My Mati: प्राचीन काल से प्रकृति की रक्षा करते आये हैं आदिवासी समाज

पेड़-पौधों में वर्षा को आकर्षित करने की क्षमता होती है. पेड़-पौधे काट कर खत्म कर देंगे, तो वर्षा नहीं होगी. नतीजतन सूखा यानी अकाल होगा. आदिवासी प्राचीन काल से प्रकृति की रक्षा करते आये हैं. समय-समय पर इन्होंने अपनी जान की कुर्बानी देकर भी प्रकृति की रक्षा करते आये हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | November 11, 2022 2:30 PM
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My Mati: जल, जंगल, जमीन, कृषि, पशु-पक्षी आदि के नाम सुनते ही मन में एक समुदाय का चेहरा प्रकट होता है जिसे हम आदिवासी कहते हैं. जी हां, आदिवासी एक ऐसा वर्ग है जो अपने विशेष जीवनशैली के लिए जाना जाता है. इन्हें प्रकृति प्रेमी के साथ-साथ प्रकृति पुजारी के रूप में भी जाना जाता है. आदिवासी प्राचीन काल से प्रकृति की रक्षा करते आये हैं. समय-समय पर इन्होंने अपनी जान की कुर्बानी देकर भी प्रकृति की रक्षा करते आये हैं. जंगल बचाओ आंदोलन, चिपको आंदोलन आदि इसके प्रमाण हैं. उद्योगपतियों और दलालों द्वारा विकास के नाम पर, कारखानों के नाम पर व उद्योगों के नाम पर प्रकृति का घोर विनाश एवं दोहन किया जाता रहा है. आज भी किया जा रहा है. इसलिए पेड़ पौधों की संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है. इस कारण सही वर्षा नहीं हो पा रही है, क्योंकि पेड़ पौधे ही वर्षा को आकर्षित करते हैं.

उचित वर्षा की कमी के कारण कृषि जीवन काफी प्रभावित हो रहे हैं. सूखे जैसी समस्याएं हो रही हैं. जलवायु गर्म होती जा रही है एवं ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएं आ रही हैं. ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं को आदिवासी समुदाय के तौर-तरीकों एवं तकनीकों द्वारा दूर किया जा सकता है. आदिवासी अपने स्थानीय निवास स्थान आस-पास के जंगलों को सरना, देशाऊली, जायरा आदि नामों से बचा कर रखते हैं. वे यहां के पेड़ पौधों को नहीं काटते हैं. यहां के पेड़ पौधे नहीं काटने की कारण पूछने पर उनका जवाब तीन प्रकार का होता है- जंगल का पेड़ काटेंगे, तो बाघ खा जाएगा. पेड़ काटेंगे, तो अकाल होगा. पेड़ काटेंगे, तो हम मर जाएंगे. उनके मुंह से ऐसा सुनकर शहरी व्यक्ति आदिवासी को मूर्ख समझने लगते हैं. लगभग सभी क्षेत्र के आदिवासियों से एक तरह की मान्यताएं एवं विश्वास सुनने के उपरांत मानव वैज्ञानिकों द्वारा इन पर शोध किया गया. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति व मानवशास्त्री एवं मेरे गुरु प्रोफेसर डॉ सत्यनारायण मुण्डा द्वारा इस विषय पर विशेष शोध किया गया है.

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शोध से ज्ञात होता है कि आदिवासी दर्शन की तीन बातें बिलकुल सही सिद्ध हुई हैं जो इस प्रकार हैं :-

  • पेड़ काटेंगे, तो बाघ खा जाएगा : जंगल पशु पक्षियों का घर होता है, उनके घर का नाश करेंगे तो वे बाहर निकल कर हमें जरूर काटेंगे और खाएंगे. वर्तमान में ऐसा ही हो रहा है. हम जंगल का विनाश कर रहे हैं और बाघ, हाथी, भालू आदि जंगलों से निकलकर हमें मार-काट खा रहे हैं.

  • पेड़ काटेंगे, तो अकाल पड़ जायेगा : पेड़ पौधों में वर्षा को आकर्षित करने की क्षमता होती है. पेड़ पौधा काट कर खत्म कर देंगे, तो वर्षा नहीं होगी. नतीजतन सूखा यानी अकाल होगा. आज ऐसा ही हो रहा है. पेड़-पौधों की संख्या में दिन प्रतिदिन गिरावट के कारण औसत वर्षा भी नहीं हो पा रही है. इस कारण सूखा घोषणा की सूचनाएं आ रही हैं.

  • पेड़ काटेंगे, तो मर जायेंगे : जीव विज्ञान में हमें शिक्षा मिलती है कि पेड़ पौधों के माध्यम से ही हमें शुद्ध ऑक्सीजन प्राप्त होते हैं. पेड़-पौधे कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करते हैं एवं ऑक्सीजन छोड़ते हैं. ऑक्सीजन बिना मानव जीवन का कल्पना भी नहीं किया जा सकता है.

कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी के कारण कई लोगों की मृत्यु हो चुकी हैं इससे साबित होता है कि जीवन का संरक्षण आदिवासी विशेष रूप से करते हैं यानि ‘पेड़ लगाओ, जीवन बचाओ ’.हमारा संविधान भी कहता है कि हमारे निवास स्थान के एक तिहाई भाग में जंगल होना चाहिए. आदिवासी इस प्रावधान का अनिवार्य रूप से पालन करते हैं. पेड़ पौधों से अपनी आवश्यकता पूर्ति करते हैं उनका विनाश नहीं करते हैं. वे पेड़ पौधे लगाते हैं और उनका संरक्षण भी करते हैं. अब भी देर नहीं हुई है साथियों. पेड़ लगायें, जीवन बचायें!

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