अनिता रश्मि
छोटानागपुर में पहले मुंडाओं के अलावा कोई और नहीं रहता था. सुतियांबे में उनकी राजधानी थी. वे ही राज चलाते थे. जिस समय रिसा मुंडा के वंशज मदरा मुंडा वहां के राजा थे, उसी समय मिस्र देश का एक पादरी इस देश में आया. वह लंका हो कर यहां पहुंचा था. उसका एक लड़का ब्राह्मण का रूप धरकर भीख मांगता हुआ छोटानागपुर पहुंचा. उसके रास्ते में एक देवता आदमी के वेश में खड़े थे. ब्राह्मण ने उन्हें पास बुलाया. अपनी गठरी उनके कंधे पर लाद कर साथ चलने को कहा. वह आदमी अब उसका सेवक था. उसने उस आदमी को एक टोपी भी पहना दी थी. दोनों भीख मांगते हुए मंदरा राजा के घर पहुंचे.
मदरा मुंडा ने ब्राह्मण को अपने बेटे को पढ़ाने के लिए रख लिया. वह उसी गांव में रहने लगा. ब्राह्मण के साथ उसका वह सेवक भी वहीं रहने लगा. मदरा मुंडा की एक युवा लड़की थी. ब्राह्मण के सेवक और मदरा मुंडा की बेटी के बीच प्यार हो गया. दोनों ने शादी कर ली. जब लड़की गर्भवती हो गयी, तो उसने सेवक से कहा, ‘तुम मुझे अभी अपने देश ले चलो. हमारा बच्चा पैदा होने पर यहां हमारी बुरी दशा कर दी जायेगी.’ उसने लड़की की बात मान ली और भोर में, सब के जागने से पहले, लड़की को लेकर निकल गया.
लड़की को एक तालाब के किनारे लाकर बताया, यही हमारा देश है. अब यहीं रहना होगा. लड़की को बहुत आश्चर्य हुआ. उसी समय उसे प्रसव पीड़ा होने लगी. उसने पति से कहा, जोर की प्यास लगी है. जरा पानी ला दो. सेवक बोला, आज मेरा दिन खत्म हो रहा है. आज के बाद तुम मुझे पुरुष के रूप में नहीं देख पाओगी. इतना कह वह पोखरे में समा गया और देव रूप में बदल गया.
लड़की ने एक बच्चे को जन्म दिया. वह पति को इधर-उधर ढूंढ़ने लगी. जब वह नहीं मिला, तो लड़की ने बच्चे को वहीं छोड़ पोखर में छलांग लगा दी. थोड़ी देर बाद पति ने सांप बन कर पोखर के भीतर से सर बाहर निकाला. उसने देखा, पत्नी वहां नहीं है और बच्चा खूब रो रहा है. वह बाहर निकला. उसने बच्चे के पास पहुंच कर अपना फन उसके सर के ऊपर फैला दिया. उसी समय एक ब्राह्मण सुतियांबे के राजा के घर जा रहा था. सांप ने उसे बुला कर बच्चे और मदरा मुंडा की बेटी के बारे में बताया. कहा, तुम जाकर राजा से कहना कि उनका नाती यहां पड़ा रो रहा है. उसे अपने पास ले जाएं. ब्राह्मण तुरंत राजा के पास पहुंचा और उसक बेटी के पोखर में डूब जाने की बात बतायी. राजय तुरंत पोखर के पास पहुंचा. वहां सांप अब भी फन की छाया बच्चे पर डाले हुए था. राजा को देखते ही वह हट गया. राजा अपने नाती को उठा कर घर लौटा और पालने के लिए रानी को सौंप दिया.
छह दिनों बाद, छठी पूजन के समय नये ब्राह्मण ने बच्चे का गोत्र नाग बताया. उसका नाम फणिमुकुट राय रखा. मदरा के बेटे का नाम मुकुट राय और गोत्र हंस था. ब्राह्मण दोनों बच्चों को पढ़ाने लगा. लड़का बहुत तेज दिमाग का था. कुछ दिनों में मदरा मुंडा की मौत के बाद नया राजा चुनने के लिए पड़हा लोग विचार करने लगे. कुछ लोग मुकुट राय को, तो कुछ फणिमुकुट राय को राजा बनाने के पक्ष में थे. अंत में उनमें से एक का चुनाव उनके काम के आधार पर करने का निर्णय लिया गया. एक निश्चित दिन सब जुटे. सामने एक खाट और एक पीढ़ा रखा गया. दोनों को अपनी पसंद की चीज पर बैठने के लिए कहा गया. फणिमुकुट राय खाट पर और मुकुट राय पीढ़े पर जा बैठे. फिर तंबाकू के साथ हुक्का और पत्ती रख दी गयी. मुकुट राय ने पत्ती से बीड़ी बनायी, पर फणि राय ने हुक्के पर चिलम चढ़ायी.
Also Read: My Mati: रूढ़ि-व्यवस्था में निहित है आदिवासी समुदाय की विशिष्ट पहचान
तीसरी परीक्षा के लिए खाने में एक-एक बकरा और भैंसा मार कर पकाया गया. खाने के लिए हाथ धोते समय मुकुट राय ने मटके में रखे पानी को चुना, लेकिन फणि राय ने लोटे के पानी से हाथ धोया. एक तरफ कटहल के पत्ते और दोने में भात, भैंसे का मांस परोसा गया था. दूसरी तरफ पीतल की थाली और कटोरे में भात, बकरे का मांस परोसा गया था. मटुक राय कटहल के पत्तल की ओर बढ़े. वे भैंसे का मांस, भात खाने लगे. फणिमुकुट राय ने उस ओर देखा भी नहीं. वे पीतल की थाल एवं पीतल के कटोरे में परोसे गये भोजन की ओर बढ़े. वे भात के साथ बकरे का मांस खाने लगे. अंत में एक पंखवाला घोड़ा ला कर कहा गया, ‘जो इस घोड़े पर चढ़ेगा, उसे ही राजा बनाया जायेगा.’ मटुक राय ने पहले कोशिश की, लेकिन चढ़ न सके. वे सीढ़ी लाने के लिए एक ओर चले. तब तक फणिमुकुट राय आसानी से घोड़े पर चढ़ पूरा राज्य घूम आये. अब उनके राजसी व्यवहार और क्षमता में शक न रहा. सबके मन से फणिमुकुट राय राजा बने. तब से मुंडाओं के देश में नागवंशियों का राज कायम हुआ, जो काफी वर्षों तक चला.