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नयी किताब : स्त्री चेतना और विमर्श

बीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में स्वतंत्रता आंदोलन के समानांतर सामाजिक स्तर पर एक आत्ममंथन की प्रक्रिया चल रही थी. उसके बड़े हिस्से के रूप में स्त्री-स्वातंत्र्य चेतना को 'स्त्री-दर्पण’ पत्रिका अपना स्वर दे रही थी. इसका प्रकाशन जून, 1909 में प्रयाग से शुरू हुआ था.

बीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में स्वतंत्रता आंदोलन के समानांतर सामाजिक स्तर पर एक आत्ममंथन की प्रक्रिया चल रही थी. उसके बड़े हिस्से के रूप में स्त्री-स्वातंत्र्य चेतना को ‘स्त्री-दर्पण’ पत्रिका अपना स्वर दे रही थी. इसका प्रकाशन जून, 1909 में प्रयाग से शुरू हुआ था. इसकी संपादिका रामेश्वरी देवी नेहरू और प्रबंधक कमला देवी नेहरू हुआ करती थीं. ‘स्त्री दर्पण’ के दिसंबर, 1915 के अंक में उमा नेहरू लिख रही थीं कि पश्चिम के वर्तमान समाज में स्त्रियों की स्वतंत्रता और विद्वता तथा उस राजनीतिक आंदोलन को देखकर, जो वहां के स्त्री समाज में उपस्थित है, हमारे देश के निवासी बहुधा भयभीत हो जाते हैं.

‘स्त्री-दर्पण’ का प्रकाशन है ऐतिहासिक घटना

लगभग सौ वर्षों के अंतराल के बाद कवि विमल कुमार अरविंद कुमार के नाम से संपादकीय लिखते हुए आज ‘स्त्री-दर्पण’ की जरूरत पर कोई रोशनी नहीं डालते. सविता सिंह ‘स्त्री-दर्पण’ के प्रकाशन को ऐतिहासिक घटना बताती हैं. वर्तमान अंक को गीतांजलि श्री और उनके बुकर प्राप्त ‘रेत समाधि’ के सम्मान स्वरूप विशेषांक की तरह निकाला गया है. गीतांजलि श्री ‘रेत समाधि’ के बारे में कहती हैं कि इस किस्से में दो औरतें थीं. उनमें से एक छोटी होती गयी और एक बड़ी. सच यही है कि यह ताजगी भरी भाषा और नया शिल्प अन्यत्र उपलब्ध नहीं है. अशोक वाजपेयी भी कहते हैं कि इस उपन्यास की भाषा स्वयं लगभग एक चरित्र है, वह कोई जिद्दी अभिव्यक्ति या बखान नहीं है.

भाषा और शिल्प के लिए ख्यात प्रत्यक्षा रेखांकित करती हैं कि गीतांजलि एक किस्म के डीटैच्ड ठहराव से लिखती हैं. बहुत गहरे डूब कर, बहुत मुहब्बत से भर कर, पूर्णता की सतत तलाश में और अपने लिखे के प्रति निर्मम होकर अपनी दुनिया को तराशती हैं. विपिन चौधरी, हर्षबाला शर्मा और सपना सिंह के लेख भी सामयिक है. बीच बहस में विषय ऑर्गेज्म है, जिस पर आउटलुक पत्रिका ने ‘देह का हक’ शीर्षक से हाल भी अंक निकाला था. प्रगति सक्सेना ऑर्गेज्म के विभिन्न पहलुओं को समझने की कोशिश करती हैं, वहीं अणुशक्ति सिंह अपने लेख में ऑर्गेज्म को लेकर वाजिब सवाल उठाते हुए निष्कर्ष पर पहुंचती हैं कि यह समस्या वैश्विक है. फर्क केवल इतना है कि वैश्विक स्तर पर अब प्लेजर को पहचान मिल रही है. यह केवल पुरुषों के लिए केंद्रित नहीं रह गया है. भारत में सफर अभी लंबा है.

सत्यजित राय के सिनेमा के स्त्री-चरित्र को लेकर जवरीमल्ल पारख का लेख और लेखिकाओं के आत्मकथाओं पर संगीता मौर्य का महत्वपूर्ण आलेख है. सविता सिंह के कविता संग्रह पर सुजाता की और मधु कांकरिया के नये उपन्यास पर उर्मिला शिरीष की समीक्षा है. तेजी ग्रोवर की कविता को पढ़ना मनुष्यता की उदात्त भावना की ओर जाना है. इनके साथ बंगला कवयित्रियों के अनुवाद भी प्रकाशित हैं. यह अंक शिवपूजन सहाय-बच्चन देवी को समर्पित कर संपादक के कविमन की इच्छा शायद यही है कि ‘स्त्री-दर्पण’ स्त्री स्वातंत्र्य के क्षेत्र में नवजागरण लाए.

स्त्री-दर्पणः स्त्री विमर्श का नया मंच / अगस्त-अक्तूबर 2022 / संपादकः अरविंद कुमार और सविता सिंह / पता: सेक्टर-13,प्लॉट-1016, वसुंधरा, गाजियाबाद- 201012 (उत्तर प्रदेश).

मनोज मोहन

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