सीआईपी कांके को जल्द मिलेगा नया ओपीडी भवन, निदेशक बासुदेव दास ने स्थापना दिवस पर की घोषणा
रांची के कांके स्थित सीआईपी के 106ठे स्थापना दिवस पर निदेशक प्रो (डॉ) बासुदेव दास ने बड़ी घोषणा की. कहा कि सीआईपी में जल्द ही एक विशाल भवन का निर्माण होगा, जिसमें ओपीडी की सुविधा के साथ-साथ 500 बेड का अस्पताल होगा. इसमें न्यूरोसर्जरी की भी सुविधा होगी.
झारखंड की राजधानी रांची के कांके स्थित केंद्रीय मनश्चिकित्सा संस्थान के 106ठे स्थापना दिवस पर सीआईपी के निदेशक प्रो (डॉ) बासुदेव दास ने बड़ी घोषणा की. बुधवार (17 मई 2023) को आयोजित स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए डॉ दास ने कहा कि सीआईपी कांके में जल्द ही एक विशाल भवन का निर्माण होगा, जिसमें ओपीडी की सुविधा के साथ-साथ 500 बेड का अस्पताल होगा. इसमें न्यूरोसर्जरी की भी सुविधा होगी. इसके तैयार हो जाने के बाद झारखंड, बिहार, बंगाल के लोगों को दक्षिण भारत के वेल्लोर या बेंगलुरु जाने की जरूरत नहीं होगी.
सीआईपी कांके में सीएमईसीआईपी कांके परिसर में आयोजित मुख्य समारोह के उद्घाटन सत्र के बाद ‘ग्लोबलाइजेशन एंड मेंटल हेल्थ मार्चिंग थ्रू द जी20 लीडरशिप’ पर एक सीएमई का आयोजन किया गया. इसमें डॉ संजय कुमार मुंडा ने वैश्वीकरण के इस युग में पिछड़े समुदाय के मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health of Marginalised Communities in The Era of Globalization) पर अपने विचार रखे.
सीआईपी रांची के टीचिंग ब्लॉक में स्थित आरबी डेविस हॉल में डॉ मुंडा ने ग्लोबलाइजेशन की वजह से अलग-अलग समुदायों, वर्गों और समूहों की चुनौतियों के बारे में बताया. साथ ही यह भी बताया कि इन चुनौतियों से कैसे निबटा जा सकता है. अपने संबोधन में उन्होंने पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक पिछड़ेपन और उसके असर के बारे में भी विस्तार से बताया. उन्होंने ग्लोबलाइजेशन के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्षों पर प्रकाश डाला.
इन वर्गों को वैश्वीकरण ने सबसे ज्यादा प्रभावित कियाडॉ मुंडा ने कहा कि महिलाओं, नि:शक्तों, बुजुर्गों और जातीय समूहों को वैश्वीकरण ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है. इन्हें इनके अधिकार नहीं मिलते. इसकी वजह से इनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है. इन विषयों पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता. यही वजह है कि ह्यूमन डेवलपमेंट के मामले में हर तीसरा आदमी आज भी पिछड़ा है.
एलजीबीटीक्यू और मानसिक स्वास्थ्य : ग्लोबल से लोकलसीआईपी कांके के एलुमनाई डॉ निखिल कुमार ने ‘एलजीबीटीक्यू और मानसिक स्वास्थ्य : ग्लोबल से लोकल’ (LGBTQ And Mental Health From Global to Local) विषय पर विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने साफ-साफ कहा कि एलजीबीटीक्यू कोई मानसिक विकार नहीं है. यह लोगों की इच्छा है और अब भारत में भी इसे कानूनी मान्यता देने की बात चल रही है.
एलजीबीटीक्यू में सबसे ज्यादा 83 फीसदी लोग हेटेरोसेक्सुअलडॉ निखिल ने कहा कि एलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी में सबसे ज्यादा 83 फीसदी लोग हेटेरोसेक्सुअल हैं. 9 फीसदी बाइसेक्सुअसल, 2 फीसदी ट्रांससेक्सुअल और 3 फीसदी लेस्बियन या गे हैं. 2 फीसदी एसेक्सुअल और 1 फीसदी पैनसेक्सुअल हैं. हालांकि डॉ निखिल ने कहा कि यह सटीक आंकड़ा नहीं है, क्योंकि इस विषय पर कई मत हैं. समाज में कई बार इन्हें मान्यता नहीं मिलती.
आम लोगों की तुलना में एलजीबीटीक्यू में मानसिक परेशानी ज्यादाउन्होंने बताया कि हेटेरोसेक्सुअल पुरुष या महिला की तुलना में एलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी के लोगों को मानसिक परेशानी होने का खतरा ज्यादा रहता है. 200 फीसदी तक. यानी अगर हेटेरोसेक्सुअल पुरुष या महिला की संख्या 100 है, तो एलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी के 200 लोगों में मानसिक परेशानी देखी जा सकती है.
58.7 फीसदी महिला बाइसेक्सुअल में दिखता है मूड डिसऑर्डरडॉ निखिल कुमार ने बताया कि बाइसेक्सुअल के रूप में चिह्नित 58.7 फीसदी महिलाओं में मूड डिसऑर्डर की संभावना होती है, जबकि लेस्बियन में 44.4 फीसदी और हेटेरोसेक्सुअल में 30.3 फीसदी महिलाओं में मूड से संबंधित समस्या होने की आशंका रहती है. एंग्जाइटी डिसऑर्डर की बात करें, तो 57.8 फीसदी बाइसेक्सुअल महिला, 40.8 फीसदी लेस्बियन और 31.3 फीसदी हेटेरोसेक्सुअल महिलाओं के इसकी चपेट में आने की आशंका बनी रहती है.
एलजीबीटीक्यू में एंग्जाइटी और डिप्रेशनइसी तरह अगर पुरुषों की बात करें, तो बाइसेक्सुअल पुरुषों में 36.9 फीसदी को मूड डिसऑर्डर हो सकता है. 42.3 फीसदी गे और 19.8 फीसदी हेटेरोसेक्सुअल पुरुषों में मूड डिसऑर्डर की आशंका बनी रहती है. 38.7 फीसदी बाइसेक्सुअल, 41.2 फीसदी गे और 18.6 फीसदी हेटेरोसेक्सुअल पुरुषों को एंग्जाइटी डिसऑर्डर का खतरा बना रहता है. डॉ निखिल ने बताया कि एलजीबीटी कम्यूनिटी के युवाओं में से अधिकतर में एंग्जाइटी और डिप्रेशन के लक्षण देखे गये.
Also Read: PHOTO: यूरोपियन मेंटल हॉस्पिटल कांके से सीआईपी तक का सफर, 106ठे स्थापना दिवस पर देखें अनदेखी तस्वीरें एलजीबीटीक्यू में मानसिक समस्या ज्यादाडॉ निखिल ने यह भी बताया कि एलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी के युवाओं को मेंटल हेल्थ केयर की जरूरत थी, लेकिन उन्हें इसकी सुविधा नहीं मिली. इसके 10 कारण भी डॉ निखिल ने बताये, जिसमें उसे गलत समझे जाने का भय शामिल है. उन्होंने यह भी बताया कि रिसर्च बताते हैं कि आम लोगों की तुलना में एलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी में आत्महत्या की दर 3 गुणा अधिक है. मेंटल हेल्थ की समस्या 2 गुणा, एंग्जाइटी की समस्या 2.4 गुणा होती है. मादक द्रव्यों का सेवन करने में भी ये आम लोगों से 100 फीसदी आगे हैं. यानी डबल.
इंफाल के लेस्बियन और गे की मानसिक स्थिति का विवरणडॉ निखिल ने जो आंकड़े पेश किये, वो चौंकाने वाले हैं. उन्होंने इंफाल के 12 लेस्बियन और 20 गे की मानसिक स्थिति का विवरण पेश किया. उन्होंने बताया कि इन लोगों में 25 फीसदी डिप्रेशन में हैं. 18.7 फीसदी पहले डिप्रेशन में रह चुके हैं. 6.2 फीसदी को डिस्थीमिया है. बड़ी संख्या में लोगों में आत्महत्या के विचार आते हैं. 9.4 फीसदी लो रिस्क जोन में हैं, 9.4 फीसदी लोग मॉडरेट जोन में, लेकिन 62 फीसदी लोगों में इसका खतरा बहुत ज्यादा है.
15.6 फीसदी लोगों ने की आत्महत्या की कोशिशडॉ निखिल ने इंफाल के गे और लेस्बियन की जो तस्वीर पेश की, उसमें बताया कि 15.6 फीसदी लोग आत्महत्या की कोशिश कर चुके हैं. 62.5 फीसदी लोगों ने शराब या अन्य किसी नशीले पदार्थ का सेवन शुरू कर दिया है. 31.25 फीसदी लोग किसी न किसी व्यक्ति पर निर्भर हैं, जबकि 46.8 फीसदी लोगों ने मानसिक परेशानी से बचने की कोशिश में ड्रग्स की बुरी लत लगा ली है.
Also Read: सीआईपी कांके के 106वें स्थापना दिवस समारोह में शामिल होंगे देश-विदेश के 150 डॉक्टर, दिखेगा जी-20 कनेक्शन गुजरात में एलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी के 70 फीसदी लोग डिप्रेशन मेंअगर बात गुजरात के बड़ोदरा शहर के 33 एलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी के सदस्यों की स्थिति की करें, तो पायेंगे कि इनमें से 70 फीसदी डिप्रेशन में हैं. 15 फीसदी के मन में आत्महत्या के विचार आते हैं और 45 फीसदी लोगों ने या तो शराब का सेवन करना शुरू कर दिया है या तंबाकू चबाने लगे हैं.
नीदरलैंड ने सबसे पहले दी समलिंगी शादी को मान्यताडॉ निखिल कुमार ने एलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी को लेकर दुनिया भर में कैसा नजरिया है, उसके बारे में भी बताया. उन्होंने बताया कि नीदरलैंड पहला देश बना, जिसने समान लिंग के दो लोगों को शादी करने की अनुमति दी. यानी सेम सेक्स मैरेज को मान्यता दी. इसके बाद अब तक 32 देश ऐसा कर चुके हैं. भारत में अब तक इस पर कानून नहीं बना है और इस पर व्यापक बहस जारी है.
24 देशों ने एलजीबीटीक्यू को थर्ड जेंडर की मान्यता दीविश्व के 24 देशों ने एलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी के लोगों को थर्ड जेंडर की मान्यता दे दी है, जबकि 133 देशों ने अपने यहां होमोसेक्सुआलिटी को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है. 64 देशों ने तो बाकायदा इसका कानून बना दिया है. 34 ऐसे देश भी हैं, जो समान लिंग वाले लोगों को पार्टनर के रूप में मंजूरी दे चुका है.
Also Read: मानसिक रोग क्यों छिपाते हैं लोग? इलाज में देरी से होते हैं कई नुकसान, बोले सीआईपी के निदेशक डॉ बासुदेव दास भारत में एलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी के लिए उठाये जा रहे कई कदमएलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी के लिए भारत सरकार की ओर से उठाये गये कदम के बारे में भी डॉ निखिल ने बताया. उन्होंने बताया कि नालसा की मदद से ट्रांसजेंडर, इंटरसेक्स, ट्रांसमैन और ट्रांसवूमन के लिए ट्रांसजेंडर पर्सन एक्ट 2019 पर काम शुरू हुआ. तब से कई और काम हुए. इसमें ट्रांसजेंडर पर्सन रूल 2020, नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन के अलावा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत स्माइल (SMILE) कार्यक्रम की शुरुआत की गयी है, जिससे एलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी की समस्याएं कुछ कम हो सकती हैं.
मां-बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य में वैश्विक रुझान : क्या भारत तैयार है?डॉ निखिल कुमार के बाद डॉ मालविका पारीख ने ‘मां-बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य में वैश्विक रुझान : क्या भारत तैयार है?’ (Global Trends in Mother-Baby Mental Well-Being: Is India Prepared?) विषय पर अपने विचार रखे. उन्होंने एक महिला के गर्भधारण से लेकर उसके मां बनने और उसके बाद की उसकी मानसिक स्थित के बारे में सूक्ष्मता से जानकारी दी.
मां बनने वाली महिला पर होता है हमेशा खुश दिखने का दबावडॉ मालविका ने कहा कि मां बनने वाली महिला के शरीर में कई तरह के हार्मोनल बदलाव होते हैं. 9 महीने तक उस पर इस बात का दबाव रहता है कि वह हमेशा खुश दिखे. मां बनने के बाद भी लोग यही चाहते हैं कि वह खुश दिखे. लेकिन, उसके अंदर कई तरह के परिवर्तन होते रहते हैं, जिससे उसकी मानसिक स्थिति में लगातार बदलाव आता रहता है. इस पर कोई ध्यान नहीं देता. उन्होंने कहा कि भारत में 9 से 35 फीसदी महिलाओं के डिप्रेशन में जाने का खतरा रहता है.
Also Read: Alert! सबसे बड़े नशे की गिरफ्त में युवा, अभी नहीं संभले तो होगी मुश्किल, सीआईपी रांची के डायरेक्टर की चेतावनी गर्भवती महिला का पूरा ख्याल रखता है परिवार, मां बनने के बाद नहींडॉ मालविका ने कहा कि जब एक महिला गर्भधारण करती है, तो पूरा परिवार उसका ख्याल रखने लगता है. उसके भोजन से लेकर अन्य चीजों का. लेकिन, जब वह बच्चे को जन्म देती है, तो पूरे परिवार का ध्यान मां से हटकर बच्चे के पालन-पोषण पर केंद्रित हो जाता है. इतना ही नहीं, मां बनने के बाद महिला खुद भी अपना ख्याल रखना भूल जाती है. वह खुद भी बच्चे की चिंता ज्यादा करने लगती है.
अस्पताल में प्रसव के समय होता है महिला के साथ बुरा सलूकउन्होंने कहा कि गर्भावस्था के दौरान, प्रसव के दौरान और प्रसव के बाद उनकी मानसिक स्थिति अलग-अलग होती है. परिवार में उसकी खूब देख-रेख होती है. लेकिन, जब वह अस्पताल में प्रसव के लिए पहुंचती है, तो उसके साथ मेडिकल स्टाफ कई बार बहुत बुरा सलूक करते हैं, जो उसे मानसिक रूप से परेशान करते हैं. यह उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि गर्भधारण से पहले और प्रसव के बाद तक के लिए किसी को तैयार करना होगा. भारत में अभी ऐसी स्थिति नहीं आयी है.
एंडॉक्सिफेन के क्लिनिकल ट्रायल के रिजल्ट पर चर्चातीन विषयों पर गहन चर्चा के बाद सीआईपी कांके में एक दवा पर चल रहे क्लिनिकल ट्रायल के रिजल्ट के बारे में भी बताया गया. ‘एंडॉक्सिफेन : फ्रॉम कॉर्टेक्स टू क्लिनिक’ विषयक सत्र में डॉ पूजा शर्मा और डॉ चंद्रमौलि रॉय ने बताया कि ‘एंडॉक्सिफेन’ नाम की दवा मूड बदलने में कितनी कारगर है. यह दवा 24 घंटे के भीतर असर दिखाता है और गंभीर मानसिक रोगों में बेहद प्रभावी है.
रांची विवि के वाइस चांसलर मुख्य अतिथि, आईआईएम के डायरेक्टर विशिष्ट अतिथिइससे पहले, सुबह उद्घाटन समारोह का आयोजन किया गया. मुख्य समारोह के मुख्य अतिथि रांची विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर डॉ अजित कुमार सिन्हा और विशिष्ट अतिथि आईआईएम रांची के डायरेक्टर प्रो (डॉ) दीपक श्रीवास्तव थे. इनके अलावा कई और अतिथि भी मंच पर मौजूद थे. डॉ दीपक श्रीवास्तव ने मानसिक और सामाजिक बेहतरी के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाने और बेहतर प्रबंधन पर बल दिया. वहीं, डॉ अजित कुमार सिन्हा ने वैश्वीकरण के इस दौर में विद्यार्थियों में आ रहे मानसिक बदलाव के विभिन्न आयामों के बारे में बताया.
500 बेड का नया अस्पताल बनेगा, होगी ओपीडी की सुविधासीआईपी के निदेशक डॉ बासुदेव दास ने स्वागत भाषण दिया. इस अवसर पर उन्होंने बताया कि सीआईपी कांके में 500 बेड का नया अस्पताल बनने जा रहा है, जिसमें न्यूरोसर्जरी समेत कई सुविधाएं होंगी. अलग से ओपीडी भी होगा. उन्होंने अस्पताल की अब तक हासिल की गयी उपलब्धियों के साथ-साथ भविष्य में क्या करना है, उसके बारे में भी बताया.
कर्मचारियों को दिये गये अलग-अलग अवॉर्डकार्यक्रम में सीआईपी के पूर्व निदेशक डॉ डी राम, सीआईपी के प्रशासनिक पदाधिकारी डॉ अविनाश शर्मा, सीआईपी एलुमनाई के अध्यक्ष डॉ दीपांजन भट्टाचार्य और मैट्रॉन स्वर्णबाला सोरन भी मौजूद थे. इन दोनों ने सीआईपी बुलेटिन 2023 और एलुमनाई न्यूजलेटर 2023 का लोकार्पण किया. सीआईपी स्थापना दिवस पर यहां के कर्मचारियों को अलग-अलग अवॉर्ड से सम्मानित भी किया गया. धन्यवाद ज्ञापन डॉ अविनाश शर्मा ने किया.
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