राजधानी रांची में नियम-कानून को ताक पर रखकर 2500 से अधिक मटन व चिकन दुकानों का संचालन किया जा रहा है. इन दुकानों में न तो नगर निगम की गाइडलाइन का पालन किया जाता है और न ही इन्होंने दुकान चलाने के लिए नगर निगम से किसी प्रकार का लाइसेंस लिया है. चौक-चौराहों व नालों के किनारे खुले में इसका संचालन हो रहा है. वहीं, नगर निगम के अधिकारी भी कार्रवाई नहीं करते हैं. अब झारखंड हाइकोर्ट के आदेश के बाद ऐसी दुकानों पर लगाम लगने की उम्मीद जगी है.
मांस-मछली दुकानों के लिए गाइडलाइन
मांस-मछली दुकानों के लिए नगर निगम ने पूर्व में गाइडलाइन जारी की थी. इसके तहत खुले में पशु काटकर टांगने पर रोक लगायी गयी थी. इसके लिए सभी दुकानों के बाहर काला शीशा लगाने का निर्देश दिया गया था. वहीं, काटने के बाद उस पर धूल व गंदगी न चिपके, इसके लिए कपड़े से ढंक कर रखने का निर्देश दिया गया था. इसके अलावा मीट, चिकन व मछली का अवशेष खुली नाली में बहाने पर रोक थी. उपरोक्त प्रक्रिया पूरी करने वाले दुकानदारों को ही निगम ने लाइसेंस देने का प्रावधान किया था. लेकिन, निगम के इस आदेश का असर यह हुआ कि दुकानदारों ने लाइसेंस लेना ही बंद कर दिया.
तीन वर्षों में एक भी दुकानदार ने नहीं लिया लाइसेंस
नगर निगम की स्वास्थ्य शाखा से प्राप्त जानकारी के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में किसी भी दुकानदार ने निगम से लाइसेंस ही नहीं लिया है. वहीं, निगम की ओर से भी किसी प्रकार का अभियान चला कर ऐसे दुकानदारों पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी.
लोगों को नहीं मिल रहा स्लॉटर हाउस का लाभ
आम लोगों को साफ-सुथरा व हाइजेनिक मीट मिले, इसके लिए 18 करोड़ की लागत से कांके में स्लॉटर हाउस का निर्माण किया गया है. लेकिन, खुले में कट रहे खस्सी व बकरे पर किसी प्रकार की रोक नहीं होने के कारण लोग आज भी धड़ल्ले से सड़क किनारे की दुकानों से ही मीट खरीद रहे हैं. अगर इन दुकानों पर रोक लगती, तो पूरे शहर की मीट दुकानों में स्लॉटर हाउस से मांस की सप्लाई होती.