My Mati: झारखंड का पारंपरिक बाजा खतरे में

बानाम सारंगी जाति का लोक बाजा हय जबकि भुआंग आदिवासी समाज में तेवहार मन में बिसेस रुप से बजाल जायक वाला महत्वपूर्न बाजा हेके. इ मुध रुपे दसहरा बेरा बजाल जायला. सखवा भंइस कर सिंघ कर बनल होवेला. इ 15 इंच से लेइके दूइ फुट लंबा होवेला.

By Prabhat Khabar News Desk | November 25, 2022 11:52 AM

My Mati: झारखंड के नाच गान कर प्रदेश कहल जायला. जहां सांझ बिहान और दिन में भी नाच कर बिना काम नी होवेला. जहां नाच ख़ातिर बाजा ले ढोल, नगाड़ा, बांसुरी, झाल जैसन वाध यंत्र कर प्रयोग करल ज़ात रहे. हियां कर अखरा में ढोल और मांदर जईसंन वाध यंत्र से नाच गान कर सुंदरता देखे ले मिलत रहे. मुदा आब कर समय में ई सब देखेक ले काम मिलत हय. जेकर कारण पसचमी सभ्यता कर प्रभाव. जहां खाली डीजे बाजा कर माईन होते ज़ात हे. पहिले लगभग सभे संस्कार में ढोल, नगाड़ा से नाच गान होवत रहे. लगिन वर्तमान समय में खाली डी जे बाजा कर पीछे भागते जात हय आउर आपन नागपुरी संस्कृति के भूलते जात हाय.

आईज मानल जाईला के हर छोट चाहे बड़ संस्कार में आधुनिक डीजे बाजा कर प्रयोग होवत हय. मुदा सोचे वाला बात हय कि आईज भी शादी में भी हर नेग में ढोल, नगाड़ा और शहनाई कर बिना नेग अधूरा मानल जाएल. जेठ कर उमडल उमश में केकरो घर शादी में दूर से शहनाई कर धुन मन के छुई लेवेला. लगिन ईकरो से ज़्यादा महत्व तब पता चले ला जब. केकरो मरल में डीजे नी बजेला . मरल में ढोल नगाड़ा और सहनाई कर सुंधर धुन कर साथ संस्कार पूरा होवेला. हुवा डीजे नी बजेला ईसन माईन आहे ढोल, नगाड़ा और सहनाई कर. नागपुरी जगत में कहल जा हे की मांदर किनले जनी किनल नियर लागेला, आउर मांदर फूटले जनी मोरल लखे लागेला.

ई कतना बड़ बात हय की एक निर्जीव वस्तु कर तुलना जनानी से करल जा हे. आउर बात हियां खतम नी होवेला बात तो आउरो कि झारखंड के परदेस में भी नाच गान कर जगह मानल जा हे. ई बात कर वजन तब और बईढ गेलक रहे जखन झारखंड से ड़ा रामदयाल मुंडा ढोल नगाड़ा आऊर शहनाई कर साथे आपन झरखंडि नाच कर प्रदरसन बिदेस में कईर रहयं. ई लागे हामरे कर झरखंडि ढोल, नगाड़ा और सहनाई कर संस्कृति हय. लगिन बेरा समय कर संगे ईके आदमी मन बिसरते जात हयं. आऊर आईज ढोल नगाड़ा कर प्रयोग कम होते ज़ात हय. जेके हमिन के बचाय कर प्रयास करेक चाही. नी तो आवे वाला समय में ना ढोल, नगाड़ा, ना शहनाई मिली और संगे संग बजनिया भी नी मिलबायं.

आदिवासी समुदाय कर पारंपरिक बाजामन से बहुत गहरा नाता हय. मनोरंजन, परब तेवहार, सादी बिहा आउर आपन सुरकछा खातिर आदिवासी आउर मूलवासी समुदाय पारंपरिक बाजा मनक इस्तेमाल करयंना. लगिन बेरा समय कर संगे आदिवासी मूलवासी मसाज में प्रचलित कय गो बाजा तेजी से लुप्त होते जात हे. जानेक चाही कि सिंगा बाजा छोंड़ा छउवा कर तिलक कर समय परयोग में लानल जायला लगिन धीरे धीरे इ परंपरा मंद पड़ते जात हे.

बानाम सारंगी जाति का लोक बाजा हय जबकि भुआंग आदिवासी समाज में तेवहार मन में बिसेस रुप से बजाल जायक वाला महत्वपूर्न बाजा हेके. इ मुध रुपे दसहरा बेरा बजाल जायला. सखवा भंइस कर सिंघ कर बनल होवेला. इ 15 इंच से लेइके दूइ फुट लंबा होवेला. लगिन जदि नावां पीढ़ी के इ परंपरा से अवगत करुवाक आउर जोड़ेक कर दरकार हय. यदि झठे इ दन धेयान नइ देल गेलक तो संभव हय कि पारंपरिक बाजा मन के अदमीमन बिसइर जाबयं.

अशोक कुमार

(छात्र, स्नातकोत्तर, रांची विश्वविद्यालय, रांची)

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