रांची : न्यायसंगत, सस्ती और गुणवत्तायुक्त स्वास्थ्य सेवाएं सभी लोगों तक पहुंचाना ही एनएचएम का लक्ष्य है. हालांकि झारखंड में परियोजना निदेशकों के बार-बार तबादले से योजनएं प्रभावित हुई हैं. कोरोना संकट के दो साल में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन झारखंड (जेएनएचएम) में अब तक पांच परियोजना निदेशकों का तबादला हो चुका है. छठे निदेशक के रूप में डॉ भुवनेश प्रताप सिंह को जिम्मेदारी मिली है.
वह बतौर प्रभारी निदेशक अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इधर, लगातार तबादलों के कारण कोरोना काल में सेवा देनेवाली देश की बड़ी कंपनियों को करोड़ों रुपये का भुगतान नहीं हो पाया है. इस कारण अब कंपनियां सप्लायरों को दो टूक जवाब देने लगी हैं कि वह झारखंड में सेवाएं नहीं दे सकती हैं. ऐसे में स्वास्थ्य सेवाओं पर असर पड़ सकता है.
तबादला के बाद जिस भी नये परियोजना निदेशक ने योगदान दिया, उसने पुरानी फाइलों को किनारे कर दिया. नतीजा यह हुआ कि दो साल गुजरने के बाद भी फाइलें अभी भी पड़ी हुई हैं. राज्य के एक बड़े सप्लायर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि कोरोना काल में जिन कंपनियों को कार्यादेश दिया गया,
उन्होंने बकायदा निविदा से चयनित होने के बाद जांच किट, दवा और मशीनों की आपूर्ति की. उनको तय समय सीमा में पैसा भुगतान का आश्वासन मिला था. वहीं पैसा का भुगतान नहीं होने से नयी निविदा भी आमंत्रित नहीं हो पा रही है. कुछ निविदाओं को आमंत्रित भी किया जाता है, तो उनमें कंपनियां भाग नहीं ले रही हैं.
स्वास्थ्य सेवाओं में कई कंपनियों द्वारा प्रोजेक्ट पर काम किया जाता है, लेकिन अब वह काम नहीं कर रही हैं. प्रोजेक्ट बीटा थैलेसिमिया (गर्भवती महिलाओं की जांच) की जांच में काम करने वाली कंपनी ने काम नहीं करने से अवगत कराया है. इसके अलावा कई प्रोजेक्ट पर काम लटका हुआ है.
डॉ शैलेश कुमार चौरसिया
रविशंकर शुक्ला
उमाशंकर सिंह
रमेश घोलप
आदित्य कुमार आनंद
कोरोना की जांच मशीन
कोरोना की दवाएं
रेमडेसिवीर इंजेक्शन
एंटीजन जांच किट
आरएनए एस्ट्रक्शन किट
आरटीपीसीआर किट
कंपनियों का पैसा फंसा है, तो नियमानुसार जांच के बाद ही भुगतान होगा. जल्दबाजी में पैसों का भुगतान नहीं हो सकता है. जिन कंपनियों को जल्दीबाजी है, वह जा सकती हैं. एनएचएम में काम को स्ट्रीम लाइन पर लाया जा रहा है.
भुवनेश प्रताप सिंह, एमडी एनएचएम