रांची. निरल एनम होरो (एनई होरो) झारखंड आंदोलन के एक बड़े नेता थे. जब जयपाल सिंह मुंडा ने झारखंड पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था, तब एनई होरो की अगुवाई में झारखंड पार्टी का पुनर्गठन किया गया था. उनकी छवि बेदाग रही है. चुनाव प्रचार के लिए उन्होंने खुद पेड़ पर अपना पोस्टर ठोका था.
वे बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे. लेखक, संपादक व जीइएल चर्च के सचिव के तौर पर उन्होंने काम किया. इसके अलावा एक जमीनी राजनेता के रूप में उन्हें जाना जाता है. वे एक से अधिक बार विधायक बने. बाद में सांसद और मंत्री भी रहे. पर उनका जीवन बेहद सादगी भरा रहा. उन्होंने कोई संपत्ति अर्जित नहीं की. अपने जीवन के अंतिम समय तक वे जीइएल चर्च कंपाउंड में खपड़े के घर में रहे. उन्होंने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया. 11 दिसंबर 2008 को उनका निधन हो गया था.पहली बार 1967 में कोलेबिरा से विधायक बने थे
एनई होरो पहली बार 1967 में कोलेबिरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने थे. उनके पास ज्यादा संसाधन नहीं थे और उन्होंने चुनाव प्रचार के लिए काफी दिलचस्प तरीका अपनाया था. चुनाव में उनका मुकाबला उस समय के बड़े नेता एसके बागे से था. एनई होरो के साथ काम कर चुके इलियास मजीद अपनी पुस्तक ””झारखंड आंदोलन और झारखंड गोमके होरो साहेब”” में लिखते हैं-उस समय एसके बागे की प्रतिष्ठा और लोकप्रियता काफी अधिक थी. एनई होरो को लोग कम जानते थे. क्षेत्र में किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि कोई एसके बागे के विरोध में कुछ बोले. एनई होरो कोलेबिरा के गांवों में अपने चुनाव का पोस्टर लेकर जाते थे, तो कोई भी खुलकर उनके समर्थन में नहीं आता था. ऐसे ही एक गांव में जाकर एनइ होरो ने एक पेड़ में अपने परिचय का पोस्टर ठोक दिया और गांव वालों से कहा कि वे झारखंड और झारखंड वासियों के हित की लड़ाई लड़ने आये हैं. एनइ होरो ने सोचा था कि चुनाव तक अगर उनका पोस्टर पेड़ में लगा रहा, तो इसका मतलब है कि गांववाले उनका समर्थन कर रहे हैं और वे चुनाव जीत जायेंगे. ऐसा ही हुआ भी. पोस्टर पेड़ में लगा रहा और एनई होरो चुनाव जीत गये.
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