सुबह के ढाई बजे हैं. बाहर अंधेरा है. मेरी नींद खुल गयी है. मैं खिड़की के पास आकर शीशे पर नाक सटाकर बाहर ताकने लगी. आह! शीशा कितना ठंडा है. मैंने मन ही मन कहा. मेरी सांसों से खिड़की का शीशा धुंधला होता जा रहा है. मैं उंगलियों से उन पर कोई लकीर खींच सकती हूं. अक्तूबर का आखिरी सप्ताह है. बाहर बिजली चमक रही है. लोग कहते हैं कि इंग्लैंड के मौसम का कोई भरोसा नहीं रहता. कभी भी बूंदा-बांदी शुरू हो जाती है. और अचानक कभी भी धूप निकल आता है. देखती हूं, अंधेरे में दूर कोई पहाड़ी शृंखला है. पहाड़ पर कोई टॉवर है. उस पर कोई लाल बत्ती जल रही है. पहाड़ का वह हिस्सा अंधेरे में चमक रहा है. घर के सामने पास ही कतार में कई घर अंधेरे में बुत की तरह चुपचाप खड़े हैं. चारो ओर पेड़ हैं. कोई सड़क है. सड़कें हमेशा रोमांचित करती हैं. इस सवाल के साथ कि आखिर वे कहां तक जाती हैं? दूर गाड़ियों के गुजरने की आवाज आ रही है. सड़कों के किनारे स्ट्रीट लाईट जल रही है. यह इंग्लैंड का लुईस शहर है.
अब मुझे सोना चाहिए. यह सोचकर मैं बिस्तर पर लेट गयी. पर मेरी आंखें खिड़की पर लगी रहीं. अचानक देखा, कोई बल्ब आकाश में टंगा सा लग रहा है. उठकर फिर खिड़की के पास गई. गौर से देखा, ओह! यह तो चांद है. बांदलों से ढंका चांद बाहर निकल आया था. किसी बड़े बल्ब की तरह आकाश में लटका नजर आ रहा था. मैं वापस जाकर सोने की कोशिश करने लगी. सुबह जब नींद खुली तो देखा बाहर बारिश हो रही थी. बहुत सुबह हमें इस शहर से वेल्स के लिए निकलना था. वेल्स की यात्रा करीब नौ घंटे की होगी, मुझे ऐसा बताया गया था. चार्ल्स डार्विन के परपोते नृविज्ञानशास्त्री फेलिक्स पडेल के साथ हम रात ससेक्स यूनिवर्सिटी की प्रो विनीता दामोदरन के घर में ठहरे थे. वे काफी समय तक लंदन में रहने के बाद अब वेल्स में रहते हैं.
हम सुबह के सात बजे लुईस शहर से वेल्स की ओर रवाना हुए. बीच में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी गये. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में मैंने मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा का कॉलेज देखा, जहां उन्होंने पढ़ाई की थी. वहां से वे 1938 में संयुक्त बिहार लौट आए थे. उन्होंने ही संविधान सभा में आदिवासी हितों की वकालत की थी और वृहत झारखंड राज्य की मांग बुलंद की थी. वहां कुछ मित्रों से मुलाकात के बाद हम आगे बढ़ गये. वेल्स के रास्ते फेलिक्स पडेल मुझे कई जगहों का इतिहास बताते जा रहे थे. मैं उन जगहों के नाम अपनी डायरी में लिखती जा रही थी. वेल्स में प्रवेश करते ही सारे साइन-बोर्ड दो भाषाओं में दिखने शुरू हो गए. वेल्स में इंग्लिश के साथ लोगों की अपनी अलग भाषा है. यह पहाड़ियों की श्रृंखला से घिरा है. चारों तरफ जंगल का रंग कहीं लाल, कहीं पीला, कहीं भूरा और कहीं हरा है. बीच-बीच में रह-रहकर बारिश हो रही थी. पर वेल्स पहुंचने से पहले बारिश अचानक रुक गयी और बादलों के पीछे से सूरज निकल आया. पूरा जंगल चमकने लगा. हम यह देखकर बहुत खुश हुए. वेल्स में अपनी अलग भाषा के साथ
देशज समुदाय रहता है, जिनके बच्चे अंग्रेजी के साथ अपनी भाषा में भी पढ़ाई करते हैं. बाद के दिनों में भी अलग-अलग हिस्सों से आकर लोग जंगल-पहाड़ों के निकट बस रहे हैं, जो वेल्स के देशज लोगों की तरह जीने की कोशिश कर रहे हैं. हम कई घास की गलियों और दोनों ओर पेड़ों से पूरी तरह ढंकी सुरंगों से गुजरते हुए आखिरकर एक गांव पहुंच गये. यह जंगलों के बीच में था और समुद्र तट भी पास भी.
दूसरे दिन हम उस महिला से मिलने के लिए गए जो वेल्स के जंगलों में रहती हैं और पूरी तरह से देशज जीवन जीती हैं. वहां बिजली और इंटरनेट की कोई सुविधा नहीं है. लोगों ने पहाड़ों को पवित्र स्थल घोषित कर रखा है. वे पहाड़ और जंगलों की पूजा करते हैं. उस महिला का नाम एम्मा है. देखा, जंगल में मिट्टी का एक सुंदर घर था. लकड़ी के जलते अंगोर में केतली चढ़ी हुई थी और उसमें पानी गर्म हो रहा था. एम्मा ने जब सुना कि मैं भारत के एक आदिवासी समुदाय से हूं और उनसे मिलने की इच्छुक हूं, तो वे खुशी से बाहर आ गयीं. मैं आग के पास ही बैठ गयी. उन्होंने मिंट के पत्ते तोड़कर कप में डाले और फिर गर्म पानी डाला. यह पानी हम चाय की तरह पीने लगे. आग के चारों तरफ बैठने के लिए घास के गट्ठर के उपर बोरे रख दिए गए थे, ताकि गोलाई में बैठकर लोग बातचीत कर सकें.
नदी के किनारे एक जगह पर पत्थर और मिट्टी से लोगों ने एक जगह बनायी है, जहां वे आत्माओं के रहने की बात कह रही थीं. वे स्त्री शक्ति की बात कर रही थीं. यह लोगों की आस्था है. वहां से निकलकर हम दूसरे पवित्र स्थल गए जहां वे साथ बैठकर प्रार्थना करते हैं. यहां एक पहाड़ी शृंखला है जिसे बचाने के लिए लोगों ने लड़ाई लड़ी है. एम्मा बताती हैं कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से अपनी शिक्षा पूरी कर जब वे जंगल के निकट रहने के लिए वेल्स आयीं तो उन्हें प्रशासन ने इसकी इजाजत नहीं दी. उनसे कहा गया कि मनुष्य और ईश्वर के बीच प्रकृति की बात न की जाए. लेकिन एम्मा ने इसके लिए कानूनी लड़ाई लड़ी.अब उनके पास दुनिया भर के अलग-अलग यूनिवर्सिटी से विद्यार्थी देशज जीवन और उनके जीवन-दर्शन के बारे में सीखने आते हैं.
उनसे विदा लेने के समय फिर से हल्की बारिश होने लगी पर तभी हल्की धूप भी निकल आयी. बहुत दिनों बाद आकाश में इंद्रधनुष नजर आया. यह एक अद्भुत और यादगार दिन था. हम जंगल के भीगे रास्तों से होकर घर वापस लौटने लगे.