Mahendra Singh Martyrdom Day, Ranchi News, रांची (अनिल अंशुमन) : 2005 के 16 जनवरी को झारखंड प्रदेश के सर्वाधिक चर्चित और जनप्रिय राजनेता कॉमरेड महेंद्र की सुनियोजित हत्या की गयी. कांड की जांच कर रही सीबीआइ अब तक कोई ठोस और विश्वसनीय नतीजा दे पायी है. 16 जनवरी उनकी शहादत दिवस पर एक बार फिर यही सवाल पूछा जायेगा कि हर दिल अजीज जननायक की हत्या क्यों हुई? यदि उनकी हत्या एक राजनीतिक साजिश के नहीं थी, तो क्या वजह है कि असली हत्यारे आज तक नहीं पकड़े जा सके हैं ? दूसरे, महेंद्र सिंह जी की पत्नी द्वारा दायर प्राथमिकी में दर्ज आरोपियों पर क्या कार्रवाई हुई?
महेंद्र सिंह झारखंड राज्य गठन के अगुवा राजनीतिक लड़ाका के साथ-साथ राज्य गठन पश्चात उसके नवनिर्माण के जमीनी स्वप्न द्रष्टा रहे. भाकपा माले के एक जुझारू नेतृत्वकारी संगठनकर्ता होने के साथ साथ एक संवेदनशील राजनेता के कर्तव्य का भी निर्वहन करते रहे. आम जन के प्रति एक सजग लोकतांत्रिक दृष्टि बोध और उनके सरोकारों से जीवंत व अंतरंग जमीनी जुड़ाव की राजनीति ही उनके पूरे राजनीतिकर्म के केंद्र में रही. यही वजह रहा कि अपने विधानसभा क्षेत्र बगोदर (गिरिडीह) और आम जन के सवालों और जल जंगल जमीन के अधिकारों के मुद्दों पर सड़क लेकर सदन तक संघर्ष किया.
यह सब उनके किसी चमत्कारिक व्यक्तित्व के कारण नहीं हुआ, बल्कि इसके मूल में क्रांतिकारी वामपंथ की राजनीति और अपनी पार्टी भाकपा माले की मजबूत वैचारिकता थी. इसे जमीनी रूप देते हुए उन्होंने आम जन के साथ-साथ समाज के वंचितों, गरीबों और हाशिये पर धकेल दिये गये लोगों को वैचारिक रूप से जागरूक किया. जन दृष्टि व सरोकार उनके लिए महज कोई रस्मी कवायद अथवा जनता पर कोई एहसान करने जैसा मामला कभी नहीं रहा. लोकतंत्र और उसके मूल्यों के निर्वहन को राजनीति कर्म की धुरी बनाने की वैचारिकता के प्रबल हिमायती होने के कारण ही उन्होंने किसी भी सत्ता शासन से कोई समझौता नहीं किया.
सरकार की ओर से बांटे जानेवाले किसी भी उपहार को कभी भी नहीं स्वीकार किया, इसके पीछे भी उनका सदा यही तर्क रहा कि इन उपहारों के पैसों को प्रदेश की जनता के लिए ही खर्च किया जाना ज्यादा जरूरी है. जन सक्रियता को वे लोकतंत्र की मजबूती के लिए सबसे जरूरी समझते थे. इस संदर्भ में उनकी स्पष्ट मान्यता थी कि सक्रिय जन दबाव ही किसी सरकार व शासन को गलत दिशा में जाने रोकता और सही पटरी पर रख सकता है. इसी लिए जनता को भी उन्होंने सदा इसी विचार से लैस बनाया कि वह राजनेताओं सरकार को अपना कोई मसीहा नियंता-उद्धारक न माने, बल्कि लोकतंत्र का जन वाहक समझे. इन्हीं संदर्भों में वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी ने उनकी स्मृति में बोलते हुए कहा था कि आज जब सरकारों द्वारा संविधान, लोकतंत्र पर हमले किये जा रहे हैं.
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ऐसे में महेंद्र सिंह बहुत याद आ रहे हैं. वे होते तो आज जन प्रतिरोध का नजारा कुछ और होता. एक क्रांतिकारी वामपंथी होने के कारण महेंद्र सिंह चालू राजनीति के लोकतंत्र की सीमाओं के प्रति भी सजग-सतर्क रहे. यही कारण था कि उन्होंने जन प्रतिनिधियों के वेतन भत्ते बढ़ाये जाने का हमेशा विरोध किया. 90 के दशक में भारतीय राज्य ने सभी सांसदों-विधायकों को उनके क्षेत्रों में जनता के विकास के नाम पर भारी राशि देने की प्रक्रिया शुरू की थी. महेंद्र सिंह ने जल्द ही इस खेल को भांप लिया और वे शिलापट्ट शिलान्यासों की राजनीति के खिलाफ नये सृजनात्मक तरीकों से जन सक्रियता को गति दी थी.
Posted By : Guru Swarup Mishra