आज राष्ट्रीय विज्ञान दिवस है. इस वर्ष का थीम है : ‘फ्यूचर ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन : इंपैक्ट ऑन एजुकेशन, स्किल एंड वर्क. दूसरी तरफ करोड़ों रुपये की लागत से चिरौंदी में बना झारखंड का एक मात्र साइंस सेंटर दम तोड़ता नजर आ रहा है. बच्चों में साइंस की बेहतर समझ विकसित करने के उद्देश्य से बनाया गया साइंस सेंटर बदहाली की तरफ बढ़ रहा है.
विद्यार्थी विज्ञान को आसानी से समझ सकें, इसके लिए यहां रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े कई छोटे उपकरण लगाये गये हैं, लेकिन रखरखाव भगवान भरोसे है. अधिकतर उपकरण खराब हो गये हैं. परिसर में बड़ी-बड़ी झाड़ियां उग आयी हैं. और इन झाड़ियों में विज्ञान के ढेरों उपकरण छुप गये हैं. अगर यही स्थिति रही, तो कहीं विज्ञान इतिहास न बन जाये. साइंस सेंटर की बदहाल स्थिति पर अभिषेक रॉय की रिपोर्ट.
इनकी मदद से विकसित हो सकती है साइंस की समझ
धूपघड़ी : उपकरण में लगी नली की परछाई से डायल में चिन्हित अंक से समय का पता लगाया जा सकता है
सनडायल : मूलत: यह धूपघड़ी है, जिसमें छाया से स्थानीय समय को दर्शाया जाता है
ध्वनि का परावर्तन: फुसफुसाता बगीचा नाम के मॉडल से ध्वनि के परावर्तन नियम को समझाया जा सकता है
बांटने की प्रक्रिया: लीवर के इस मॉडल से भारी वजन को कई हिस्से में बांटकर आसानी से उठाये जाने की प्रक्रिया को समझा जा सकता है
प्रोजेक्टिव ज्योमेट्री: ग्लोब के अाकार में तैयार इस मॉडल से प्रोजेक्टिव ज्योमेट्री यानी दो अलग केंद्र से चित्र के विभिन्न आयाम को समझा जा सकता है.
आकार और दूरी : इस मॉडल से समान त्रिभुज के नियम को बच्चे आसानी से समझ सकते हैं, जिसमें प्रकाश के साथ वस्तु की छाया में परिवर्तन को समझाया गया है़
निर्माण : 29 नवंबर 2010
लागत : ~12.5 करोड़
जमीन: 13 एकड़
खुलने के साथ बंद हो गया तारामंडल: साइंस सेंटर कैंपस में 15 अक्तूबर 2019 को 27 कराेड़ रुपये खर्च करने के बाद लोगों के लिए खोला गया था. यह राज्य का पहला तारामंडल है. एक एकड़ में फैले तारामंडल का उद्देश्य लोगों को खगोलीय शिक्षा देने के साथ-साथ बच्चों का मनोरंजन कराना भी था़ कंप्यूटराइज्ड इफेक्ट के साथ लाइव सेटेलाइट का नजारा देखने की सुविधा है.
यहां ब्रह्मांड में 8600 तारे दिखाने की व्यवस्था की गयी. एक साथ 155 लोग इस नजारा को देख सकते हैं. तारामंडल की खासियत इसकी एस्ट्रोनॉमी गैलरी है. इसमें एस्ट्रोनॉमी से जुड़े मॉडल को भी रखा गया है. इसके अलावा बच्चाें के लिए खगोल विज्ञान क्लब तैयार किया गया है, जहां बच्चे ब्लैक होल को जान सकते हैं. लेकिन कोरोना काल में देखरेख नहीं होने से सबकुछ नष्ट हो रहा है.
विज्ञान के मॉडल हो गये हैं बर्बाद : 15 एकड़ में फैले साइंस सेंटर में दैनिक जीवन में महसूस होनेवाले करीब 21 मॉडल लगाये गये थे. बच्चे इन उपकरणों से विज्ञान के चमत्कार को समझ अपनी जिज्ञासा को बढ़ावा देते थे, लेकिन लापरवाही के कारण सभी बदहाल स्थिति में हैं. एक दर्जन से अधिक मॉडल अब उपयोग के लायक नहीं है. कई उपकरण के आधे से अधिक उपकरण या तो टूट कर नष्ट हो गये हैं, तो कई अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. दूसरी तरफ कई साइंस मॉडल कैंपस की झाड़ियों में गुम हो चुके हैं.
एंगुलर मोमेंटम : इस मॉडल से बच्चे तेज गति की चाल को धीमा करने के सिद्धांत को समझ सकते हैं.
इको ट्यूब: इस मॉडल से ध्वनि के परावर्तन नियम को बखूबी समझाया जा सकता है.
बोलने वाली नली : बच्चे फोन की प्रक्रिया को समझते हैं.
पेरिस्कोप : यह प्रकाश के परावर्तन से दीवार के पीछे के दृश्य को देखने में मददगार है.
पुल्ली : आम जीवन में लोग लिफ्ट का इस्तेमाल करते हैं, यह मॉडल इसके सिद्धांत को स्पष्ट करता है.
पोटेंशियल एनर्जी : मॉडल से बच्चों को चापा नल के कार्य सिद्धांत को समझाया जा सकता है.
न्यूटन का थर्ड लॉ : इस मॉडल से न्यूटन के तीसरे सिद्धांत को बखूबी समझाया जा सकता है.
फिल्म : इस मॉडल से बच्चे मोशन पिक्चर के सिद्धांत को आसानी से समझ सकते हैं.
मेकैनिकल थर्मामीटर : इस मॉडल से थर्मामीटर के सिद्धांत को बच्चे सीख सकते हैं.
टग ऑफ वार : इस मॉडल से रस्सा कस्सी के सिद्धांत यानी ताकत के बल पर सामान को दूर से पास खींचने के सिद्धांत को समझा जा सकता है.
आर्कमिडीज स्क्रू : इसकी मदद से पानी को सतह से ऊपर खिंचने के सिद्धांत को समझा जा सकता है.
Posted by: Pritish Sahay