झारखंड में क्यों नहीं है मदर्स मिल्क बैंक, जानिए कारण

करीब दो वर्ष पहले झारखंड में भी मिल्क बैंक खोलने की तैयारी स्वास्थ्य विभाग ने की थी, लेकिन दो साल बाद भी इसकी प्रक्रिया अभी फाइलों में ही लटकी हुई है. झारखंड में पांच वर्ष से कम उम्र के 9.1 फीसदी बच्चे काफी कमजोर हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | August 1, 2023 11:35 AM

एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट कहती है कि झारखंड में पांच वर्ष से कम उम्र के 9.1 फीसदी बच्चे काफी कमजोर हैं. उनका वजन ऊंचाई के अनुसार बेहद कम है. वहीं 39.4 फीसदी बच्चों का वजन उम्र के हिसाब से कम है. यह आंकड़ा शहर में 30 फीसदी, तो ग्रामीण क्षेत्रों में 41.4 फीसदी पहुंच जाता है. इसका एक प्रमुख कारण है कि इन बच्चों को पर्याप्त मात्रा में मां का दूध नहीं मिल पाया. ऐसी ही मिलती-जुलती स्थिति देश के दूसरे राज्यों में भी है, लेकिन कई राज्यों ने इससे लड़ने के लिए मदर्स मिल्क बैंक बना लिया है, तो यह है एक बड़ा सवाल….

खुलना था मिल्क बैंक लेकिन दो साल में टेंडर प्रक्रिया भी पूरी नहीं हुई

करीब दो वर्ष पहले झारखंड में भी मिल्क बैंक खोलने की तैयारी स्वास्थ्य विभाग ने की थी, लेकिन दो साल बाद भी इसकी प्रक्रिया अभी फाइलों में ही लटकी हुई है. सितंबर 2021 में स्वास्थ्य सचिव अरुण कुमार सिंह ने घोषणा की थी कि झारखंड में भी मिल्क बैंक को स्थापित किया जायेगा. मिल्क बैंक में माताएं अपना दूध दूसरे बच्चों के लिए दान करेंगी. दान में मिले दूध को छह माह से नीचे के वैसे बच्चों को दिया जायेगा, जो मां के दूध से वंचित होंगे. पायलट प्रोजेक्ट के तहत इसकी शुरुआत रांची रिम्स और सदर अस्पताल से करने की योजना बनायी गयी थी, लेकिन मैन पावर की कमी के कारण योजना इंतजार कर रही है.

मदर मिल्क बैंक है क्या

इसमें नवजात शिशुओं के लिए मां का दूध मुहैया कराया जाता है. पाश्चराइजेशन यूनिट, रेफ्रिजरेटर, डीप फ्रीज और आरो प्लांट जैसी तकनीक का उपयोग कर दूध को छह महीने तक स्टोर किया जा सकता है. मिल्क बैंक का उद्देश्य है शिशु और मातृ मृत्यु दर को कम करना.

इन जांचों से गुजरना पड़ता है

दान की गयी दूध की जांच होती है. सबसे पहले दूध दान करने आयी मां की एचआइवी, एचबीएसएजी, डब्ल्यूबीआरएल जैसी जांच होती है. दूध निकालने के बाद उसे -20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखा जाता है. फिर इस दूध का सैंपल लैब में भेजा जाता है.

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मां के लिए भी जरूरी है स्तनपान

स्तनपान से मां को ब्रेस्ट कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से सुरक्षा मिलती है. अंडाशय व स्तन कैंसर का खतरा कम होता है. स्तनपान कराने से मां का गर्भाशय तुरंत पूर्ण अवस्था में आ जाता है. साथ ही शरीर में खून की कमी नहीं रहती.

संतोषजनक नहीं है झारखंड में स्तनपान की स्थिति

झारखंड में स्तनपान की स्थिति संतोषजनक नहीं है. एनएफएचएस-5 के अनुसार तीन वर्ष से कम उम्र के बच्चों को जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान कराने का आंकड़ा शहरी इलाके में 22.5 और ग्रामीण इलाके में 21.3 प्रतिशत ही है. छह महीने से कम उम्र के बच्चे जिन्हें एक घंटे के अंदर मां का दूध मिल पाता है, उसका आंकड़ा शहरी क्षेत्र में 61.6 और ग्रामीण क्षेत्र में 78.6 प्रतिशत है. वहीं एनएफएचएस-4 की बात करें, तो उसके अनुसार तीन वर्ष से कम उम्र के बच्चों को जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान कराने की दर 33 प्रतिशत थी. जबकि एनएफएचएस-5 के यह आंकड़ा घटकर 21.5 प्रतिशत पर पहुंच चुका है.

मां के दूध के फायदे जानिए

स्तनपान से बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. प्री मैच्योर बच्चे जिनका जन्म समय से पहले होता है, उन्हें खतरनाक बीमारियों से सुरक्षा मिलती है. मां के दूध में प्रोटिन, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल, फैट की मात्रा सही होती है. इससे दिमाग और आंखों का विकास होता है. बच्चे का ग्रोथ बढ़ता है. इम्युनिटी बढ़ती है. डिहाइड्रेशन से मुक्ति मिलती है. मां और बच्चे के बीच अच्छा बॉन्डिंग बनता है. बच्चे का एलर्जी, ओबेसिटी से बचाव होता है. मां का दूध आसानी से पच जाता है. मां का दूध शिशु को सांस, दमा और त्वचा संबंधी रोगों से बचाता है.

कम वजनवाले बच्चों को मिल्क बैंक से मिलता है लाभ

स्तनपान से माताओं और नवजात शिशुओं को कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं. सफल स्तनपान की यात्रा प्रसव पूर्व अवधि के दौरान शुरू होती है. एनएफएचएस-5 (2019-21) में 15.5 प्रतिशत बच्चों को अभी भी प्री-लैक्टियल फीड मिलता है. वहीं भारत में हर साल 27 मिलियन बच्चे पैदा होते हैं, जिनमें से 10 मिलियन समय से पहले और जन्म के समय कम वजन के होते हैं. इन बच्चों को मदर मिल्क बैंक से मिलने वाले दूध पोषण प्रदान करता है. सामान्य वृद्धि और विकास को बढ़ावा देता है.

-डॉ विशाल, न्यूट्रेशन मैनेजर, बाल रक्षा भारत सेव द चिल्ड्रेन

मां का दूध बच्चों के लिए जीवन अमृत है. झारखंड में भी स्वास्थ्य विभाग द्वारा मदर मिल्क बैंक खोलने की तैयारी चल रही है. उम्मीद की जा सकती है कि रिम्स या सदर अस्पताल में जल्द शुरू होगा. इससे मां और बच्चों दोनों काे काफी फायदा होगा. मदर मिल्क बैंक ब्लड बैंक की तरह ही काम करेगा और बच्चों और मां के जीवन को सुरक्षित करेगा.

-डॉ अंजना झा, स्त्री रोग विशेषज्ञ

पालोना संस्था उन बच्चों के लिए काम करती है, जिन्हें लावारिश हालात में फेंक दिया जाता है. इनमें कई बच्चों को मां का दूध तक नहीं मिल पाता. यदि मदर मिल्क बैंक बन जाये, तो इन बच्चों की जिंदगी बच सकती है. वहीं झारखंड में अंधविश्वास की डोर भी मजबूत है. इस कारण कई मां जिनका अधिक दूध होता है, वह चाहकर भी नवजात शिशुओं को अपना दूध नहीं दे पाती.

-मोनिका आर्या, संस्थापिका, पालोना

यूनिसेफ झारखंड प्रमुख डॉ कनीनिका मित्र ने कहा कि यूनिसेफ हमेशा बच्चों के विकास के मुद्दे पर काम करता है. इसलिए बच्चों के विकास के लिए स्तनपान कराना बेहद जरूरी है. इसके लिए शहरी और ग्रमीण क्षेत्र में जागरूकता अभियान हमेशा चलाते रहना चाहिए. स्तनपान कराने से मां व बच्चे दोनों स्वाथ्य रहते हैं. मां के दूध में पोषक तत्व हैं, जिसके कारण बच्चों को कई बीमारियों से निजात मिलती है. वहीं स्तनपान कराने में समुदाय व परिवार का सहयोग भी आवश्यक है.

सदर अस्पताल में मिलता है स्तनपान का प्रशिक्षण

सुपर स्पेशियलिटी सदर अस्पताल को बेबी फ्रेंडली अस्पताल का दर्जा मिला हुआ है. यहां डब्ल्यूएचओ-यूनिसेफ की गाइडलाइन के तहत नयी बनीं माताओं को स्तनपान का प्रशिक्षण दिया जाता है. जागरूकता अभियान चलाया जाता है. विश्व स्तनपान सप्ताह पर बड़े स्तर पर कार्यक्रम होते हैं. साथ ही वर्ष भर डॉक्टर और नर्स की टीम माताओं को स्तनपान करने के लिए जागरूक करती है. प्रतिदिन एक घंटे स्तनपान कराने के तरीके और फायदे बताये जाते हैं. सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी जागरूकता कार्यक्रम होते हैं. स्पेशल वार्ड और एसएनसीयू के पास एक विशेष स्थान चिन्हित है, जहां शिशुओं को जन्म लेने के आधे घंटे के भीतर स्तनपान शुरू कराने में माताओं की मदद की जाती है. उन्हें बताया जाता है कि स्तनपान कैसे कराना है और इसे कैसे बनाये रखना है.

ऑपरेशन से मां बननेवाली महिलाओं को परेशानी

सदर अस्पताल में जून में 641 प्रसव कराये गये. वहीं, जुलाई में करीब 600 से ज्यादा माताओं ने अपने शिशु को मौके पर ही स्तनपान कराया. सी-सेक्सन ऑपरेशन से पहली बार मां बनी 277 महिलाओं में से 30 फीसदी को ब्रेस्ट फीडिंग में परेशानी हुई. हालांकि प्रशिक्षण मिलने के बाद बच्चों को दूध पिलाने में कामयाबी मिली.

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