Makar Sankranti 2023: भुवन भास्कर के प्रति कृतज्ञता का पर्व है मकर संक्रांति, जानें शुभ मुहूर्त

Makar Sankranti 2023: 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जायेगा. यह पर्व हमारे जीवन में गति, नव चेतना, नव उत्साह और नव स्फूर्ति का प्रतीक है, क्योंकि यही वो कारक हैं जिनसे हमें जीवन में सफलता मिलती है.

By Prabhat Khabar News Desk | January 14, 2023 7:48 AM

Makar Sankranti 2023: हिंदू पंचांग के अनुसार, पौष मास, कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि रविवार, 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जायेगा. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, हिंदू पंचांग सूर्य, चंद्र और नक्षत्रों पर आधारित है. अत: सूर्यदेव हमारे लिए विशेष महत्व रखते हैं, इसलिए सभी संक्रांति में मकर संक्रांति को अति महत्वपूर्ण माना गया है. मकर राशि में प्रवेश के साथ ही सूर्यदेव उत्तरायण की ओर प्रस्थान प्रारंभ करेंगे. इसी के साथ खरमास की समाप्ति होगी और विवाह आदि शुभ कार्यो की शुरुआत होगी.

वर्ष भर में 12 सूर्य संक्रांति होती हैं और इस समय को सौर मास भी कहते हैं. इन 12 संक्रांतियों में चार को महत्वपूर्ण माना गया है, जिनमें सबसे खास मकर संक्रांति है जिस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है. मकर के अलावा सूर्य जब मेष, तुला और कर्क राशि में गमन करता है, तो ये संक्रांति भी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं.

जिस तरह चंद्र वर्ष माह के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष. उसी तरह एक सूर्य वर्ष यानी एक वर्ष के भी दो भाग होते हैं- उत्तरायण और दक्षिणायन. ज्योतिष के अनुसार, सूर्य छह माह उत्तरायन रहता है और छह माह दक्षिणायन. उत्तरायन को देवताओं का दिवस माना जाता है और दक्षिणायन को पितरों आदि का. मकर संक्रांति से शरद ऋतु क्षीण होने लगती है और बसंत का आगमन शुरू हो जाता है.

मान्यताओं के अनुसार, जब सूर्यदेव पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगते हैं, तब सूर्य की किरणें सेहत और शांति को बल देती हैं. सूर्य की गति से संबंधित होने के कारण यह पर्व हमारे जीवन में गति, नव चेतना, नव उत्साह और नव स्फूर्ति का प्रतीक है, क्योंकि यही वो कारक हैं जिनसे हमें जीवन में सफलता मिलती है. स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरायन का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि जब सूर्य देव उत्तरायन होते हैं, तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोगों को सीधे ब्रह्म की प्राप्ति होती है.

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हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस विशेष दिन पर भगवान सूर्य अपने पुत्र भगवान शनि के पास जाते हैं, उस समय शनि भगवान मकर राशि का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं. पिता और पुत्र के बीच स्वस्थ संबंधों को स्थापित करने के लिए, मतभेदों के बावजूद मकर संक्रांति को महत्व दिया गया. महाभारत से जुड़ी पौराणिक कथाओं के अनुसार, बाणों की सज्जा पर लेटे पितामह भीष्म को यह वरदान प्राप्त था कि वे अपनी इच्छा से मृत्यु को प्राप्त होंगे. तब वे उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे और उन्होंने इस दिन अपनी आंखें बंद की और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई. इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे−पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं. साथ ही महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए इस दिन तर्पण किया था. यही वजह है कि मकर संक्रांति को लेकर गंगासागर में हर साल मेला लगता है.

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हमारे ऋषि-मुनियों ने इस अवसर को अत्यंत शुभ व पवित्र माना है. उपनिषदों में इस पर्व को ‘देव दान’ भी कहा गया है. इस दिन से देवलोक में दिन का आरंभ होता है, इसलिए इस दिन देवलोक के दरवाजे खुल जाते हैं, इसीलिए इस अवसर पर दान, धर्म व जप-तप करना उत्तम माना गया है. भविष्य पुराण के अनुसार, श्री कृष्ण ने सूर्य को संसार के प्रत्यक्ष देवता बताते हुए कहा है कि इनसे बढ़कर कोई दूसरा देवता नहीं, संपूर्ण जगत इन्हीं से उत्पन्न हुआ है और अंत में उन्हीं में विलीन हो जायेगा, जिनके उदय होने से सारा जगत चेष्टावान होता है.

शुभ मुहूर्त

  • सूर्य का धनु से मकर राशि में प्रवेश : शनिवार, 14 जनवरी को अपराह्न 08:45 बजे.

  • मकर संक्रांति पुण्यकाल : रविवार, 15 जनवरी को पूर्वाह्न 06:49 से अपराह्न 05:40 बजे तक.

  • मकर संक्रांति महापुण्यकाल : 15 जनवरी को पूर्वाह्न 07:15 से पूर्वाह्न 09:06 बजे तक.

ज्योतिषी संतोषाचार्य, ज्योतिष एवं वास्तु विशेषज्ञ

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