रांची : राज्य में मनरेगा के तहत स्वीकृत 56,191 सिंचाई कुओं में से अब तक 51,347 कुआं धरातल पर नहीं उतर पाये हैं. सरकारी भाषा में यह ‘चालू योजना’ है यानी काम हो रहा है और पैसों की निकासी हो चुकी है. धरातल पर अब तक नहीं उतर पानेवाले कुआं कुल स्वीकृत योजना का 91 प्रतिशत हैं और इन पर 1500-1800 करोड़ रुपये खर्च होंगे.
लातेहार ने कुआं निर्माण में 20 प्रतिशत उपलब्धि हासिल की है, जो सबसे ज्यादा है. 16 जिलों में 10 प्रतिशत कुओं का निर्माण भी नहीं हो सका है. राज्य में मनरेगा के तहत सिंचाई कुआं बनाया जाता है. सरकार के आंकड़ों में वित्तीय वर्ष 2018-19 से 2021-22 तक राज्य के सभी जिलों में सिंचाई के लिए कुल 56,191 कुओं की योजना स्वीकृत की गयी. इसमें से अब तक सिर्फ 4,844 कुओं का निर्माण ही पूरा हो सका है. यानी 51,347 कुएं अब तक धरातल पर नहीं उतरे हैं.
सरकारी दस्तावेज में इसे चालू योजना के रूप में दर्शाया गया है. यानी कुआं बनाने का काम जारी है. सरकार द्वारा लागू इस्टीमेट के आलोक में इतने कुओं के निर्माण पर कुल 1500-1800 करोड़ रुपये खर्च होंगे. कुओं के नाम पर इतनी राशि की निकासी हो चुकी है. क्योंकि राज्य में लागू वित्त नियमावली के आलोक में एक वित्तीय वर्ष के लिए स्वीकृत योजना के पैसों की निकासी दूसरे वित्तीय वर्ष में नहीं हो सकती है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2018-19 से 2020-21 तक की अवधि में राज्य के सभी जिलों में मनरेगा के तहत सिंचाई कुआं की कुल 49,785 योजनाएं स्वीकृत की गयी थीं.
इसके बाद चालू वित्तीय वर्ष यानी 2021-22 में कुल 6406 योजनाएं स्वीकृत की गयी हैं. इस तरह चार वर्षों के दौरान कुल स्वीकृत 56,191 कुओं में से अब तक सिर्फ 4,844 कुएं ही बन सके हैं, जो कुल स्वीकृत योजना का सिर्फ नौ प्रतिशत ही हैं. यानी 91 प्रतिशत कुएं अब तक धरातल पर नहीं उतरे हैं. जिलों में स्वीकृत योजना के मुकाबले सबसे ज्यादा उपलब्धि (20 प्रतिशत) लातेहार जिले की है. इस मामले में सबसे खराब स्थिति देवघर और सरायकेला की है. इन जिलों में कुल स्वीकृत कुओं के मुकाबले सिर्फ चार प्रतिशत का ही निर्माण पूरा हो सका है.
मनरेगा योजना के तहत कुआं के लिए राज्य में दो माॅडल इस्टीमेट लागू है. माॅडल इस्टीमेट में दोनों ही कुओं का डायमीटर (व्यास) 12 फुट और गहराई 35 फुट तय किया गया है. जिस कुआं के निर्माण में बोल्डर का इस्तेमाल होगा, उसकी लागत 2.96 लाख रुपये निर्धारित है. जिस कुआं के निर्माण में बोल्डर के साथ ईंट का भी इस्तेमाल होगा, उसकी लागत 3.68 लाख रुपये निर्धारित की गयी है.
2.96 लाख की लागत के कुआं निर्माण में 916 मानव दिवस और 3.68 लाख लागत के कुआं में 932 मानव दिवस के सृजन का प्रावधान है. यानी एक कुआं के निर्माण के लिए अधिकतम करीब तीन महीने का समय निर्धारित है. राज्य में लागू इस्टीमेट के हिसाब से अब तक धरती पर नहीं उतरनेवाले कुआं पर 1500-1800 करोड़ रुपये खर्च होंगे. कुआं पूरा करने के लिए निर्धारित तीन महीने के समय के मुकाबले चार साल में सिर्फ नौ प्रतिशत कुएं ही धरातल पर उतर सके हैं.
लातेहार 2960 581 20%
साहबगंज 1244 219 18%
सिमडेगा 1154 148 13%
पाकुड़ 1787 224 13%
रांची 4717 544 12%
गोड्डा 2749 313 11%
रामगढ़ 1946 209 11%
गढ़वा 5606 548 10%
पलामू 2904 251 09%
धनबाद 1033 86 08%
लोहरदगा 948 73 08%
खूंटी 1352 100 07%
कोडरमा 353 26 07%
गुमला 3585 264 07%
प सिंहभूम 991 69 07%
चतरा 2228 141 06%
पू सिंहभूम 375 23 06%
बोकारो 3027 185 06%
जामताड़ा 2562 145 06%
गिरिडीह 4289 229 05%
हजारीबाग 3229 157 05%
दुमका 2314 106 05%
देवघर 3986 173 04%
सरायेकला 852 30 04%
Posted by : Sameer Oraon