National Girls Day: झारखंड की बेटियां नहीं हैं किसी से कम, विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय स्तर पर मनवाया लोहा

खूंटी की सबिता बैठा ईंट भट्ठे में काम करती थीं. वहीं उनके माता-पिता आज भी गरीबी के कारण ईंट भट्ठे में काम कर रहे हैं. सबिता को सात साल पहले रेस्क्यू कर लाया गया. वह आज आशा सेंटर में रह कर पढ़ाई कर रही हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | January 24, 2024 4:10 AM

हमारी बेटियां किसी से कम नहीं हैं. वह हमेशा हमारे मान और सम्मान को बढ़ाने का काम करती रही हैं. आज राष्ट्रीय बालिका दिवस पर हम अपनी बेटियों के योगदान को याद करते हैं. उनके संघर्ष को सलाम करते हैं. हमारा गौरव अपनी बेटियों को हर मुकम्मल पहचान दिलाने में होना चाहिए. विभिन्न क्षेत्रों में उनकी सफलताओं को देखकर हम कह सकते हैं कि हमारे देश और राज्य की बेटियां किसी से कम नहीं हैं.

ईंट भट्टे में काम करने वाली सबिता बनीं नेशनल फुटबॉल प्लेयर

खूंटी की सबिता बैठा ईंट भट्ठे में काम करती थीं. वहीं उनके माता-पिता आज भी गरीबी के कारण ईंट भट्ठे में काम कर रहे हैं. सबिता को सात साल पहले रेस्क्यू कर लाया गया. वह आज आशा सेंटर में रह कर पढ़ाई कर रही हैं. अब नेशनल फुटबॉल प्लेयर के रूप में अपनी विशेष पहचान बनायी हैं. हाल में ही स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की ओर से चंडीगढ़ में आयोजित 67वें नेशनल स्कूल गेम्स अंडर 19 में हिस्सा लिया और बंगाल को दो गोलों से हराया. एक बेहतर खिलाड़ी के रूप में अपनी पहचान बनायी है. सबिता कक्षा नौ की छात्रा हैं. वह कहती हैं कि कभी सोचा नहीं था कि ईंट भट्ठे से निकल पाऊंगी. आज सेंटर के सहयोग से हमारी पहचान बन पायी है.

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शास्त्रीय नृत्य में मनीषा हेम्ब्रम ने बनायी पहचान

मूल रूप से चाईबासा की रहनेवाली मनीषा हेम्ब्रम ने आदिवासी मूल की होते हुए शास्त्रीय नृत्य में अपनी पहचान बनायी है. रांची में रह कर शुभ संस्कार डांस एकेडमी से लगभग छह वर्ष तक कथक नृत्य का प्रशिक्षण प्राप्त किया. घर परिवार से इस विधा को सीखने के लिए प्रारंभ में कोई सहयोग नहीं मिला, लेकिन आज एकेडमी के सहयोग से नृत्य प्रस्तुति के लिए विदेश तक जा रही हैं. अब घरवाले भी इसका महत्व समझ रहे हैं. मनीषा ने बताया कि वह एकेडमी में निःशुल्क गुरुकुल पद्धति से नृत्य की शिक्षा ग्रहण कर रही हैं. उन्हें विपरीत परिस्थितियों में अपनी पहचान बनाने में मदद मिली. अब वह नृत्य में ही अपना करियर बनाना चाहती हैं.

डिजिटल हुनर के सहारे साहिबा करती हैं मदद

बानापीड़ी ठाकुरगांव की साहिबा खातून छोटे कद की हैं. उनका कद तीन से चार फीट तक का ही है, लेकिन वह अपनी प्रतिभा के दम पर सैकड़ों लोगों को सही दिशा दिखाने का काम कर रही हैं. साहिबा पढ़ाई में काफी अच्छी हैं और कंप्यूटर की मास्टर हैं. साहिबा ने कभी भी अपने छोटे कद को अपनी कमजोरी नहीं माना. आज पूरे गांव को उन पर गर्व है. साहिबा गांव के लोगों की हर तरह से मदद करती हैं. गांव की महिलाओं को किसी प्रकार की भी मदद की जरूरत होती है, तो उनके लिए साहिबा हमेशा तैयार रहती हैं. साहिबा डिजिटल दुनिया की बड़ी जानकार हैं और समय-समय पर ग्रामीणों की मदद करती रहती हैं.

विषम परिस्थति के बाद भी नीतू ने फुटबॉल में अपना नाम किया रोशन

कांके ब्लॉक हलदाम गांव की नीतू लिंडा अंडर-18 और अंडर-19 में भारतीय महिला फुटबॉल टीम में अपनी जगह बनाने में सफल रही. जमशेदपुर में आयोजित सैफ अंडर 18 फुटबॉल चैंपियनशिप और उसके बाद बांग्लादेश में आयोजित अंडर-19 सैफ चैंपियनशिप में उसने 2-2 गोल किये थे. इंटरनेशनल लेवल पर पहुंचने के लिए नीतू को कई मुश्किलों के बीच रास्ता बनाना पड़ा. नीतू जब नौ साल की थी, तभी उसकी मां गुजर गयी. उसके पिता दूसरे के खेतों में, तो बड़े भाई ईंट भट्ठों में मजदूरी करते हैं. नीतू को घर की परिस्थिति ने शिक्षा से दूर कर दिया, लेकिन बुलंद इरादेवाली नीतू ने खुद को खेल से जोड़ा. नीतू ने साई में अपनी जगह बनायी. अब नीतू रांची स्थित साई के खेल सेंटर में रहकर फुटबॉल की ट्रेनिंग ले रही है. नीतू के बारे में उसकी बड़ी बहन मीतू लिंडा बताती है कि वह अहले सुबह उठकर पूरे घर के लिए खाना बनाती थी. कई बार खेत और ईंट भट्ठे में मजदूरी करने भी जाती थी. लेकिन कुछ कर पाने की ललक ने उसे फुटबॉल खेलने के लिए प्रेरित किया, जिसमें वह लगातार बेहतर कर रही है.

श्रम विभाग में निबंधन कराकर बाहर जायें राज्य की युवतियां

सजृन महिला विकास मंच सुरक्षित पलायन को लेकर काम कर रहा है. गांव-गांव की युवतियों और उनके परिजनों को सुरक्षित पलायन के बारे में जागरूक कर रहा है. संस्था 1996 से कार्यरत है. संस्था की सचिव नरगीस खातून ने बताया कि झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम में सबसे ज्यादा ट्रैफिकिंग के मामले देखे गये हैं. इसका मूल कारण गांव की लड़कियों का दलालों के चंगुल में फस जाना है. वहीं कई बार माता-पिता की रोक-टोक के कारण भी युवतियां घर से निकल जाती हैं. गरीबी तो इसका कारण है ही, लेकिन आज-कल बाहरी तामझाम के कारण भी बेटियों का पलायन हो रहा है. ऐसे में युवतियों को सुरक्षित पलायन के बारे में जागरुक किया जा रहा है. उन्हें बताया जा रहा है कि यदि आप बाहर काम के लिए जाना चाहती हैं, तो श्रम विभाग में निबंधन कराकर जायें.

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