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संवादधर्मिता का स्वरूप : पूर्वाग्रह युक्त संवाद संप्रेषण से बचने के लिए आत्ममंथन जरूरी

सन 1900 में सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ. युगप्रवर्तक पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी इसके प्रथम संपादक बने. मदनमोहन मालवीय का अभ्युदय, लोकमान्य तिलक का केसरी, स्वातंत्र्य संग्राम के संवाहक बने.

डॉ ऋता शुक्ल

उदंत मार्तण्ड-हिंदी के प्रथम समाचार पत्र की लक्ष्यबद्धता प्रमाणित करते हुए संपादक पंडित युगल किशोर सुकुल ने इसे समाचार का सूर्य और सबको सत्य का सुख देनेवाला बताया. 30 मई, 1826 भारतीय पत्रकारिता का स्वर्णिम दिन था. उदंत मार्तण्ड हिंदी पत्रकारिता की गंगोत्री बना. इसके बाद बंगदूत, बनारस अखबार, मालवा अखबार, सुधाकर, बुद्धि प्रकाश, ग्वालियर गजट, अल्मोड़ा अखबार, समाचार सुधावर्षण, बिहार बंधु, भारतमित्र, सारसुधानिधि जैसे महत्वपूर्ण पत्रों का प्रकाशन होता गया, पत्रकारिता की विकास यात्रा में इनका योगदान महनीय है. मातृभाषा, मातृभूमि के प्रति गहरी निष्ठा के साथ भारतेंदु हरिश्चंद्र ने समाचार पत्रों को राष्ट्रीय जागरण का महत्वपूर्ण आधार बनाया था.

कविवचनसुधा, बालाबौधिनी, हरिश्चंद्र चंद्रिका आदि पत्रिकाओं में आत्मनिर्भरता, राष्ट्रीय एकता और अखंडता का संदेश हुआ करता था. पुनर्जागरण, राष्ट्र का सर्वांगीण विकास, गुलामी से मुक्ति स्वाधीनता आंदोलन पत्रकारिता का उपजीव्य था. सन 1900 में सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ. युगप्रवर्तक पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी इसके प्रथम संपादक बने. मदनमोहन मालवीय का अभ्युदय, लोकमान्य तिलक का केसरी, स्वातंत्र्य संग्राम के संवाहक बने.

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आजादी के बाद पत्रकारिता की मूल्यधर्मिता में परिवर्तन हुआ. यह मोहभंग की स्थिति थी. विभाजन की त्रासदी के बाद आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक चुनौतियां, भारतीय मनीषा को क्षरित करने की कुचेष्टा-दोहरे संघर्ष की विडंबना भारत के समक्ष थी. ऐसे दुर्वह काल में पत्रकारिता आर्थिक, सामाजिक राजनीतिक और शैक्षणिक जागृति का संसाधन बन कर आयी आज वैश्विक चुनौतियां हैं. आज की पत्रकारिता जिन वैश्विक प्रश्नों को लेकर आगे बढ़ रही है, उनके साथ अनेक त्रासदियों का दाहक सत्य जुड़ा हुआ है.

राजनैतिक स्तरहीनता, क्षरित होती मानवीय संवेदना, बढ़ती हिंसा भावना, पर्यावरण का प्रदूषण, युवा पीढ़ी की विचलित मनोदशा, भारतीय नारी अस्मिता की अवरोधक मानसिकता -पत्रकारिता के लिए ये संदर्भ अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव, घोषित-अघोषित संवाद माध्यम, प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में विश्वसनीयता का संकट, चिंता का विषय बना हुआ है.

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तथ्य से श्रोताओं व पाठकों को अवगत नहीं कराना अथवा अपनी-अपनी परिकल्पना के अनुरूप संवाद की प्रस्तुति करना, मनगढ़ंत बातें फैलाना – ऐसे प्रसंग भ्रामक स्थिति को जन्म देते हैं. इनसे बचाव आवश्यक है. पूर्वाग्रह युक्त संवाद संप्रेषण से बचने के लिए तथ्यात्मक ज्ञान और आत्ममंथन आवश्यक है. हिंदी पत्रकारिता जीवन के सभी आयामों को समेटती हुई अपनी प्रामाणिकता सिद्ध कर रही है, उसका भविष्य उज्ज्वल है.

(लेखिका साहित्यकार हैं, रांची विवि पत्रकारिता विभाग की प्रमुख रहीं हैं.)

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