झारखंड के कई अस्पताल के भवन हो रहे बेकार, जानिए क्या है कारण
झारखंड में ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा बेहतर करने के लिए भवनों का निर्माण तेजी से किया गया, लेकिन चिकित्सक व स्वास्थ्य कर्मियों के अलावा संसाधन की व्यवस्था नहीं की गयी. जिसके कारण अस्पताल के भवन बेकार हो रहे हैं.
लातेहार जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा बेहतर करने के लिए भवनों का निर्माण तेजी से किया गया, लेकिन चिकित्सक व स्वास्थ्य कर्मियों के अलावा संसाधन की व्यवस्था नहीं की गयी. इसके कारण लोगों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है. जिला मुख्यालय के सदर अस्पताल में पिछले दो साल में लगभग दो करोड़ रुपये खर्च कर भवन व आइसीयू का निर्माण कराया गया, लेकिन आइसीयू को संचालित करने के लिए चिकित्सक व एक्सपर्ट नहीं हैं.
लोहरदगा : नहीं मिल रहा लाभ, क्योंकि 63 की जगह 35 डॉक्टर ही कार्यरत हैं
बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए करोड़ों खर्च कर नये-नये भवन का निर्माण कराया जा रहा है, लेकिन डॉक्टरों की कमी नहीं पूरी की जा रही है. इससे लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं का समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है. जिले में 63 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन 35 डॉक्टर ही कार्यरत हैं. वहीं, 28 डॉक्टरों के पद रिक्त पड़े हैं. पैथोलॉजी, फिजिशियन, नेत्र रोग विशेषज्ञ व एनस्थेटिक का दो-दो पद स्वीकृत है, लेकिन एक भी डॉक्टर नहीं है. 100 बेड वाले सदर अस्पताल में मरीजों के इलाज के लिए कई आधुनिक उपकरण स्थापित किये गये हैं. यहां डिजिटल एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, डायलिसिस, ईसीजी की सुविधा उपलब्ध है.
चतरा : डॉक्टर और दवा के अभाव में मरीजों का नहीं हो पाता है इलाज
जिले की आबादी लगभग 12 लाख है, लेकिन 105 की जगह मात्र 35 डॉक्टर ही पदस्थापित हैं. सदर अस्पताल, रेफरल अस्पताल के अलावा सामुदायिक स्वास्थ्य की संख्या छह है. आठ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व 92 स्वास्थ्य उपकेंद्र हैं. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व उप केंद्र एएनएम के भरोसे चल रहे हैं. एएनएम ही मरीजों का इलाज करती हैं. केंद्रो में समुचित दवा व अन्य सुविधा नहीं हैं. केंद्र आनेवाले मरीजो को रेफर कर दिया जाता हैं. इस तरह जिले के गरीब तबके के लोगों को सरकारी स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल रहा है. मजबूरन झोलाछाप से ईलाज कराते हैं, जिससे कई मरीजों की जान चली जाती हैं.
गुमला : 12 प्रखंडों के 89 गांवों में हेल्थ व वेलनेस सेंटर बने, 17 गायब
जिला के 12 प्रखंडों के 89 गांवों में हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (ग्रामीण अस्पताल) की स्थापना हुई है. ये सभी सेंटर आयुष्मान भारत योजना के तहत बने हैं. सेंटर तो स्थापित कर दिया गया, लेकिन कोई पांच तो कोई तीन साल से बंद है. कई भवनों का तो आज तक ताला नहीं खुला है. ग्रामीणों का कहना है कि अगर सेंटर चालू हो जाता तो इलाज के लिए भटकना नहीं पड़ता. भवन बंद रहने से नर्स भी पेड़ के नीचे या फिर पुराने जर्जर भवन में बैठती हैं. पदाधिकारियों का कहना है कि 242 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर का संचालन किया जाना है़. फिलहाल 89 केंद्र का संचालन हो रहा है.
पलामू : करोड़ों खर्च के बाद भी ग्रामीणों को नहीं मिल रही है बेहतर सुविधा
जिले के विभिन्न प्रखंडों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण हुआ है, लेकिन भवनों का उपयोग नहीं हो पा रहा है. जिले के सतबरवा प्रखंड मुख्यालय में वर्ष 2008 में आठ करोड़ रुपये की लागत से 50 बेड का अस्पताल बनाया गया था. 12 वर्ष बीत जाने के बाद भी सुविधा बहाल नही हो पायी है.
हजारीबाग: 10 वर्षों में करोड़ों खर्च कर भवन बनाये गये, लेकिन सब बेकार
जिले में पिछले 10 सालों में 60 से 70 करोड़ खर्च कर पीएचसी और दर्जनों हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर का भवन बनाया गया, लेकिन इतनी बड़ी रकम खर्च करने के बाद भी लोगों के बेहतर स्वास्थ्य का लाभ नहीं मिल रहा है. जिले में दारू के हरली, टाटीझरिया, चूरचू के जरबा, बरही के करमा, केरेडारी के बुंडू और टाटीझरिया के झड़पो में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के भवन बनाये गये हैं. सभी स्वास्थ्य केंद्र भवन सुदूरवर्ती और उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र में हैं. इन भवनों का निर्माण वर्ष 2015 में किया गया था. एक भवन पर करीब तीन करोड़ रुपये खर्च किये गये.
कोडरमा : 30 बेड का अस्पताल हुआ खंडहर
जिले में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए (आदिम जनजातियों व आर्थिक रूप से कमजोर) लोकाई बागीटांड रोड स्थित बिरहोर टोला में करोड़ों की लागत से 30 बेड का अस्पताल तैयार हो गया है. हालांकि इस्तेमाल नहीं हाेने से भवन खंडहर में तब्दील हो गया है. स्टाफ क्वार्टर की स्थिति भी दयनीय हो गयी है़ यहां से रात में गुजरने पर लोग सहम जाते हैं. स्वास्थ्य विभाग ने लोकाई में 3.53 करोड़ रुपये की लागत से 30 बेड के मातृ व शिशु स्वास्थ्य केंद्र के निर्माण की स्वीकृति वर्ष 2008 में दी थी़ निर्माण के लिए आरइओ को कार्य एजेंसी बनाया गया था. भवन के लिए 2.75 करोड़ का भुगतान भी कर दिया गया है.
1900 चिकित्सकों की बहाली की प्रक्रिया जारी
अफसोस यह है कि पुरानी सरकारों ने स्वास्थ्य व्यवस्था को प्राथमिकता नहीं दी. कई योजनाएं पूरी नहीं हो सकीं. जहां आबादी ज्यादा नहीं है, वहां अस्पतालों के भवन बना दिये गये हैं. इससे चिकित्सकों और मैनपावर की कमी है. आधुनिक मशीनों को वहां स्थापित करने में परेशानी हो रही है. पूर्व की सरकार ने कार्य नहीं किया, जिससे दिक्कत हो रही है. हमारी प्राथमिकता मैन पावर को बहाल करना है. चिकित्सकों की कमी को दूर करना है. 1,900 पदों पर चिकित्सकों की बहाली की प्रक्रिया चल रही है. आधारभूत संरचनाओं को मजबूत किया जा रहा है. एक-एक गांव के अंतिम व्यक्ति तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचायी जा रही हैं.
बन्ना गुप्ता, स्वास्थ्य मंत्री
एक नजर में समझें ग्रामीण अस्पतालों की बदहाल स्थिति
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लातेहार में दो करोड़ से भवन व आइसीयू का निर्माण, लेकिन संचालन के लिए चिकित्सक और एक्सपर्ट नहीं. महुआडांड़ प्रखंड के बरदौनी गांव में दो करोड़ से तीन वर्ष पूर्व उप स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना हुई, लेकिन चालू नहीं हो सका.
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पलामू में सतबरवा प्रखंड में सीएचसी का निर्माण वर्ष 2008 में आठ करोड़ रुपये से किया गया, लेकिन 12 वर्ष बाद भी सुविधा बहाल नहीं हो सकी. चैनपुर प्रखंड के रामपुर व शाहपुर में उप-स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण वर्ष 2016 में लगभग 30-30 लाख से हुआ है, लेकिन छह वर्ष बाद भी स्वास्थ्य व्यवस्था बहाल नहीं हो पायी है.
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गुमला में 30 लाख रुपये से अधिक की लागत से 2018 में अस्पताल का भवन बनकर तैयार हो गया था, लेकिन चालू नहीं हो सका. गोनमेर गांव में सेंटर बना, लेकिन सिर्फ भवन का ही निर्माण हो पाया, संसाधन उपलब्ध नहीं कराया गया
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हजारीबाग में 60 से 70 करोड़ खर्च कर पीएचसी और दर्जनों हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर के भवन बनाये गये, लेकिन लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा का लाभ नहीं मिल रहा है. लोकाई में 3.53 करोड़ की लागत से 30 बेड के मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य केंद्र की स्वीकृति 2008 में मिली थी. भवन के लिए 2.75 करोड़ का भुगतान हो गया, लेकिन अभी भवन खंडहर में तब्दील हो गया है.
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चतरा जिले की आबादी लगभग 12 लाख है, लेकिन 105 की जगह मात्र 35 डॉक्टर ही पदस्थापित हैं. मंधनिया गांव में 14 लाख की लागत से बना उप स्वास्थ्य केंद्र 13 वर्ष से बेकार पड़ा है. आज तक हैंडओवर नहीं किया गया है.