Mother’s Day 2024: बच्चों की जिम्मेवारी संभालने के साथ ड्यूटी भी करती हैं झारखंड की ये महिलाएं, पढ़ें इनके जज्बे की कहानी

झारखंड की कई महिलाएं ऐसी हैं जो अपनी ड्यूटी के साथ अपने बच्चों की जिम्मेवारी संभालती हैं. मदर्स डे पर हम ऐसी महिलाओं की कहानी से आपको रू-ब-रू कराने जा रहे हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 12, 2024 10:57 AM

रांची : जिंदगी में मां के अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं. मां जीवन का हर किरदार निभाते हुए बच्चों की परवरिश करती हैं. आज के दौर में वर्किंग मदर्स के लिए बच्चों की परवरिश दोहरी चुनौती से पूर्ण होती है. लेकिन इसके बाद भी आज महिलाएं 24 घंटे बच्चों की जिम्मेवारी संभालने के साथ अपनी ड्यूटी को अंजाम देती हैं. अपनी मेहनत और लगन से बच्चों का भविष्य संवारने में जुटी रहती हैं. आज हम ऐसी ही झारखंड की वर्किंग मदर्स से आपको रू-ब-रू करा रहे हैं.

अस्पताल व घर के बीच सामंजस्य बना चलती हैं

डॉ अर्चना पाठक स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं. दो बच्चों की मां हैं. गुमला के हापा मुनीगांव की रहने वाली हैं. रांची से पढ़ाई हुई और मेडिकल की पढ़ाई महाराष्ट्र से की. लेकिन बच्चे होने के बाद भी उन्होंने चिकित्सा की उच्च शिक्षा जारी रखा. पिछले सात सालों से चिकित्सा के क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं. माना देवी लक्ष्मण मेमोरियल मेडीक्योर हॉस्पिटल में सेवारत हैं. डॉ अर्चना के दो बच्चे हैं. बड़ा बेटा एमबीबीएस कर रहा है. वहीं बेटी छठी कक्षा में हैं. कहती हैं कि हॉस्पिटल और घर के बीच हमेशा सामंजस्य बैठा कर चलती रहीं. बच्चों को क्वॉलिटी टाइम ही देती हैं. बेटा एमबीबीएस कर रहा है, तो ऐसे में बेटे को भी गाइड करती हैं. वर्किंग महिला डॉक्टर भी हो तो उन्हें बच्चों के दोस्त की तरह रहना चाहिए. समाज में मां का रोल बहुत बड़ा है. मां का शिक्षित होना भी बहुत जरूरी है. मां बच्चों की पहली गुरु होती हैं.

वकालत के साथ बेटी की जिंदगी संवार रहीं जिज्ञासा

अधिवक्ता जिज्ञासा अग्रवाल हाइकोर्ट में सेवा दे रही हैं. साढ़े तीन साल की बेटी हैं. छोटी बिटिया की परवरिश करने के साथ हाइकोर्ट और अपने गृहस्थ जीवन के बीच टफ ड्यूटी निभा रही हैं. जिज्ञासा महिला मुद्दों के मामलों को देखती हैं. इसलिए मां का किरदार बखूबी समझती हैं. वह कहती हैं कि मामलों में घंटों उलझने के बाद भी बेटी को क्वॉलिटी टाइम देने की कोशिश करती हैं. उसकी परवरिश में कोई कमी नहीं रह जाये, इसका प्रयास रहता है. दिन भर कोर्ट से घर और घर से कोर्ट के चक्कर लगते रहते हैं. बेटी और पूरे परिवार के लिए खुद खाना बनाती हैं. कल के लिए रात को ही अपना होम वर्क करके रखती हैं. वह कहती हैं कि एक मां ही सबकुछ कर सकती है.

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बैंक की ड्यूटी के साथ बेटे की देखभाल की भी जिम्मेदारी

आकांक्षा डेवलपमेंट बैंक ऑफ सिंगापुर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, इंदौर में कार्यरत हैं. दो महीने पहले ही मां बनी हैं. बेटे को जन्म दिया है. दो महीने के मातृत्व अवकाश के बाद वापस बैंक ज्वाइन करना है. इस क्रम में आकांक्षा बेटे की परवरिश के साथ काम करने के तौर तरीके को सीख रही हैं. मां शिक्षिका रही हैं . ऐसे में मां से प्रेरित होकर बच्चे के परवरिश के तौर तरीके को सीख रही हैं. आकांक्षा कहती हैं कि मां बनने के बाद महिला का जीवन बदल जाता है. बैंक की नौकरी कहने को आठ घंटे की होती है, पर उन्हें 12 घंटे तक की ड्यूटी निभानी पड़ती है. वर्किंग मदर हर कुछ कर सकती है.

मां की बातें मां की यादें
मां के जाने के दशकों बाद भी
जीवन की तपती धूप में
कुछ यूं ताजी हैं
जैसे सुर्ख गुलमोहर
यादें मां की
देती सुकूं दिल को
ज्यों छांव बरगद सी
सिलसिला कुछ ऐसा
मां की यादों का
कि खुद में सदा
अक्स उसी का पाया
मां तुम होती तो
ये कहती वो कहती
न न तुम तो हो
अभी भी
मुझमें और मेरी जाई में
अपनी खिलखिलाती हंसी लिए
संस्कारों का प्रवाह लिए
स्नेह ममता दुलार की धारा बहाती
गीत नवल धुन प्रेम के गाती
बदले जमाना या बदले रवानी
हर मां की तो बस यही कहानी.
-डॉ पूनम झा

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