National Women’s Day 2021 : न दहेज दानव, न कन्या भ्रूण हत्या, न बोझ हैं बेटियां, पढ़िए देश को महिला सम्मान का कैसे पाठ पढ़ा रहा झारखंड का आदिवासी समाज
National Women's Day 2021 : रांची (गुरुस्वरूप मिश्रा) : आज 13 फरवरी को राष्ट्रीय महिला दिवस है. हमेशा की तरह महिला हक-अधिकार की बातें होंगी, लेकिन 21वीं सदी में भी महिलाएं दोयम दर्जे की शिकार हैं. दहेज, कन्या भ्रूण हत्या और बेटियों को बोझ के कलंक से मुक्ति नहीं मिली. ऐसे में झारखंड का आदिवासी समाज देश को महिला सम्मान का पाठ पढ़ा रहा है. यहां न बेटियां बोझ होती हैं, न दहेज की बलि चढ़ती हैं और न कन्या भ्रूण की हत्या की जाती है. एक आदिवासी गांव तो ऐसा है, जहां बेटियों से ही घरों की पहचान होती है. इस समाज की दादियां भी अपने हुनर से आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाती हैं. पढ़िए पंचायतनामा की ये खास रिपोर्ट.
National Women’s Day 2021 : रांची (गुरुस्वरूप मिश्रा) : आज 13 फरवरी को राष्ट्रीय महिला दिवस है. हमेशा की तरह महिला हक-अधिकार की बातें होंगी, लेकिन 21वीं सदी में भी महिलाएं दोयम दर्जे की शिकार हैं. दहेज, कन्या भ्रूण हत्या और बेटियों को बोझ के कलंक से मुक्ति नहीं मिली. ऐसे में झारखंड का आदिवासी समाज देश को महिला सम्मान का पाठ पढ़ा रहा है. यहां न बेटियां बोझ होती हैं, न दहेज की बलि चढ़ती हैं और न कन्या भ्रूण की हत्या की जाती है. एक आदिवासी गांव तो ऐसा है, जहां बेटियों से ही घरों की पहचान होती है. इस समाज की दादियां भी अपने हुनर से आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाती हैं. पढ़िए पंचायतनामा की ये खास रिपोर्ट.
आदिवासी समाज में महिला सम्मान
दहेज दानवों की भेंट चढ़ती बेटियां. वंश वृद्धि के लिए बेटे की चाह में गर्भ में ही मार डाली जा रहीं बेटियां. सबसे दुखद बोझ समझी जाती हैं बेटियां. तल्ख हकीकत के बीच आंकड़े डराते हैं. ऐसे में महिला सम्मान के नजरिए से झारखंड के आदिवासी समाज से देश का तथाकथित सभ्य समाज काफी कुछ सीख सकता है.
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बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 को हरियाणा के पानीपत में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत की थी. इसका उद्देश्य देश में बेटियों को लेकर नजरिए (मानसिकता) में बदलाव लाना था, लेकिन हमारा आदिवासी समाज इस मामले में देश का मॉडल है. यहां बेटियां कभी बोझ नहीं समझी जातीं. इसके बावजूद झारखंड के अधिकारी संजय पांडेय ने बेटियों के सम्मान में वर्ष 2016 में जनजातीय गांव तिरिंग में नयी पहल की थी. मेरी बेटी, मेरी पहचान अभियान चलाया था, ताकि बेटियों को लेकर अन्य समाज का नजरिया बदले.
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देश को आईना दिखाता आदिवासी गांव तिरिंग
अमूमन घर-परिवार की पहचान पुरुषों से होती है, लेकिन पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका प्रखंड की जुड़ी पंचायत का तिरिंग गांव झारखंड का पहला आदिवासी (भूमिज जनजाति) बाहुल्य गांव है, जहां बेटियों से घरों की पहचान होती है. हर घर के आगे बेटियों की नेम प्लेट पीले रंग की पट्टी में लगी दिखेगी, जिसमें नीले रंग से मां का भी नाम दर्ज है. रोलाघुटू, खेरनासाई एवं कॉलेज टोला वाले इस गांव में करीब 161 घर हैं. आबादी करीब 700 है. 2011 के आंकड़े के अनुसार यहां 56 बच्चों में 43 बच्चियां हैं. मातृसत्तात्मक समाज में मां-बेटी के सम्मान का ऐसा तानाबाना कि यहां की ग्राम प्रधान भी महिला हैं. नाम है मंजू सरदार.
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साक्षात लक्ष्मी बोझ कैसे
ग्राम प्रधान मंजू सरदार कहती हैं कि हमारे समाज में बेटियों को साक्षात लक्ष्मी माना जाता है. इनके जनने से नाराजगी कैसी. हम कोई भेदभाव नहीं करते. हमारे समाज में न दहेज है, न कन्या भ्रूण हत्या होती है. न इन्हें बोझ समझते हैं. बेटियों को पूरा सम्मान देते हैं. यही अन्य समाज से हमें अलग करता है.
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उम्र के आखिरी पड़ाव में भी हुनर से आत्मनिर्भरता
आदिवासी बेटियों-महिलाओं के साथ-साथ बुजुर्ग दादियां भी अपने हुनर से खुद्दारी का पाठ पढ़ाती हैं. जिस उम्र में आम समाज में बुजुर्ग अपने परिवार पर आश्रित हो जाते हैं. उम्र के इस आखिरी पड़ाव में भी वे परिवार पर बोझ नहीं बनतीं, बल्कि आर्थिक सहयोग करती हैं.
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मांगती नहीं, मदद करती हूं
रांची से करीब 18 किलोमीटर दूर नामकुम के आदिवासी बाहुल्य गांव में बुजुर्ग सुधन देवी अपने घर के आंगन में बांस की टोकरी बना रही हैं. इन टोकरियों को बनाकर ये पैदल गांव-गांव जाकर बेचती भी हैं. कहती हैं नइहर(मायके) का ये हुनर इस उम्र में भी काम आ रहा है. वह परिवार पर बोझ बनना नहीं चाहती हैं, बल्कि मदद करती हैं. आदिवासी समाज की दादियां पत्तल-दोना बनाकर गुजारा करती दिख जायेंगी.
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दहेज की बलि चढ़ती बेटियां
झारखंड में वर्ष 2018 में जनवरी से दिसंबर तक दहेज हत्या के 2071 केस दर्ज हुए. वर्ष 2019 में 301 बेटियां दहेज कुप्रथा की बलि चढ़ा दी गयीं. वर्ष 2020 की बात करें तो अगस्त तक दहेज हत्या के 192 मामले दर्ज कराये गये हैं.
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घरेलू हिंसा की जड़ है दहेज
घरेलू हिंसा के सर्वाधिक मामले दहेज से जुड़े होते हैं. इसके कारण न सिर्फ बेटियां आत्महत्या को मजबूर होती हैं, बल्कि इनका मनोबल भी गिरता जाता है. वे खुद को बोझ समझने लगती हैं. अच्छी शिक्षा से आत्मनिर्भरता की ऊंची उड़ान भर सकेंगी बेटियां.
Posted By : Guru Swarup Mishra