My Mati: होरो साहब ने झारखंड आंदोलन को बचाया और व्यापक बनाया था, पढ़ें पूरी खबर

झारखंड के आदिवासी और गैर आदिवासी में एकता, संगठन और जागृति का संचार हुआ. श्री होरो के प्रयास से झारखंड आंदोलन फिर से जोर पकड़ने लगा. इसका श्रेय निश्चित रूप से श्री होरो के उदार दृष्टिकोण और झारखंड आंदोलन के प्रति व्यापक समझ तथा मजबूत नेतृत्व क्षमता को जाता है.

By Prabhat Khabar News Desk | March 31, 2023 11:59 AM

डॉ इलियास मजीद

झारखंड की राजनीति में वर्ष 1963 में एक भूचाल आ गया था. झारखंड आंदोलन के सर्वेसर्वा और शीर्ष नेता मरंग गोमके कहे जाने वाले जयपाल सिंह मुंडा न सिर्फ कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए बल्कि उन्होंने झारखंड पार्टी का विलय कांग्रेस में करा दिया था. इस संबंध में होरो साहब ने मुझे बताया था कि होरो साहब को जयपाल सिंह ने कहा था कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आश्वासन दिया है कि झारखंड पार्टी का कांग्रेस में विलय करा दो, अलग राज्य दे देंगे. यहां उल्लेखनीय है कि जयपाल सिंह की गहरी मित्रता पंडित नेहरू से थी. श्री होरो ने बताया था कि जयपाल सिंह ने यह भी कहा था कि हम कांग्रेस पार्टी में रहकर ज्यादा ताकत से अलग राज्य की आवाज उठायेंगे. कांग्रेस पार्टी में रहकर अलग राज्य की लड़ाई लड़ी जाएगी, परंतु जयपाल सिंह की इन उम्मीदों पर पानी फिर गया और झारखंड का मसला ठंडे बस्ते में पड़ गया.

यह एक ऐसा मोड़ था, जिसने एनइ होरो को राजनीति में कूद पड़ने के लिए मजबूर कर दिया. श्री होरो ने प्रत्यक्ष रूप से राजनीति में प्रवेश किया और अलग झारखंड राज्य आंदोलन की मशाल को बुझाने से बचा लिया. मरंग गोमके जयपाल सिंह का विरोध किया और विलय के विरोधियों ने ओड़िशा के वीरमित्रापुर, सुंदरगढ़ में 27-29 सितंबर 1963 को एक महासम्मेलन आयोजित किया, जिसमें संपूर्ण वृहत झारखंड के बिहार, बंगाल, ओड़िशा एवं मध्यप्रदेश में पड़ने वाले झारखंडी क्षेत्र के प्रतिनिधि शामिल हुए. इस महासम्मेलन में झारखंड पार्टी को बरकरार रखते हुए पुनर्गठित किया गया और झारखंड आंदोलन को जारी रखने का निर्णय लिया गया.

इस प्रकार एनइ होरो ने झारखंड आंदोलन को बचा लिया. जयपाल सिंह के निर्णय से जो नुकसान हुआ था, उसकी भरपाई होरो साहब ने की. होरो साहब की अध्यक्षता में झारखंड पार्टी पुनर्जीवित हुई. श्री होरो के नेतृत्व में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में दो-दो बार झारखंड अलग राज्य के लिए विशाल प्रदर्शन हुए और केंद्र सरकार को मांगपत्र सौंपा गया. दिल्ली में पहला प्रदर्शन 12 मार्च 1973 एवं दूसरा प्रदर्शन 16 अप्रैल 1975 को किया गया.

इस धरना और प्रदर्शन का राज्य एवं केंद्र सरकार पर व्यापक असर पड़ा. प्रशासनिक व्यवस्था भी प्रभावित हुई और झारखंड अलग राज्य की मांग की व्यापकता में भी भारी वृद्धि हुई. झारखंड के आदिवासी और गैर आदिवासी में एकता, संगठन और जागृति का संचार हुआ. श्री होरो के प्रयास से झारखंड आंदोलन फिर से जोर पकड़ने लगा. इसका श्रेय निश्चित रूप से श्री होरो के उदार दृष्टिकोण और झारखंड आंदोलन के प्रति व्यापक समझ तथा मजबूत नेतृत्व क्षमता को जाता है.

श्री होरो के नेतृत्व में झारखंड अलग राज्य के सवाल पर दिल्ली में धरना-प्रदर्शन का यह परिणाम हुआ कि अलग राज्य के मुद्दे पर राष्ट्रीय नेताओं का ध्यान गया और झारखंड राज्य के मुद्दे पर राष्ट्रीय नेताओं का समर्थन प्राप्त होने लगा. श्री होरो द्वारा झारखंड के सवाल को एक राष्ट्रीय मुद्दा के रूप में देखे जाने की बात जब कही गयी तो इस पर व्यापक प्रतिक्रिया हुई. वर्ष 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने झारखंड अलग राज्य का समर्थन किया था.

वर्ष 1981 में संसद में रामविलास पासवान ने और एके राय ने झारखंड अलग राज्य का मुद्दा उठाया था. बाद में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी ने भी झारखंड अलग राज्य की राजनीति में अपना हस्तक्षेप बढ़ाया. परंतु झारखंड अलग राज्य आंदोलन को बचाने, बढ़ाने और इसे एक व्यापक मुद्दा बनाने में होरो साहब ने अपना अद्वितीय योगदान दिया और अंततः झारखंड अलग राज्य का निर्माण हुआ.

-सहायक प्राध्यापक, मौलाना आजाद कॉलेज, रांची.

श्री होरो के नजदीकी सहयोगी.

Next Article

Exit mobile version