My Mati: मुंडारी में गांधीकथा लिखी थी स्वतंत्रता सेनानी भइया राम मुंडा ने
My Mati: स्वतंत्रता सेनानी भइया राम मुंडा का जन्म 11 जनवरी 1918 को खूंटी जिला के सेल्दा गांव में पिता गोपाल पाहन और मां चांदु के घर हुआ. भइयाजी के आधे से अधिक परिवार ने स्वतंत्रता आंदोलन में अपना योगदान दिया है.
My Mati: स्वतंत्रता सेनानी भइया राम मुंडा का जन्म 11 जनवरी 1918 को खूंटी जिला के सेल्दा गांव में पिता गोपाल पाहन और मां चांदु के घर हुआ. भइयाजी के आधे से अधिक परिवार ने स्वतंत्रता आंदोलन में अपना योगदान दिया है. पिता की मृत्यु वर्ष 1927 में हो गयी, जब वह सिर्फ नौ वर्ष के थे. भइया राम मुंडा का नामकरण (शकि नुतुम) उनके अपने चाचा के नाम पर हुआ था, जो कुछ पढ़े लिखे थे और शिक्षा का महत्व समझते थे. पिता की मृत्यु के बाद भतीजे की शैक्षणिक जिम्मेदारी चाचा ने ली और खूंटी के इंग्लिश स्कूल में दाखिला कराया. भइयाजी ने गरीबी और गुलामी का दौर देखा था. प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की.
राज्य में उनका दूसरा स्थान था. प्रोत्साहन के तौर पर राज्य सरकार द्वारा उन्हें 10 रुपये मासिक की छात्रवृत्ति मिली. इसी सहयोग राशि से भइयाजी ने एमए तक की शिक्षा प्राप्त की. परिवार के प्रति मां के समर्पण ने उन्हें नारी शिक्षा के महत्व के प्रति जागरूक किया. वह मानते थे कि आदिवासी समाज के लोग भूख से तो लड़ लेंगे, पर इस बदलती दुनिया में स्वयं को बचाकर रखने, समाज में अपना अस्तित्व बनाने और अपने अधिकारों को पाने का एकमात्र जरिया शिक्षा ही है.
आदिम जाति सेवा मंडल के गठन व विस्तार में निभायी महती भूमिका
1945 में जब डॉ राजेंद्र प्रसाद बिहार के आदिवासी व पिछड़ी जातियों के उत्थान के विषय को लेकर हजारीबाग आये, तब उन्होंने स्वाधीनता सेनानियों व शिक्षित आदिवासियों की खोज खबर ली. इसी दौरान उन्हें भइया राम मुंडा के बारे में जानकारी मिली, जो उन दिनों अनुमंडल न्यायालय, खूंटी में जज के पद पर कार्यरत थे. मुंडाजी को हजारीबाग बुलाया गया. दक्षिण बिहार के निवासियों के सामाजिक व शैक्षणिक उत्थान के लिए विचार विमर्श के दौरान ही एक संस्था के गठन का निर्णय लिया गया. परिणामस्वरूप आदिम जाति सेवा मंडल का गठन हुआ, जिसके पहले अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद बने और आजीवन सदस्य के रूप में भइया राम मुंडा को मनोनीत किया गया. आदिम जाति सेवा मंडल संस्थान द्वारा 500 आवासीय विद्यालयों को बनाने और विद्यालयों में सूदूर गांव के आदिवासी बच्चों को दाखिला कराने का जिम्मा लिया गया.
मंडल के अंतर्गत छोटानागपुर के पांच जिले-रांची, सिंहभूम, पलामू, मानभूम व हजारीबाग के विभिन्न आदिवासी क्षेत्रों में प्राथमिक, मध्य व उच्च विद्यालय और छात्रावास का निर्माण किया गया. भइयाजी को खूंटी सबडिवीजन का भार सौंपा गया था. एक अभिभावक के रूप में उन्होंने समाज के सैकड़ों युवाओं को शिक्षा के लिए उत्प्रेरित किया और स्कूल कॉलेजों में उनका दाखिला कराया. उच्च शिक्षा के लिए भी प्रेरित किया. 1950 के दशक में उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में काम करना शुरू किया. 70 के दशक तक खूंटी, गुमला, लोहरदगा, तमाड़, कर्रा, सिमडेगा आदि क्षेत्रों में कई पढ़े-लिखे आदिवासी युवा अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयार थे. 1978 में उन्हें आदिम जाति सेवा मंडल का प्रधानमंत्री के पद के लिए चुना गया था.
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गांव के बच्चों के सामाजिक अभिभावक
भइयाजी ने अपनी जवाबदेही एक सामाजिक अभिभावक के रूप में निभायी. खूंटी, लोहरदगा, गुमला आदि के गांवों में पढ़े लिखे आदिवासी युवाओं की एक दूसरी पंक्ति तैयार हुई. इनमें पद्मश्री डॉ राम दयाल मुंडा, पद्मभूषण कड़िया मुंडा, स्व चमरा मुंडा, स्व रामदी मुंडु, खूंटी के भूतपूर्व महापौर स्व मदिराय मुंडा, भूतपूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष रानी टूटी, विधायक स्व खुदिया पाहन, विधायक स्व गोमेश्री मानकी जैसे नाम शामिल हैं. दो जनवरी 2001 को निवारणपुर स्थित आदिम जाति सेवा मंडल में भइयाजी का निधन हुआ.
भूदान आंदोलन में बड़े-बड़े जमींदारों से दान में जुटायी हजारों एकड़ जमीन
वर्ष 1966 मे बिहार के विभिन्न क्षेत्र में आये भीषण अकाल के दौरान जयप्रकाश नारायण द्वारा संचालित बिहार रिलीफ कमेटी में भइयाजी को रांची जिला का कार्यभार सौंपा गया. भूदान कार्यक्रम के लेकर विनोवा भावे दो बार रांची आए थे. उनके काम से प्रभावित होकर भैयाजी ने भी इस कार्यक्रम में सक्रिय हिस्सा लिया और बड़े-बड़े जमींदारों से दान में हजारों एकड़ जमीन प्राप्त की.
राजनीतिक सफर
1950-52 में वे रांची जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चुने गये और दो बार बिहार प्रदेश कांग्रेस के सदस्य, दो बार अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य, एक बार बिहार प्रदेश कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य और 1969 में कांग्रेस प्रत्याशी चयन समिति के सदस्य भी बनाये गये. उन्हें बिहार सरकार ने अनुसूचित जनजाति परामर्शदात्री समिति का सदस्य, सांस्कृतिक परिषद एवं वन सलाहकार समिति का सदस्य, अनुसूचित जनजाति छात्रवृत्ति समिति का सदस्य मनोनीत किया. रांची विश्वविद्यालय के सीनेट सदस्य भी रहे. आकाशवाणी रांची के सलाहकार समिति के आजीवन सदस्य रहे. बिहार सरकार द्वारा जिला शिक्षा परिषद, जिला विकास समिति और जिला भ्रष्टाचार निरोधक समिति के सदस्य भी नियुक्त किये गये.
1967 में तमाड़ निर्वाचन क्षेत्र से विधान सभा सदस्य और 1972-78 तक राज्यसभा सदस्य चुने गये. उन्होंने 1976 में कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार मंत्रालय के अंतर्गत आदिम जनजाति और आदिम जाति के लिए मंत्रालय के रिक्त पदों पर नियुक्त करने की अनुशंसा की. वित्त मंत्रालय, बैंकिंग विभाग, भारत के बैंकों में अनुसूचित जनजाति व अनुसूचित जाति परिवीक्षाधीन अधिकारी (प्रोबेशनरी ऑफिसर) को नियुक्त करने की वकालत की. प्रयास किया कि राष्ट्रीयकृत बैंक के निदेशक के पद पर अनुसूचित जनजाति/जाति के व्यक्ति की नियुक्ति हो पाये. रांची और नई दिल्ली के लिए एक्सप्रेस रेल की मांग की. कुष्ठ उन्मूलन के लिए धनराशि मे कटौती पर सवाल उठाया. वह एक सफल समाजसेवी के साथ साथ एक अच्छे लेखक भी थे.
डॉ रामदयाल मुंडा आकाशवाणी के कार्यक्रम में सुनाते थे मुंडारी में उनकी ‘गांधी कथा’ : उन्होंने साल 1961 महात्मा गांधी की जीवनी ‘गांधी कथा’ अपनी मातृभाषा मुंडारी में लिखी. इसे पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा वर्ष 1962 में आकाशवाणी, रांची के क्षेत्रीय कार्यक्रम ‘देहाती दुनिया’ में गीत के माध्यम से सुनाते थे.
डॉ मीनाक्षी मुंडा
-सहायक प्रध्यापक, मानवशास्त्र विभाग, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची