कुदरती मार झेल रहा मैक्लुस्कीगंज में आम बगीचा
मैक्लुस्कीगंज में आम बागान के मालिक मौसम की मार झेलने को विवश हैं. इससे उन्हें लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है
रोहित कुमार, मैक्लुस्कीगंज मैक्लुस्कीगंज में आम बागान के मालिक मौसम की मार झेलने को विवश हैं. इससे उन्हें लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है. जनवरी व फरवरी माह में बागानों में आम के पेड़ों पर मंजर लगे थे. पेड़ों पर मंजर देखकर बगान मालिकों के चेहरे खिल गये थे. यहां तक कि व्यापारियों को भी काफी उम्मीद थी कि इस वर्ष उन्हें बेहतर आय होगी. लेकिन बेमौसम बारिश स अत्यधिक गर्मी के कारण मैक्लुस्कीगंज में अचार डालने के लाले पड़ गये हैं. मंजर के बाद पेड़ों पर अच्छी खासी टिकोरे भी लगे. लेकिन बेमौसम बारिश व आंधी-तूफान से टिकोरे झड़ गये. कुछ बचा सो अत्यधिक गर्मी के कारण सूख गये. इस तरह बागान मालिकों व आम के व्यापारियों को लाखों का नुकसान उठाना पड़ रहा है. यह लगातार तीसरा वर्ष है, जब आम का फसल नष्ट हुआ है. क्या कहते हैं जानकार : मैक्लुस्कीगंज स्थित जागृति विहार के सदस्य सह शिक्षक सुशील तिवारी लगातार 1988 से मैक्लुस्कीगंज के पर्यावरण पर गहरी नजर रख रहे हैं. उन्होंने कहा कि मैक्लुस्कीगंज में इस वर्ष आम के बगीचों में सन्नाटा पसरा है. सैकड़ो स्थानीय महिला-पुरुष बेरोजगार हो गये हैं. जागृति विहार में भी 170 पेड़ फल विहीन हैं. चिंतनीय है कि तीन-चार महीनों के लिए स्थानीय लोगों को रोजगार मिल जाता था. उन्होंने सरकार के संबंधित विभागों से सामूहिक अपील करते हुए कहा कि एक कार्ययोजना बनाकर मैक्लुस्कीगंज के शानदार सैकड़ों आम बगीचों को बचाने का प्रयास शीघ्र किया जाये. क्या कहते हैं ऐशली गोम्स : भूतपूर्व एंग्लो इंडियन प्रेसिडेंट स्व जुडी मेडोंका के बेटे ऐशली गोम्स ने मामले में कहा कि मैक्लुस्कीगंज में अवैध रूप से संचालित ईंट भट्ठा व भारी मात्रा में स्वाइल इरोजन कहीं न कहीं आम बगान को प्रभावित कर रहा है. पहले गंज में अमरूद व आम कोलकाता भेजा जाता था और अब मैक्लुस्कीगंज में न आम हो रहे हैं, और न ही शक्तिपुंज ट्रेन का ठहराव हो रहा है. उन्होंने कहा कि पर्यटन गांव को किसी की नजर लग गयी है. मैक्लुस्कीगंज की वो मनमोहक खुशबू कहीं गुम हो रही है. क्या कहते हैं व्यवसायी : आम के धंधे से जुड़े लगभग 70 वर्षीय शमीम खान उर्फ टैनि खान बताते हैं कि वे पांच दशकों से आम के बगान व फलों के व्यापार से जुड़कर रोजी-रोटी करते आ रहे हैं. 15 से 20 वर्ष पूर्व आम के वृक्षों, फलों में किसी तरह की कोई बीमारी नहीं थी. बगानों में प्रत्येक वर्ष अच्छी पैदावार हो जाती थी. अब तो एक वर्ष पारी कर के आम फलते हैं. उन्होंने कहा कि पिछले पांच दशक में इस वर्ष जैसे आम के लाले कभी नहीं पड़े. आम के बगानों को संरक्षण की जरूरत है. आम सहित सब्जी की खेती पर भी पर्यावरण का कुप्रभाव पड़ रहा है. मैक्लुस्कीगंज में कभी 465 बंगला व आम के थे बगान : मैक्लुस्कीगंज में पूर्व में 465 बंगला व आम के बगान थे. लेकिन अब गंज की ख्याति धीरे-धीरे फीकी पड़ रही है. मैक्लुस्कीगंज में कुछ विख्यात आम बगानों में लालबंगला, गुलमोहर, जागृति विहार, मित्रा बंगला, पीटर बंगला, बूट फाॅर्म, पुजारी बंगला, टैक्सेरा बंगला, बक्शी बंगला, फादर बंगला, (घोष) फैक्ट्री बंगला, माइकल बंगला, बेकर बंगला, लुकस बंगला, कन्हाई बंगला, झारखंड बाग, कुमकुम लॉज बंगला, खन्ना बंगला, मेहता बंगला, हुंडल बंगला सहित अन्य शामिल हैं. मैक्लुस्कीगंज में आम के किस्मों में अल्फांसो, दूधिया लंगड़ा, तोतापरी, फजली, बंबइया, किसुनभोग, आम्रपाली, बिजुआ, मालदा, सिंदुरिया, सफेदा, काला पहाड़, दशहरी, सीपिया, अनरसा आदि किस्मों के आम मिलते हैं.
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