‘मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना’ से राज्य पर खर्च का अतिरिक्त बोझ बढ़ा

मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना’ से राज्य पर खर्च का अतिरिक्त बोझ बढ़ा. इससे राज्य की आर्थिक स्थिति प्रभावित हुई. इस योजना से कृषि उत्पादकता में कोई वृद्धि नजर नहीं आती है.

By Pritish Sahay | March 3, 2020 4:12 AM

रांची : सदन में प्रस्तुत किये गये श्वेतपत्र में वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने बताया कि ‘मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना’ से राज्य पर खर्च का अतिरिक्त बोझ बढ़ा. इससे राज्य की आर्थिक स्थिति प्रभावित हुई. इस योजना से कृषि उत्पादकता में कोई वृद्धि नजर नहीं आती है. कृषि बीमा योजना का वास्तविक लाभ किसानों के बदले बीमा कंपनियों को मिला. रिपोर्ट में कहा गया है कि कॉमन कॉज और कोल बियरिंग एक्ट के तहत सीसीएल, बीसीसीएल और इसीएल पर कुल 65,000 करोड़ रुपये बकाया है. इस राशि की वसूली के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया है.

राज्य के लोक उपक्रमों को ‘सफेद हाथी’ करार दिया : श्वेतपत्र में राज्य के लोक उपक्रमों की चर्चा करते हुए इन्हें ‘सफेद हाथी’ करार दिया गया है. बिजली वितरण निगम लिमिटेड और बिजली संरचरण निगम लिमिटेड का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि उदय योजना के तहत 5,534 करोड़ रुपये अनुदान लेकर वितरण निगम को दिया गया था. उम्मीद की गयी थी कि निगम अपना एटीएंडसी लॉस 15 प्रतिशत के अंदर कर पायेगा, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सका. इस रकम की भरपाई की पूरी जिम्मेदारी राज्य सरकार पर है. बिजली संरचरण निगम लिमिटेड की योजनाओं का कुल बोझ 3,700 करोड़ रुपये का है.

भविष्य में इसमें और अधिक वृद्धि होने की संभावना है. बिजली वितरण निगम और संचरण निगम की सभी देनदारियों को जोड़ कर यह राशि 21,000 करोड़ होती है. लघु-कुटीर उद्योग, माटी कला बोर्ड आदि स्थापित किये गये, लेकिन उनको लाभप्रद बनाने का सार्थक प्रयास नहीं कर राजनीतिक चारागाह बना दिया गया. जेएसएमडीसी, झारक्राफ्ट, फॉरेस्ट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन जैसे सभी उपक्रम राज्य सरकार के संसाधनों पर आश्रित हैं.

रांची. श्वेत पत्र में कहा है कि पिछले पांच सालों में सरकार ने कुछ ऐसी योजनाएं स्वीकृत की, जिससे राज्य पर 33,000 करोड़ से अधिक का बोझ पड़ा. सरकार ने गहन अध्ययन के बिना ही इनको लागू किया. वर्तमान सरकार ने इन सभी योजनाओं को कम उपयोगी बताया है. योजनाएं राज्य सरकार की सात विभागों के माध्यम से संचालित की जा रही हैं. इन विभागों में आरइओ, पेयजल, पथ निर्माण, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा, नगर विकास, स्वास्थ्य, जल संसाधन व ऊर्जा विभाग शामिल हैं. सबसे ज्यादा 11,300 करोड़ देनदारी का बोझ ऊर्जा विभाग और सबसे कम 827 करोड़ उच्च एवं तकनीकी शिक्षा से पड़ा है.

देनदारी का ब्योरा

विभाग देनदारी

आरइओ 2,236

पेयजल 1,200

पथ निर्माण 8,000

उच्च शिक्षा 827

नगर विकास 1,508

स्वास्थ्य 2,100

जल संसाधन 6,008

ऊर्जा 11,300

सालों में वित्तीय कुप्रबंधन के 10 कारण

2014-15 में राज्य की विकास दर 12.5 फीसदी थी. 2015-16 के दौरान इसमें 6.2 फीसदी की कमी हुई. 2015-16 से 2018-19 के बीच यह गिर कर 5.7 फीसदी तक पहुंच गयी. पिछले पांच वर्षों में राज्य के स्रोत से राजस्व वसूली की औसत वृद्धि 10 फीसदी से कम रही. जबकि, बजट अनुमान में खर्च 12 फीसदी से अधिक बढ़ाया गया. 2016-17 के मुकाबले 2017-18 में वाणिज्य कर में 6.5 फीसदी, उत्पाद कर में 12.6 फीसदी, निबंधन में 22.7 फीसदी और भू-राजस्व में 35.1 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी. उत्पाद नीति में बदलाव कर खुद शराब बेचने से 1,000 करोड़ का नुकसान हुआ.

हर साल बजट में योजना खर्च को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया. लेकिन, वास्तविक खर्च कम हुआ. 2018-19 में योजना बजट और वास्तविक खर्च में 10,437.47 करोड़ का अंतर पाया गया. खर्च का लक्ष्य और वास्तविक खर्च में 22 प्रतिशत का अंतर पैदा हुआ है. ज्यादातर वर्षों में विकास योजना की राशि पीएल खाते में जमा कर दी गयी. पिछले पांच वर्षों में सरकार ने ज्यादा कर्ज लिया. डीवीसी का भुगतान करने के लिए 5,534 करोड़ रुपये उदय योजना के तहत कर्ज लिया गया. बिजली के क्षेत्र में भारी खर्च के बावजूद एटीएंडसी लॉस कम नहीं हो सका. बिजली के क्षेत्र से 21,000 करोड़ रुपये की देनदारी पैदा हो गयी. भारी ऋण की वजह से राज्य पर आर्थिक संकट गहरा गया.

जीएसटी लागू होने के बाद वाणिज्य कर से संबंधित अधिकार समाप्त हो गये. झारखंड को इससे नुकसान हुआ. केंद्र सरकार वादे के मुताबिक जीएसटी के घाटे की भरपाई नहीं कर रही है. इससे राज्य के सामने ओवरड्राफ्ट लेने या खर्च नहीं करने की मजबूरी पैदा हो गयी. केंद्र सरकार से अनुदान कम मिला. केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी में भी कटौती कर दी गयी है. केंद्र सरकार रेल परियोजनाओं के लिए किसी राज्य से राशि नहीं ले रही है. लेकिन, झारखंड पर पहले रेल परियोजनाओं की दो-तिहाई आर्थिक बोझ था. अब यह 50 प्रतिशत हो गया है.

बैंकों ने भी राज्य की उपेक्षा की. सीडी रेश्यो के लिए निर्धारित 60 प्रतिशत का लक्ष्य पूरा नहीं किया. पिछली सरकार ने राज्यहित के विपरीत केंद्र को लाभ पहुंचाने का निर्णय लिया. बिना निविदा आमंत्रित किये पतरातू थर्मल पॉवर प्लांट को ज्वाइंट वेंचर बना कर एनटीपीसी के हवाले कर दिया गया. जबकि, जमीन, पानी और कोल ब्लॉक झारखंड सरकार की है.

Next Article

Exit mobile version