बीआईटी मेसरा से एमई करने वाली निगार शाजी ने भारत के सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’ को ऐसे बनाया सफल
भारत के पहले सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’ की प्रोजेक्ट डायरेक्टर का झारखंड से गहरा नाता है. जी हां. निगार शाजी ने अपनी रांची के बीआईटी मेसरा से एमई की पढ़ाई की है. किसान के परिवार में जन्मीं निगार के पति और बेटे भी इंजीनियर हैं. पति खाड़ी देश में, तो बेटा नीदरलैंड में काम करता है.
निगार शाजी. आज यह नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है. भारत के पहले सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’ की प्रोजेक्ट डायरेक्टर के काम की चारों ओर तारीफ हो रही है. बेहद साधारण परिवार में जन्मीं निगार शाजी ने झारखंड की राजधानी रांची स्थित बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (बीआईटी) से पढ़ाई की है. यहां उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशंस डिपार्टमेंट से एमटेक की पढ़ाई की थी. बाद में वह बेंगलुरु चली गईं और अब जिस काम को उन्होंने अंजाम दिया है, उसकी पूरी दुनिया कायल हो गई है.
बीआईटी मेसरा से रहा है आदित्य एल-1 की प्रोजेक्ट डायरेक्टर का नाता
निगार शाजी भारत के सोलर मिशन ‘आदित्य एल-1’ की प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं. आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जब आदित्य एल-1 मिशन ने सूर्य की कक्षा में जाने के लिए उड़ान भरी, तो देश ने पहली बार इस मेधावी महिला वैज्ञानिक को सार्वजनिक रूप से टेलीविजन पर लोगों को संबोधित करते हुए देखा. उनके एक ओर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख एस सोमनाथ खड़े थे, तो दूसरी तरफ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र कुमार सिंह. उनके संबोधन पर बार-बार तालियां बज रहीं थीं.
1987 में इसरो में काम करने पहुंचीं निगार शाजी
मास्टर्स की डिग्री लेने के बाद तमिलनाडु के तेनकासी की निगार शाजी ने वर्ष 1987 में इसरो ज्वाइन किया था. दो सितंबर को जब आदित्य एल-1 की सफल लांचिंग हो गई, उसके बाद निगार ने कहा- मेरा सपना पूरा हो गया. तमिलनाडु के किसान परिवार में जन्मीं निगार की शिक्षा-दीक्षा अंग्रेजी मीडियम स्कूल में हुई. सेंगोट्टाई के इंगलिश मीडियम हायर सेकेंड्री स्कूल में उन्होंने पढ़ाई की. बाद में उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई की. फिर मास्टर्स इन इंजीनियरिंग (एमई) की पढ़ाई के लिए वह रांची के बीआईटी मेसरा आ गईं. बीआईटी मेसरा के इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशंस डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर विशाल शाह ने बताया कि निगार ने वर्ष 1985 से 1987 तक यहां पढ़ाई की थी. यहां से मास्टर्स की डिग्री लेने के बाद वह इसरो पहुंच गईं.
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इसरो के सेटेलाइट टेलीमेट्री सेंटर का नेतृत्व कर चुकीं हैं निगार
निगार शाजी ने इसरो के सतीश धवन स्पेस सेंटर में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया. उन्होंने कम्युनिकेशन, सैटेलाइट, डिजाइन और कंट्रोल सिस्टम जैसे विभागों में काम किया. निगार शाजी नेशनल रिसोर्स मॉनिटरिंग एंड मैनेजमेंट के लिए तैयार किए गए इंडियन रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट रिसोर्ससैट-2ए की वह एसोसिएट प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहीं थीं. उन्होंने बेंगलुरु स्थित यूआर राव सेटेलाइट सेंटर में भी काम किया. इसरो के बेंगलुरु स्थित सेटेलाइट टेलीमेट्री सेंटर का नेतृत्व वह कर चुकीं हैं.
ऐसा है निगार का परिवार
निगार का जन्म तमिलनाडु और केरल की सीमा पर स्थित तेनकासी जिले के सेनगोत्ताई नगर में हुआ. उनके पिता शेख मीरान किसान थे. उनकी मां का नाम साईतून बीबी है, जो एक गृहिणी हैं. निगार शाजी के दो बच्चे हैं. उनके पति भी वैज्ञानिक हैं. वह खाड़ी देश में काम करते हैं. निगार अपनी बेटी और मां के साथ बेंगलुरु में रहतीं हैं. घर में जब भी कोई पारिवारिक कार्यक्रम होता है, तो वह गांव जरूर आतीं हैं. निगार का एक बेटा नीदरलैंड में वैज्ञानिक है. निगार के पिता का 30 साल पहले निधन हो गया.
निगार शाजी का भी है झारखंड कनेक्शन
अब तक लोगों को यही पता था कि झारखंड की राजधानी रांची में स्थित हेवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन (एचईसी) और मेकॉन ने इसरो के लिए सबसे बड़ा लांच पैड बनाया है. इस लांच पैड से न जाने कितने उपग्रहों का इसरो ने अब तक प्रक्षेपण किया है. लांच पैड की डिजाइन मेकॉन के इंजीनियर्स ने तैयार की. एचईसी, टाटा स्टील समेत झारखंड और देश की कई कंपनियों ने इसरो के लिए उपकरण तैयार किए. झारखंड को अब तक सिर्फ उपकरण और इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में अपनी भूमिका पर गर्व था. इसमें एक और तमगा जुड़ गया है. देश की जिस बेटी ने आदित्य एल-1 मिशन को कामयाब बनाया है, उसने दक्षिण भारत से आकर हमारे झारखंड में एमई की पढ़ाई की थी. निगार शाजी दो साल तक रांची में रहीं.