स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ हुए बीमार, 15 दिनों के एकांतवास में गये

देव स्नान पूर्णिमा पर विग्रहों को स्नान कराने के लिए उमड़े श्रद्धालु. इससे पूर्व प्रात:पांच बजे मंदिर का पट खोला गया. इसके बाद मंदिर की सफाई कर भगवान की पूजा की गयी.

By Prabhat Khabar News Desk | June 23, 2024 1:31 AM

रांची. देव स्नान पूर्णिमा पर शनिवार को भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहनों को स्नान कराया गया. इस दौरान भगवान जगन्नाथ स्वामी के जयकारों से वातावरण गुंजायमान हो उठा. भगवान को स्नान कराने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी थी. स्नान करने के बाद भगवान 15 दिनों के एकांतवास में चले गये. ऐसा माना जाता है कि अधिक स्नान कर लेने से प्रभु बीमार पड़ जाते हैं. इस कारण एकांतवास में चले जाते हैं.

इधर, लोग दोपहर 12 बजे के बाद से ही स्नान यात्रा में शामिल होने के लिए मंदिर परिसर में एकत्रित होने लगे थे. इससे पूर्व प्रात:पांच बजे मंदिर का पट खोला गया. इसके बाद मंदिर की सफाई कर भगवान की पूजा की गयी. उसके बाद छह बजे मंगल आरती की गयी. फिर भगवान को भोग लगाया गया. इसके बाद से आम लोगों ने पूजा शुरू की. मालूम हो कि शनिवार को स्नान यात्रा व पूर्णिमा होने के कारण काफी संख्या में लोग पूजा करने पहुंचे थे. दिन के 12 बजे के पूर्व तक भक्तों ने पूजा की. उसके बाद भगवान को अन्न भोग लगाया गया. इसके बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र स्वामी व बहन सुभद्रा तीनों विग्रहों को बारी-बारी से स्नान मंडप में लाकर रखा गया. मंदिर के पुजारी रामेश्वर पाढ़ी, कौस्तभ धर नाथ मिश्र, सरयू नाथ मिश्र व श्रीराम महंती ने बारी-बारी से तीनों को स्नान कराया. यजमान मंदिर के प्रथम सेवक ठाकुर सुधांशु नाथ शाहदेव थे. अनुष्ठान में जगन्नाथपुर मंदिर न्यास समिति के उपाध्यक्ष अशोक नारसरिया, न्यास समिति के सचिव मिथिलेश कुमार, कोषाध्यक्ष विनोद कुमार, सदस्य अनिल कुमार मिश्र, आलोक दुबे सहित अन्य लोग शामिल थे.

विग्रहों का शृंगार कर मंगल आरती की गयी

स्नान संपन्न होने के बाद सवा तीन बजे मंगल आरती की गयी. इसके बाद भगवान का दर्शन बंद कर दिया गया. फिर विग्रहों का शृंगार कर 108 मंगल आरती की गयी और श्री जगन्नाथवकम गीता द्वादश अध्याय का पाठ किया गया. इसके बाद भगवान एकांतवास में चले गये. वहां भगवान 15 दिनों तक रहेंगे. इन 15 दिनों के अंदर मूर्तिकार भगवान की प्रतिमा का रंग रोगन कर उनका शृंगार करेंगे.

छह जुलाई को भगवान एकांतवास से बाहर आयेंगे

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी छह जुलाई को भगवान एकांतवास से बाहर आयेंगे. शाम में चार बजे के बाद उनका नेत्र दान कर मंगल आरती की जायेगी और इसके बाद भगवान सर्व दर्शन के लिए सुलभ होंगे. इसके बाद उन्हें मालपुआ सहित अन्य प्रसाद अर्पित कर भक्तों के बीच इसका वितरण किया जायेगा. इस दिन भगवान रात भर स्नान मंडप में रहेंगे और अगले दिन सात जुलाई को रथ यात्रा का त्योहार मनाया जायेगा. इस दिन भगवान सुबह से भक्तों को यहीं दर्शन देंगे. इस दिन शाम में पांच बजे के बाद भगवान रथ पर आरुढ़ होकर मौसीबाड़ी जायेंगे. फिर 17 जुलाई को हरिशयनी एकादशी के दिन घुरती रथ यात्रा होगी और भगवान मौसीबाड़ी से वापस अपने घर (मुख्य मंदिर) लौटेंगे. इसी के साथ रथयात्रा का समापन हो जायेगा.

महिलाओं के लिए साड़ी व पुरुषों के लिए धोती अनिवार्य किया गया था

आम भक्तों के लिए स्नान यात्रा दिन के 1.30 बजे से शुरू हुई. भगवान को स्नान कराने के लिए काफी संख्या में महिलाएं लोटा में जल, फूल आदि लेकर पहुंची थीं. स्नान के लिए सिर्फ उन्हीं महिलाओं को जाने दिया जा रहा था, जो साड़ी पहनी हुई थीं. हालांकि, कुछ महिला जींस पैंट में भी चली गयी थी. इसका अन्य महिलाओं ने विरोध भी किया. वहीं, पुरुष भक्तों के लिए धोती अनिवार्य किया गया था.

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