मनोज सिंह, रांची.
राजधानी से 50 किलोमीटर दूर सिमडेगा रोड में करीब 14 एकड़ का मृदा फार्म है. तीन साल पहले शुरू किये इस फार्म में आज दर्जन भर से अधिक फलों की वेराइटी है. इसको एग्रो टूरिज्म के रूप में विकसित करने की योजना है.यहां की स्ट्रॉबेरी की मांग बिहार में भी
महाराष्ट्र से आकर झारखंड की मिट्टी का महत्व इसके केयर टेकर निलेश बता रहे हैं. हार्प प्लांडू के पूर्व प्रधान डॉ एस कुमार की देखरेख में वह विशाल जायसवाल की जमीन पर काम कर रहे हैं. अब यहां से लाखों रुपये के फल राज्य के प्रमुख आउटलेट में जा रहे हैं. राज्य के करीब-करीब सभी बड़े शहरों में यहां की ही स्ट्रॉबेरी है. दो दिन पहले ही यहां की स्ट्रॉबेरी बिहार भेजी गयी गयी है. बिहार में इसकी अच्छी मांग है.
खूंटी के कुंजला गांव में है मृदा फार्म
खूंटी के कुंजला गांव में स्थित मृदा फार्म का संचालन नंदी ग्रीन सॉल्यूशन कर रहा है. यहां दो एकड़ में अमरूद, दो एकड़ में ड्रैगन फ्रूट, दो एकड़ में शरीफा, एक एकड़ में नीबू, एक एकड़ में चीकू, एक एकड़ में पाइन एप्पल, एक एकड़ में अंजीर, दो एकड़ में पपीता, एक एकड़ में आम (केसर भोग, आम्रपाली, दशहरी) की खेती हो रही है. इसके अतिरिक्त यहां सफेद जामुन और काला जामुन के पेड़ भी हैं. इसके अतिरिक्त करीब एक एकड़ में मिक्स फ्रूट की खेती हो रही है. यहां सेब के भी कई पौधे लगाये गये हैं. इसका फल भी आ रहा है. वहीं, स्ट्रॉबेरी की 26 वेराइटी है.
पुणे से आता पौधा
पुणे (महाराष्ट्र) में निलेश की पौधों की नर्सरी है. वहीं, से पौधे लाये जा रहे हैं. कुछ फलों का मदर प्लांट भी यहां तैयार किया जा रहा है. यहां की स्ट्रॉबेरी के पौधे भी राज्य में कई स्थानों पर लगाये जा रहे हैं. विशाल के अनुसार, उनके उत्पाद की बाजार में अच्छी मांग है. यहां वैज्ञानिक तरीके से खेती की जाती है. इसमें हार्प प्लांडू के पूर्व प्रमुख डॉ एस कुमार तकनीकी सहयोग कर रहे हैं. उनकी प्रेरणा से ही यहां इसकी खेती शुरू की गयी है. अभी तक इस फार्म में सरकारी सहयोग नहीं लिया जा रहा है. फलों की आधुनिक खेती करने वालों को तकनीकी सहयोग भी दिया जाता है.
सभी जिलों में इस तरह का प्लॉट विकसित करने का निर्देश
कृषि विभाग के सचिव अबु बकर सिद्दीख ने हाल ही में इस फार्म का दौरा किया था. इसके बाद उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया कि इसी तरह का एक फार्म हर जिले में विकसित किया जाना चाहिए. इसके लिए सरकार की स्कीम का भी उपयोग किया जाना चाहिए. इससे स्थानीय किसानों को जोड़ा जा सकता है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है