मंजुला के बनाये अचार की मांग यूरोप और अमेरिका तक
डीबडीह निवासी मंजुला ने ट्राइबल खान-पान को अपना व्यवसाय बनाया और घर से ही इसे छोटे स्तर पर शुरू किया. अपनी लगन से उन्होंने झारखंडी खान-पान को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलायी. यही वजह है कि उनके बनाये अचार की डिमांड आज यूरोप और अमेरिका तक में हो रही है.
प्रवीण मुंडा (रांची).
डीबडीह निवासी मंजुला ने ट्राइबल खान-पान को अपना व्यवसाय बनाया और घर से ही इसे छोटे स्तर पर शुरू किया. अपनी लगन से उन्होंने झारखंडी खान-पान को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलायी. यही वजह है कि उनके बनाये अचार की डिमांड आज यूरोप और अमेरिका तक में हो रही है. मंजूला ने पारंपरिक खान-पान में नये इनोवेशन किये है. वे रूगड़ा, मशरूम, गुलर, संधना, फुटकल, कुदरूम और यहां तक की कई तरह के पत्तों से भी अचार बना लेती हैं. इसके अलावा वे निमकी, पीठा व केक भी बनाती हैं. मंजुला शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं. कार्यालय से बचे हुए समय में वे यही काम करती है. उनका घर ही उनका वर्कशॉप है, जहां आर्डर लेने से लेकर खाना बनाने और डिलीवरी तक का काम होता है. उन्होंने चार लड़कियों को भी अपने साथ काम पर रखा है. इनमें दो तो हमेशा रहती हैं. ऑर्डर ज्यादा होने पर दो और को रखती हैं. वे कहती हैं कि खाना बनाना मेरे लिए शुरू से ही एक पैशन रहा है. उसमें भी खासकर छोटानागपुर के आदिवासी ट्रेडिशन से आनेवाले खान-पान में विशेष रुचि रही है. उन्होंने कहा कि अब इस काम को करते हुए 10 साल हो गये हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है