे की लत थी. घर में रहने के दौरान नशे की आदत पड़ गयी थी.
सर्वे में पाया गया कि इस दौरान बच्चे, बुजुर्ग और युवाओं में मनोविकार की समस्या बहुत कम हुई. पहले जो मनोरोग के शिकार थे, उनकी परेशानी इस दौरान काफी नहीं बढ़ी. लॉकडाउन के दौरान एडजस्टमेंट की समस्या 16 फीसदी के आसपास बढ़ी थी. इसमें पारिवारिक एडजस्टमेंट भी शामिल था. चूंकि लॉकडाउन के दौरान लोगों का घरों से बाहर निकलना बंद था. इस कारण डरवाले मरीजों की संख्या भी सामान्य से अधिक रही.
रिनपास के पूर्व निदेशक डॉ अमूल रंजन सिंह का कहना है कि रिसर्च यह दर्शाता है कि नशे की लत बढ़ गयी है. जो लोग लंबे समय तक घरों में बंद रहे, उनमें यह समस्या होना स्वाभाविक है.
आम दिनों से करीब 23 फीसदी बच्चों का मानसिक विकास घटा था. इसी तरह बुजुर्गों में भी तनाव घटा, यह इस दौरान की अच्छी बात रही. पारिवारिक सिस्टम के कारण ऐसा हुआ. नशे की लत बढ़ना खतरनाक है. लॉकडाउन की यह बड़ी परेशानी रही.
डॉ सिद्धार्थ सिन्हा, मनोचिकित्सक रिनपास
Posted by : Sameer Oraon