Ranchi News: झारखंड में नवंबर माह के पहले सप्ताह से प्रवासी पक्षियों का आना शुरू हो जाता है. राज्य में कई ऐसे जलाशय हैं, जहां विदेशी पक्षियां आती हैं. इनके आने का सीजन नवंबर से लेकर जनवरी तक है. इस दौरान इन पर नजर रखी जाती है. देखा जाता है कि कौन-कौन की पक्षियां झारखंड आती है. इसके लिए 2015 से लेकर 2018 तक वन विभाग ने पहल शुरू की थी.
पक्षियों पर नजर रखने के लिए एजेंसियां या निजी लोगों से संपर्क कर पक्षियों की फोटोग्राफी करायी जाती थी. पिछले तीन साल से यह पहल नहीं हो रही है. इस कारण पक्षियों के आने की आधिकारिक सूचना नहीं मिल पाती है. 2018 तक वन विभाग सभी जिला वन प्रमंडल पदाधिकारियों को एक निर्देश देता रहा है कि इस काम के लिए एजेंसी के लोगों को हर तरह की सुविधा दी जाये. इस काम में लगने वाले लोगों के रहने, खाने की व्यवस्था के साथ-साथ उनके आने-जाने की व्यवस्था भी करनी होती है. जहां प्रवासी पक्षियां आती हैं, वहां के वातावरण को पक्षियों के अनुकूल तैयार कराया जाता है.
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बीते साल (2021) में नियो ह्यूमन फाउंडेशन के सत्यप्रकाश की टीम ने बीते साल निजी स्तर पर कई डैमों में प्रवासी पक्षियों की गणना की थी. इसमें पहली बार इनको तिलैया डैम में ग्रेटर फ्लैमिंगो मिली थी. इसमें टैग भी लगा हुआ था. यह आम तौर पर राजस्थान या मुंबई में पायी जाती है. झारखंड के जलाशयों में यह पहली बार पायी गयी थी. ओड़िशा के चिल्का में भी यह पक्षी अक्सर दिखती है. सत्य प्रकाश कहते हैं कि मंगोलिया की बार हेडेट गुज भी दिखी थी. यह हटिया, कोनार और तिलैया डैम में दिखी थी. उनका कहना है कि 2015 से 2018 तक बर्ड सेंसस कराया गया था. इसमें वन विभाग की टीम के साथ मिल कर नियो फाउंडेशन ने काम किया था. इससे कई प्रकार की नयी प्रजातियों की पक्षियों का पता भी चला था. इसके लिए राशि भी खर्च नहीं होती है. केवल इस दिशा में काम करनेवाली संस्थाओं को कुछ सहयोग की जरूरत होती है. वन विभाग को बायोडायवर्सिटी की जानकारी और संरक्षण के लिए इस दिशा में काम करना चाहिए.
वन विभाग में पीसीसीएफ वन्य प्राणी का पद दो माह से खाली है. इस पद से आशीष रावत ने वीआरएस ले लिया है. इसके बाद से इस पद पर किसी की नियुक्ति नहीं हुई है. पीसीसीएफ वन्य प्राणी के स्तर से ही बर्ड सेंसस का काम होता रहा है.
वन विभाग के पूर्व मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी कमलेश पांडेय कहते हैं कि बायोडायवर्सिटी में सभी प्राणियों का महत्व है. जब बीसी निगम पीसीसीएफ (वन्य प्राणी) थे, तो लगातार बर्ड सेंसस कराया गया था. इससे यह पता चलता है कि देश में या राज्य में किस तरह की पक्षियां आ रही हैं. कोई ऐसी पक्षी तो नहीं आ रही है, जो लुप्त प्राय: है. अगर ऐसा है तो नीति बनाने वालों को उनके संरक्षण के लिए प्रयास करना पड़ता है. अगर किसी पक्षी की संख्या बढ़ रही है, तो यह पता चलता है कि यहां का वातावरण पक्षियों की जनसंख्या बढ़ाने के अनुकूल है.
रिपोर्ट : मनोज सिंह