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शिक्षा-सेवा कार्यों के लिए विदेशों में जा रहे झारखंड के मिशनरी

झारखंड के करीब नौ मिशनरी बाहर के देशों में मिशन के कार्य कर रहे हैं.

रांची : वह दो नवंबर 1845 की तारीख थी, जब पहले पहल चार जर्मन मिशनरी रांची पहुंचे थे. उसके बाद एंग्लिकन, कैथोलिक और अन्य मिशनरी भी झारखंड पहुंचे और सेवकाई का काम शुरू किया. मिशनरियों ने झारखंड में सिर्फ चर्च ही नहीं बनाये, बल्कि स्कूल और अस्पताल भी खोले. उन्होंने स्वास्थ्य, सुसमाचार प्रचार और शिक्षा के क्षेत्र में काम किया. उनके काम का समाज में व्यापक प्रभाव पड़ा है. इसके बाद जो हुआ, वह इतिहास है. इन मिशनरियों के बनाये संस्थान आज भी काम कर रहे हैं.

झारखंड में मिशनरियों के आगमन के तकरीबन 179 वर्ष पूरे हो चुके हैं और अब इतिहास बदला जा रहा है. अब झारखंड से मिशनरी सेवा कार्यों के लिए बाहर के देशों में जा रहे हैं. ‘सोसाइटी ऑफ जीसस’ के प्रोविंशियल फादर अजीत खेस बताते हैं कि झारखंड के करीब नौ मिशनरी बाहर के देशों में मिशन कार्यों को अंजाम दे रहे हैं. बाहर जानेवालों में तीन लोग- फादर मनोज एक्का, फादर रजत हस्सापूर्ति और ब्रदर जोसेफ सोरेंग कंबोडिया में कार्यरत हैं. इसके अलावा ब्रिटिश गुयाना में फादर अमर बागे और फादर इलियास सुरीन सेवा कार्य कर रहे हैं. जार्डन में फादर विमल केरकेट्टा काम कर रहे हैं. रोम में फादर दिलीप संजय एक्का, फादर अनसेलम एक्का और फादर प्रेम खलखो अपनी सेवाएं दे रहे हैं. जापान के नागासाकी में ब्रदर प्रियतम लकड़ा काम कर रहे हैं. ब्रिटिश गुयाना और कंबोडिया में गये धर्मसमाजी शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. वे वहां पर सामाजिक कार्य भी कर रहे हैं. फादर दिलीप संजय एक्का वेटिकन रेडियो में काम कर रहे हैं. फादर प्रेम ग्रेगोरियन यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे हैं. ऐसे ही अन्य देशों में गये मिशनरी भी शिक्षा, सुसमाचार प्रचार और सामाजिक कार्यों में जुटे हैं. जीइएल चर्च से भी एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत झारखंड के लोग जर्मनी में जाकर वहां के संस्थानों और मिशन कार्यों में सहायता कर रहे हैं.

विदेशों तक पहुंचा रहे भारतीय संस्कृति

फादर अजीत कहते हैं इन घटनाओं में दो बातें महत्वपूर्ण हैं. पहली यह कि हम अब देने की स्थिति में आ गये हैं. हम पैसों से नहीं, पर अपने मिशनरियों को भेज सेवा कार्यों के जरिये उनकी मदद कर रहे हैं. दूसरी बात यह है कि हम उनलोगों को भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्य सिखा रहे हैं. विदेशों में खासकर पाश्चात्य देशों में लोग पारिवारिक और सामुदायिक मूल्यों को भूलते जा रहे हैं. हम उन्हें सिखा रहे हैं कि भारतीय संस्कृति क्या है और परिवार के साथ जुड़ना क्या होता है.

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