झारखंड में पुत्र की तुलना में कम बेटियां जन्म ले रही हैं. यह तथ्य नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-5) की ताजा रिपोर्ट बयां कर रही हैं. रिपोर्ट की मानें, तो प्रति 1000 बेटे पर मात्र 899 बेटियां जन्म ले रही हैं. वर्ष 2015-16 में यह आंकड़ा 919 था.
चिंता की बात यह है कि शहरी क्षेत्र में शिक्षा व जागरूकता के बावजूद पिछले पांच साल में नवजात के लिंगानुपात की स्थिति खराब हुई है. रिपोर्ट के अनुसार, शहर में 1000 बेटों पर मात्र 781 बेटियां जन्म लेती हैं. वहीं ग्रामीण इलाकों में 1000 बेटों पर 926 बच्चियां जन्म लेती हैं.
हालांकि कन्या भ्रूण हत्या व गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए पीसीपीएनडीटी एक्ट बनाया गया है. इस एक्ट के तहत प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध है, लेकिन इसके बाद भी इसका उल्लंघन होता है. हालांकि सरकार द्वारा सख्ती के लिए टीम बना कर छापेमारी भी की जाती है.
राज्य के 17 जिलाें में बेटियां कम जन्म ले रही हैं. एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट में नवजात के लिंगानुपात की स्थिति खराब हुई है. इसमें बड़े शहर शामिल हैं. रांची में 1000 बच्चों पर 874 बच्चियां जन्म ले रही हैं. वहीं धनबाद में 869, बोकारो में 899, हजारीबाग में 856, पूर्वी सिंहभूम में 837, रामगढ़ में 903 बच्चियां जन्म ले रही है.
इसके अलावा चतरा में 764, दुमका में 946, गढ़वा में 829, गोड्डा में 881, जामताड़ा में 825, खूंटी में 709, कोडरमा में 872, पाकुड़ में 925, पश्चिमी सिंहभूम में 872, सिमडेगा में 907 बच्चियां शामिल है. ये वैसे जिले हैं, जहां एनएफएचएस-4 का आंकड़ा बेहतर था.
राज्य के सात ऐसे जिले हैं, जो बच्चियों के लिंगानुपात बेहतर है. यहां एनएफएचएस-4 की तुलना में एनएफएचएस-5 में स्थिति बेहतर हुई है. देवघर में 778 से बढ़ कर 929 हुआ है. वहीं, गिरिडीह में 773 से बढ़ कर 852, गुमला में 1007 से बढ़कर 1028, लातेहार में 862 से बढ़ कर 967, पलामू में 1003 से 1098, साहिबगंज में 820 से बढ़ कर 984 और सरायकेला खरसावां में 898 से बढ़ कर 907 हो गया है.