पारंपरिक भोजन छूटा, झारखंड के माल पहाड़िया जनजाति की आयु घटी, डॉक्टरों की शोध में खुलासा
मुख्य शोधकर्ता डॉ विद्यासागर और उप मुख्य शोधकर्ता डॉ देवेश कुमार ने बताया कि झारखंड में दुमका के कांठीकुंड ब्लॉक को शोध के लिए चुना गया है. यहां पर पहाड़िया जनजाति की संख्या ज्यादा है, इसलिए इनको शामिल किया गया है
राजीव पांडेय,रांची :
झारखंड की माल पहाड़िया और स्वीडन की सामी जनजाति की लाइफ एक्सपेक्टेंसी (जीवन प्रत्याशा) को बढ़ाने पर शोध शुरू किया गया है. यह शोध इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) और स्वीडन की शोध संस्थान फोर्टे के सहयोग से किया जा रहा है. इसमें रिम्स और स्वीडन के डॉक्टर आपस में मिलकर शोध कर रहे हैं. शोध में यह देखा जायेगा कि किस कारण दोनों ही जनजातियों की औसत आयु में कमी आयी है. ऐसा माना जा रहा है कि पारंपरिक भोजन को छोड़ने से जनजातियों की आयु पहले से कम हुई है. आइसीएमआर ने शोध के लिए रिम्स के पीएसएम विभाग को 1.50 करोड़ रुपये का फंड दिया है.
मुख्य शोधकर्ता डॉ विद्यासागर और उप मुख्य शोधकर्ता डॉ देवेश कुमार ने बताया कि झारखंड में दुमका के कांठीकुंड ब्लॉक को शोध के लिए चुना गया है. यहां पर पहाड़िया जनजाति की संख्या ज्यादा है, इसलिए इनको शामिल किया गया है. टीम जनजाति के भोजन और उनके रहन-सहन पर शोध करेगी. इस टीम में डॉ अनित कुजूर, डॉ मोनालिसा, डॉ प्रवीर और डॉ धनंजय शामिल है.
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शोध में वृद्धों का बनाया जायेगा क्लब :
जनजाति के वृद्धों का एक समूह होगा, जिसे वनफूल का नाम दिया जायेगा. उनसे यह जानकारी ली जायेगी कि आखिर वह भोजन में क्या लेते थे, जिससे उनकी आयु पहले अधिक थी. युवा पीढ़ी अब क्या भोजन ले रही है. इधर, स्वीडन में सामी जनजाति रेनडियर मीट खाने में उपयोग करती है. वहां की सरकार भोजन सुरक्षा के तहत रेनडियर मीट को नि:शुल्क उपलब्ध कराती है.
ऐसे में वहां के डॉक्टर शोध में यह पता लगायेंगे कि सरकार क्या सामी जनजाति को रेनडियर मीट प्रर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराती है या नहीं. शोध के बाद दोनों देश के शोधार्थी संयुक्त रूप से निष्कर्ष निकालेंगे. इस निष्कर्ष पर दोनों देश की सरकारें इन जनजातियों को पारंपरिक भोजन उपलब्ध करायेंगी.