साहित्य और कला जगत में मुंशी प्रेमचंद आज भी जीवित हैं. जब भी बात सामाजिक चेतना और ज्वलंत मुद्दों को साझा करने की हो, प्रेमचंद याद किये जाते हैं. बच्चों से लेकर उच्च शिक्षा की पढ़ाई से जुड़े युवाओं को उनकी कहानियां प्रेरित करती है. उनकी रचना न केवल समाज को आइना दिखाने का काम करती है, बल्कि आस-पास घटित हो रहे माहौल से जोड़ती है.
जमीनी विषयों पर उनकी पकड़ शायद ही कोई मुखर होकर रख पाया. सोमवार को हिंदी पट्टी के साहित्यकार प्रेमचंद की 143वीं जयंती मनाने को तैयार हैं. राजधानी के युवा साहित्यकार उन्हें कटु सत्य के प्रति प्रेरक मानते हैं. साथ ही उनका सामाजिक दर्शन लोगों को छल, ईर्ष्या और झूठ से दूरी बनाये रखने की प्रेरणा देता है.
मुंशी प्रेमचंद की रचनाएं क्रांतिकारी बनने के लिए प्रेरित करती हैं. कृतियों का अध्ययन करने पर सामाजिक चुनौतियाें से प्रत्यक्ष रूप से सामना होता है, जिसे भारतीय समाज लंबे समय से अनुभव करता रहा है. ये सामाजिक मुद्दे वर्तमान में भी प्रासंगिक हैं. मुंशी प्रेमचंद को गुजरे 87 वर्ष बीत गये, लेकिन उनके साहित्य में वर्णित चुनौतियां 21वीं सदी में अपना चोला बदलकर और अधिक गंभीर हो चुकी हैं.
वर्तमान समाज में लोग एकाकी और स्वार्थी जीवन जी रहे हैं. युवा पीढ़ी को उनकी सोच और विचारधारा को अपनाते हुए स्वयं को सत्य और समर्पण के भाव से पूर्ण करना होगा. समाज में अनैतिक गतिविधियां और भ्रष्टाचार जैसी कुरीतियां तभी दूर होंगी, जब व्यक्ति अपनी सोच प्रेमचंद के समान बना सकेंगे.
आम जीवन की जितनी परख और समझ प्रेमचंद को थी, उससे उन्होंने हिंदी साहित्य को नया रूप दिया. उनकी प्रत्येक रचना युवाओं को संदेश देती है. समय के अनुकूल कैसे जीना चाहिए और आनेवाली पीढ़ी के साथ कैसे सामंजस्य स्थापित की जाये, इसे मुंशी प्रेमचंद से सीखा जा सकता है. उनकी रचनाएं वर्तमान में भी प्रासंगिक हैं. गंभीर होकर विषयों को समझा जाये, तो सामाजिक सामंजस्य बनाना आसान होगा. मुंशी प्रेमचंद की सेवासदन से लेकर गोदान तक की यात्रा में सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीति, आर्थिक और कृषक जीवन की समस्याओं को समझना आसान है.
साहित्य जगत में कई कथाकार हैं, पर प्रेमचंद की लेखनी शिथिल अवस्था में पड़े युवाओं को जागरूक करती है. उनकी लिखी पंच परमेश्वर से युवा केवल स्वार्थ के लिए न जीकर न्यायपूर्ण बने रहने की सीख ले सकते हैं. इससे यह बात पता चलती है कि अगर लालच हावी हो जाये, तो लोग किस कदर झूठ बोलते हैं. एक झूठ के लिए अन्य कई बार झूठ का सहारा लेना पड़ता है, जो कि व्यक्ति के नाश का कारण बनता है. छायावादी युग के लेखक प्रेमचंद से डर को मन में हावी न करने की सीख मिलती है. साथ ही उपन्यास की कहानियों और उनके पात्र लोगों के बीच अपनी जगह बना सकते हैं. इनसे प्रेरित होना आसान है.
प्रेमचंद एक महान किस्सागो हैं. भारतीय समाज की किस्सागोई जिस तरह उनकी कहानियों और उपन्यासों में मिलती है, वह अद्भुत है. उनके कथा साहित्य में जगह, किस्से, पात्र, शब्द-भाषा का अद्भुत संयोजन है. अपने लेखन के जरिये से उन्होंने हिंदी कथा-साहित्य की दुनिया में यथार्थ समाज का वर्णन किया. छोटे या बड़े सभी आयुवर्ग के लोग प्रेमचंद को पढ़कर सीख ले सकते हैं. समाज की अच्छी-बुरी सभी परिस्थितियों का सच सामने रखना उनकी रचनाओं से सीखा जा सकता है. उनकी कहानियां संवेदनाएं गढ़ती हैं. ऐसा एक कुशल मनोविज्ञानी ही कर सकता है. उनका साहित्य जीवन की आलोचना करना सिखाता है.
कडरू निवासी कल्याण कुमार प्रेमचंद की कहानियों से काफी प्रभावित हैं. वह सिर्फ 17 वर्ष की उम्र में 10 किताब लिख चुके हैं. इनमें मैजिक ऑफ वर्ड्स, मेरी मंजिल, द जर्नी टू फ्रीडम, द आर्ट ऑफ पोइट्री (मोस्ट मोटिवेशनल बुक ऑफ ईयर 2021), द अंसेड फीलिंग्स, एक हसीन सफर, द रियूनियन, फ्रेम ऑफ इमेजिनेशन शामिल हैं. इसके अलावा पुस्तक ”बिगर एंड बेटर” को ऑस्ट्रेलियन बुकसेलर एसोसिएशन से बेस्ट बुक ऑफ द इयर-2023 और द राइटर ऑफ द इयर-2023 का पुरस्कार मिल चुका है. कल्याण कहते हैं : उनकी किताबें प्रेरणादायक कहानियों पर आधारित हैं, जिसे पढ़कर लोग निजी जीवन में प्रेरित हो सकेंगे. कल्याण फिलहाल गोस्सनर कॉलेज के इंग्लिश विभाग के छात्र हैं.
हरमू रोड निवासी वर्तिका गिरि युवा साहित्यकार के रूप में अपनी जगह बना रही है. वर्तिका कविता संग्रह के साथ लघु कथा लिखती हैं. अब तक दो पुस्तक अब लौट चले अनंत की ओर और रात के जुगनू का प्रकाशन हो चुका है. वर्तिका की पुस्तकों में सामाजिक चेतना, प्रकृति प्रेम, पर्यावरण संरक्षण और महिला दायित्व जैसे विषय हैं. उन्होंने कहा कि साहित्य से जुड़ाव बचपन में ही हुआ. मुंशी प्रेमचंद की कहानियां उन्हें सामाजिक विषयों से जोड़ने के लिए प्रेरित करती थीं. समय के साथ अपनी रुचि को आकार देना शुरू किया. पहली पुस्तक से सफलता मिली, जिसे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च एंड एजुकेशन सेंटर नयी दिल्ली ने सराहा. वर्तिका को अपकमिंग राइटर अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है.
कचहरी के कुमार शिवम का साहित्यिक लगाव उन्हें लेखक बनने के लिए प्रेरित करता है. उन्होंने कहा कि स्कूल के समय से मुंशी प्रेमचंद प्रिय साहित्यकार रहे हैं. उनकी कहानियों से सामाजिक जुड़ाव महसूस होता है. इससे ही लेखनी के प्रति प्रेरित हुए. आस-पास के लोगों से जुड़ सामाजिक विषय का चयन किया. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विवि में पढ़ाई के दौरान उनका पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ़ शिवम इन दिनों शृंगार रस पर आधारित कहानी लिख रहे हैं. इसमें कॉलेज डायरी और सामाजिक परिवेश में युवा मन की चर्चा होगी. शिवम की रचना की सराहना एमसीआरपीवी के वीसी प्रो केजी सुरेश और रजिस्ट्रार डॉ अविनाश बाजपेयी कर चुके हैं.
सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है, आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम जिंदगी है
जिस बंदे को दिन की पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए इज्जत और मर्यादा सब ढोंग है
देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता, उसके लिए सच्चा त्यागी होना पड़ेगा
आत्माराम, दो बैलों की कथा, आल्हा, इज्जत का खून, इस्तीफा, ईदगाह, कप्तान साहब, कर्मों का फल, क्रिकेट मैच, कवच, कातिल, कोई दुख न हो तो बकरी खरीद ला, गैरत की कटार, गुल्ली डंडा, घमंड का पुतला, ज्योति, जेल, जुलूस, झांकी, ठाकुर का कुआं, त्रिया-चरित्र, तांगेवाले की बड़, दंड, दुर्गा का मंदिर, पूस की रात, बड़े घर की बेटी, बड़े बाबू, बड़े भाई साहब, बंद दरवाजा, बोहनी, मैकू, मंत्र, सौत, नमक का दरोगा, सवा सेर गेहूं, कफन, पंच परमेश्वर
ये हैं प्रमुख उपन्यास : रूठी रानी, वरदान, सेवा सदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, प्रतिज्ञा, कर्मभूमि, गबन, गोदान