जमशेदपुर के मानसिंह माझी की पुस्तक ‘नेने-पेटे’ को मिला साहित्य अकादमी का बाल साहित्य पुरस्कार
झारखंड के संताली लेखक मानसिंह माझी की पुस्तक ‘नेने-पेटे’ को मिला साहित्य अकादमी का बाल साहित्य पुरस्कार. वह अब तक 5 पुस्तकें लिख चुके हैं. ‘नेने-पेटे’ लघु कथाओं का संग्रह है, जिसमें 13 कहानियां हैं. 1986 से रचना कर रहे हैं.
साहित्य अकादमी ने बाल साहित्य पुरस्कार 2023 (Bal Sahitya Puraskar 2023) की घोषणा कर दी है. संताली भाषा के लिए यह पुरस्कार मानसिंह माझी को मिला है. जमशेदपुर के रहने वाले मानसिंह माझी की पुस्तक ‘नेने-पेटे’ को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला है. यह लघु कहानियों की पुस्तक है, जिसने इस बार ज्यूरी का दिल जीता है. संताली भाषा में बाल साहित्य पुरस्कार के लिए ज्यूरी के सामने 8 पुस्तकें आयीं थीं. इनमें ‘नेने-पेटे’ को सर्वसम्मति से पुरस्कार के लिए चुना गया. लघु कथाओं की यह पुस्तक वर्ष 2018 में लिखी गयी थी.
5 पुस्तकें लिख चुके हैं मानसिंह माझी
अब तक 5 पुस्तकें लिख चुके मानसिंह माझी को शुक्रवार को जब फोन पर बताया गया कि उन्हें साहित्य अकादमी के प्रतिष्ठित बाल साहित्य पुरस्कार के लिए चुना गया है, तो उन्हें पहली बार विश्वास ही नहीं हुआ. बाद में उन्होंने अकादमी की प्रेस विज्ञप्ति देखी, तो यकीन हुआ कि उन्हें ही पुरस्कार मिला है. मानसिंह माझी ने प्रभात खबर (prabhatkhabar.com) से एक्सक्लूसिव बातचीत में कहा कि ‘नेने-पेटे’ में 13 कहानियां हैं.
फिल्म मेकिंग में मदद करती हैं पत्नी रानी मार्डी
मानसिंह ने बताया कि वह वर्ष 1986 से कहानियों के साथ-साथ गीत भी लिख रहे हैं. संगीत से भी जुड़े हैं. झारखंड के संताली साहित्यकार मानसिंह माझी संताली फिल्म के अलावा अलबम भी बनाते हैं. फिल्म मेकिंग में उनकी पत्नी रानी मार्डी उनकी मदद करती हैं. मानसिंह लिखते हैं और रानी उसे गाती हैं. निर्देशन में भी करती हैं. उन्होंने बताया कि उनके पिता विक्रम मार्डी संताली के शिक्षक थे. वह संताली लिपि का प्रचार-प्रसार करते थे. उनसे ही उन्हें संताली लेखन की प्रेरणा मिली.
सामाजिक बदलाव का संदेश देती हैं मानसिंह की रचनाएं
मानसिंह मार्डी ने कहा कि पुरस्कार से हौसला भी बढ़ा है और जिम्मेदारी भी बढ़ी है. साहित्य में अब और बेहतर रचना करनी होगी. उन्होंने बताया कि वे जो कहानियां लिखते हैं, जो फिल्में बनाते हैं, उनमें सामाजिक बदलाव का संदेश होता है. मूल रूप से शिक्षाप्रद कहानियां लिखते हैं. जमशेदपुर के बारीडीह स्थित जाहेरटोला में रहने वाले संताली लेखक को 37 साल बाद साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला है. इस पर उन्होंने कहा कि अपना कर्म करते जाना है. फल की चिंता मत नहीं करनी है. मैंने अपना कर्म किया. जब वक्त आता है, तो पुरस्कार भी मिलते हैं.
8 किताबों में ‘नेने-पेटे’ पर बनी सर्वसम्मति
इस पुरस्कार के लिए जो 8 पुस्तकें ज्यूरी के सामने आयीं थीं, उनमें तीन लघु कथाओं की पुस्तक थी, जबकि 5 कविता की किताबें थीं. नामित पुस्तकों में सुमित्रा सोरेन की ‘गुपी गिदराग कुकमू’ (लघु कथाएं), बड़ा पर्बत हांसदा की ‘हाव पोटोम’ (कविता), लक्ष्मण किस्कू की ‘होहोवांज कनय जानम दिशोम’ (लघु कथाएं), मनोज कुमार टुडु की ‘हुल सेरेंग’ (कविता), मणि सोरेन की ‘जियाली जियोन’ (कविता), सुराय हेम्ब्रोम की ‘केनेकोटे’ (कविता), सुखचंद सोरेन की ‘मिरुबाहा’ (कविता) और मानसिंग माझी की ‘नेने-पेटे’ (लघु कथाएं) शामिल थीं.
ज्यूरी में थे तीन सदस्य
सुमित्रा सोरेन की किताब 2021 में प्रकाशित हुई थी, जबकि बड़ा पर्बत हांसदा की किताब 2017 में, लक्ष्मण किस्कू की पुस्तक 2019 में, मनोज कुमार टुडू की पुस्तक 2020 में, मणि सोरेन की किताब 2021 में, सुराय हेम्ब्रोम की किताब 2021 में, सुकचांद सोरेन की किताब 2021 में और मानसिंग माझी की पुस्तक 2018 में प्रकाशित हुई थी. साहित्य अकादमी के बाल साहित्य पुरस्कार के लिए संताली भाषा की ज्यूरी में तीन लोग शामिल थे- बैद्यनाथ हांसदा, चंद्र मोहन किस्कू और लक्ष्मण बास्के. ज्यूरी के तीनों सदस्यों ने एकमत से ‘नेने-पेटे’ को पुरस्कार के लिए चुना.