तौफीक आलम, मांडर
रांची जिले के मांडर प्रखंड की कैंबो पंचायत के आदिवासी बहुल गांव गुड़गुड़जाड़ी के दर्जनों घरों में ताले लटके हुए हैं. स्थानीय स्तर कोई रोजगार और काम नहीं होने की वजह से गांव के कई लोग सपरिवार गांव छोड़ कर दूसरे राज्यों में पलायन कर गये हैं. गांव की आबादी 3000 से अधिक है. इनमें से 1000 लोग हर साल एक निश्चित अवधि के लिए रोजगार की तलाश में गांव छोड़ देते हैं.
गांव के रामबिलास पाहन के अनुसार, यहां खेतीबाड़ी की स्थिति भी ठीक नहीं है. मनरेगा से भी कोई काम नहीं हो रहा है. गांव के ही सुनील भगत ने बताया कि उसने छह माह पहले ही सिंचाई कूप के लिए आवेदन दिया है, पर उसे कूप नहीं मिला है. ग्राम प्रधान करमू उरांव ने बताया कि गांव से हर साल बड़े पैमाने पर पलायन होता है. कुछ घरों में सिर्फ बुजुर्ग व बच्चे मौजूद रहते हैं. उन्होंने बताया कि गांव में मनरेगा से पांच-छह सिंचाई कूप के निर्माण की स्वीकृति मिली है. लेकिन, उसका वर्क ऑर्डर नहीं मिला है. मुखिया प्रतिनिधि शंकर उरांव ने कहा कि गुड़गुड़जाड़ी में मनरेगा से वर्तमान में रोजगारपरक कोई काम नहीं हो रहा है. ग्रामीणों के पलायन मामले में मांडर बीडीओ मनोरंजन कुमार ने कहा कि अगर वहां मनरेगा का कोई काम नहीं चल रहा है, तो अविलंब काम शुरू कराया जायेगा.
महादेव उरांव, सूरज उरांव, पुनीत उरांव, रंजीत उरांव, मैसा उरांव, चारो उरांव, संजय उरांव, सुनील उरांव, पेरो उरांव, लिया उरांव, पांडु उरांव, सकलू उरांव, गंदू उरांव, बुदू उरांव, दया उरांव, बिल्लू उरांव, लोथे उरांव, सोमा उरांव, बबलू उरांव, सोमे उरांव, जॉर्ज उरांव, विराज उरांव, राजेंद्र उरांव और अन्य
Also Read: रांची : रिम्स में पांच वर्ष में भी शुरू नहीं हो सका 310 बेड का आश्रय गृह
गुड़गुड़जाड़ी गांव में फिलहाल कोई भी विकास योजना लंबित नहीं है. पिछले वित्तीय सत्र में मनरेगा से कुछ लोगों को सिंचाई कूप मिला था, जो पूरा हो चुका है. गांव के अधिकांश लोगों की जीविका का आधार खेती है. पिछले दो साल से अल्पवृष्टि के कारण यहां खरीफ फसल नहीं के बराबर हुई है. बारिश के अभाव में गुड़गुड़जाड़ी व कैंबो चौरा में 100 एकड़ से अधिक खेत में धान का बिचड़ा पड़ा रह गया. ग्राम प्रधान करमू उरांव बताते हैं कि पिछले दो साल से गांव से अधिक संख्या में पलायन हो रहा है. गांव में ही उत्क्रमित मध्य विद्यालय है, जिसके चलते बच्चे पढ़ने-लिखने में रुचि रखते हैं. गांव में साक्षरता की दर करीब 30% से 40% है. हालांकि, गांव के एक दर्जन युवक सेना व झारखंड पुलिस में कार्यरत हैं. गांव में कुछ लोगों को केसीसी का लोन मिला है, लेकिन व्यवसाय को लेकर किसी को भी बैंक से लोन नहीं मिला है.
पलायन को रोकने के लिए प्रॉपर प्लानिंग की जरूरत है. मांडर विधानसभा के चार प्रखंडों में पिछले दो साल के सूखे के कारण फसल नहीं हो पायी है. वर्षा आधारित खेती पर निर्भर रहने के कारण लोग पलायन कर रहे हैं. हालांकि, हमारी सरकार ने सुखाड़ प्रभावित किसानों को 3500 रुपये सूखा राहत के रूप में देने की घोषणा की है.
– शिल्पी नेहा तिर्की, विधायक, मांडर