महामाया मंदिर को झारखंड के पर्यटन विभाग ने सांस्कृतिक धरोहर के रूप में चिन्हित किया है. पर्यटन विभाग की ओर से चहारदीवारी का निर्माण कराया जा चुका है. लगभग 5 एकड़ में फैली धरोहर के शीला एवं पत्थरों को देखने से प्रतीत होता है कि यह आपस में बातें कर रहे हैं. यहां का शिलालेख उड़िया लिपि में लिखा गया है. आसपास के बुजुर्ग बताते हैं कि यह मंदिर कलिंग शासन के समय का है. धार्मिक दृष्टिकोण से इस स्थल को काफी पवित्र माना गया है.
महामाया मंदिर के समीप कांची नदी की धारा उत्तरायण में बह रही है. यहां पर स्नान कर पूजा करने से लोगों की मन्नतें पूरी होती हैं. नवरात्र के शुभारंभ से ही इस मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन होता है. मंदिर के पुजारी अनिरुद्ध चक्रवर्ती बताते हैं कि रविवार को नवरात्र के प्रथम दिन से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा-अर्चना करने पहुंचे और विशेष अनुष्ठान किया गया. यह लगातार 10 दिनों तक चलेगा. इस मंदिर की खासियत है यहां पर बलि चढ़ाई नहीं जाती है. इस मंदिर परिसर में महिषासुर का वध करने वाली मां दुर्गा का मंदिर है, जहां पर मानकी मुंडा पाहन द्वारा पूजा की जाती है. इसके अलावा इस मंदिर परिसर में एक दर्जन से अधिक प्राचीन शिव मंदिर हैं. खुले आसमान के नीचे शिव मंदिरों में लोग पूजा-अर्चना करते हैं. दुर्गा पूजा के अवसर पर 10 दिन तक यहां श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है.
महाशिवरात्रि के समय भी मेला का आयोजन होता है और पंच परगना का प्रसिद्ध टुसू त्योहार पर विशाल मेले का आयोजन होता है. मेला आयोजन समिति के अध्यक्ष मानकी देवी प्रसाद सिंह मुंडा कहते हैं कि मेरे परदादा मानकी सीता नाथ सिंह, नावाडीह ग्राम के प्रसिद्ध विद्वान अधिवक्ता कर्म सिंह महतो, हेट बुडाडीह गांव के जीतू महतो लगभग 200 वर्ष पूर्व प्राचीन देवी स्थल पर नदी की धारा से प्रभावित होकर जीर्णोद्धार कराया गया था. इधर 40 वर्ष पूर्व जर्जर मंदिर की हालत पर रांची, खूंटी और जमशेदपुर के विद्वान अधिवक्ता एवं स्थानीय लोगों की मदद से मंदिर का पुनर्निर्माण से किया गया.
खूंटी स्थित व्यवहार न्यायालय के न्यायाधीश राजकुमार तुली एवं अन्य जज, वकील एवं समाजसेवियों ने बढ़-चढ़कर सहयोग किया था. ठीक इसी मंदिर के समीप रांची जिले का सबसे लंबा पुल कांची नदी पर 5 वर्ष पूर्व बना था, लेकिन निर्माण कार्य पूर्ण होने के बाद पहली ही बारिश में ही टूट गया था. इससे दर्जनों गांव का संपर्क टूट गया है. भक्तों को भी पूजा करने के लिए आवागमन में भारी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है. 25 से 30 किलोमीटर दूरी तय कर मंदिर पहुंचना पड़ रहा है. बरसात में तो नदी पार होना बिल्कुल बंद हो जाता है. सभी वर्ग-समुदाय के लोग पूजा-अर्चना करते हैं.
महामाया मंदिर में शौचालय, ठहरने के लिए अतिथि निवास, पूजा यज्ञ स्थल का निर्माण हो चुका है. राज्य सरकार के प्रतिवेदन पर इस मंदिर को प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी गोद लिया है. पर्यटन विभाग की ओर से सुंदरीकरण एवं संचालन के लिए अनुमंडल पदाधिकारी बुंडू को देखरेख का जिम्मा दिया गया है. स्थानीय समिति के अध्यक्ष देवी प्रसाद सिंह मुंडा, अनिरुद्ध चक्रवर्ती, विशेश्वर महतो, हलदर माझी, लहरु महतो, पूर्व प्रिंसिपल लोहरा महतो, योगेश्वर महतो, राजेश्वर महतो, बान सिंह महतो, भीम महली, प्रयाग कर्मकार, तापस चक्रवर्ती आदि ने मंदिर परिसर के सौंदर्यीकरण की मांग की है.