Loading election data...

आजादी की लड़ाई में झारखंड के वीर सपूतों नीलांबर-पीतांबर ने अंग्रेजों के कर दिए थे दांत खट्टे

नीलांबर-पीतांबर के विद्रोह को कुचलने के लिए डाल्टन ने एक बड़ी सेना लेकर 27 जनवरी, 1858 में पलामू किले पर आक्रमण कर दिया. अंग्रेजी सेना ने पलामू किले को तीनों ओर से घेर कर तोपों से अंधाधुंध गोले दागे.

By Prabhat Khabar News Desk | January 10, 2024 4:48 PM
an image

देश की आजादी की लड़ाई में वीर शहीद नीलांबर-पीतांबर दोनों भाइयों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है. वे पलामू के दो महान स्वतंत्रता सेनानी थे. जिन्होंने 1857 ई की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने में अहम भूमिका निभायी. नीलांबर-पीतांबर शाही भोगता का जन्म 10 जनवरी 1823 ई को गढ़वा जिला के भंडरिया स्थित चेमू सनेया गांव में हुआ था. नीलांबर-पीतांबर दोनों सहोदर भाई थे. इनके पिता का नाम चेमू सिंह भोगता था.

भोगता-खरवार का बनाया शाक्तिशाली संगठन

अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के लिए दोनों भाइयों ने भोगता तथा खरवार समुदाय को मिलाकर एक शक्तिशाली संगठन बनाया. पलामू जिला में चेरो तथा खरवार जाति की प्रधानता है. नीलांबर-पीतांबर ने अपनी शक्ति को मजबूत करने के लिए चेरो के जागीरदारों से दोस्ती की. उन्हें उनका अधिकार वापस दिलाने की शर्त पर समर्थन प्राप्त किया.

Also Read: शहीद नीलांबर-पीतांबर के गांव का होगा कायाकल्प, मिलेगी हर सुविधा, बोले मंत्री मिथिलेश ठाकुर

21 अक्टूबर को अंग्रेजों के कैंप पर किया आक्रमण

21 अक्तूबर 1857 ई को दोनों भाइयों के नेतृत्व में चैनपुर, शाहपुर तथा लेस्लीगंज स्थित अंग्रेजों के कैंप पर आक्रमण किया. जहां उन्हें काफी सफलता मिलली. इसी बीच अंग्रेजी सरकार को इन दोनों भाइयों के नेतृत्व की सूचना मिली. जिसके बाद उनका प्रतिरोध करने के लिए मेजर कोर्टर के नेतृत्व में आंदोलन को दबाने के लिए एक सैनिक टुकड़ी को भेजा गया. बाद में अंग्रेज सैन्य अधिकारी ग्राहम को भी सैनिक टुकड़ी के सहयोग के लिए भेजा गया. दोनों भाइयों ने लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ गोलबंद किया. नीलांबर-पीतांबर के विद्रोह को कुचलने के लिए डाल्टन ने एक बड़ी सेना लेकर 27 जनवरी, 1858 में पलामू किले पर आक्रमण कर दिया. अंग्रेजी सेना ने पलामू किले को तीनों ओर से घेर कर तोपों से अंधाधुंध गोले दागे. इससे उसमें छिपे नीलांबर-पीतांबर और उनके साथी किसी तरह घने जंगल के रास्ते भागने में सफल रहे थे. यद्यपि उन्हें भारी मात्रा में अपने हथियार और रसद छोड़ कर भागना पड़ा था. इस दौरान अंग्रेजों को पलामू किले से बाबू कुंवर सिंह के भाई अमर सिंह का लिखा पत्र एक थैले से मिला, जिसमें उनकी ओर से विद्रोहियों की जान गयी थी, जबकि एकमात्र अंग्रेज सैनिक मारा गया था और दो सैनिक घायल हुए थे. इसके दूसरे दिन 28 जनवरी, 1858 को डाल्टन के संदेह के आधार पर मनिका के निकट टिकैत उनारस सिंह और उनके दीवान शेख भिखारी को विद्रोह में शामिल रहने के अभियोग में पकड़ लिया गया था.

डाल्टन ने चेमू सनेया को घेरा

13 फरवरी 1858 को पहली बार डाल्टन अपने सैनिकों के साथ नीलांबर-पीतांबर के गांव चेमू सनेया पंहुचा. उस समय उसने चेमू और सनेया दोनों गांवों को तीनों ओर से घेर कर मजबूत मोर्चाबंदी की, लेकिन इस दौरान भी अंग्रेज सैनिकों को कड़ा विरोध झेलना पड़ा. पलामू गजेटियर में इस बात का उल्लेख है कि नीलांबर-पीतांबर को पकड़ने के लिए डाल्टन को लगातार 23 फरवरी तक कोयल नदी के किनारे चेमू गांव में डेरा डालना पड़ा था, लेकिन इसके बाद भी वह दोनों भाइयों और उनके साथियों को पकड़ने में विफल रहा. इस बीच डाल्टन काफी थक चुका था. इसके कारण वह डालटनगंज लौटने को विवश हो गया. इस दौरान नीलांबर-पीतांबर और उनके साथियों को भी राशन-पानी खत्म हो जाने व लगातार लड़ाई में थक जाने की वजह से पहाड़ियों की ओर भाग कर शरण लेनी पड़ी थी. 10 दिनों से लगातार अभियान के दौरान विद्रोहियों के हमले में अंग्रेज सैनिकों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था. डाल्टन के अनेक सैनिक मारे गये थे और दर्जनों सैनिक घायल हुए थे. रामगढ़ अश्वसेना का एक दफादार ने चेमू गांव को जलाने का आदेश दे दिया. 22 फरवरी को डाल्टन के लौटने के पूर्व चेमू गांव के घर में तोड़-फोड़ करते हुए आग लगा कर पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया. इसके दूसरे दिन 23 फरवरी को इसी तरह सनेया गांव को भी नष्ट कर दिया गया. यहां तक कि ग्रामीणों के अनाज और उनके मवेशियों पर भी अंग्रेज सैनिकों ने कब्जा कर लिया.

Also Read: नीलांबर-पीतांबर शहादत दिवस आज, झारखंड के CM हेमंत सोरेन समेत कई मंत्रियों ने दी श्रद्धांजलि

भोज के अवसर पर पकड़े गये दोनों भाई

अंग्रेजी सरकार दोनों भाइयों को पकड़ने के लिए कई बार कोशिश की, लेकिन हमेशा विफल रहे. लेकिन अंत में कर्नल डाल्टन ने दोनों भाइयों को एक भोज के अवसर पर पकड़ लिया. उनके खिलाफ एक संक्षिप्त मुकदमा चलाकर उन्हें फांसी पर लटका दिया गया. 28 मार्च 1859 को उन्हें फांसी दी गयी.बाद में दोनों भाइयों की संपत्ति को भी अंग्रेजी हुकूमत ने जब्त कर ली. महज 35 साल की उम्र में दोनों भाइयों ने भारत की स्वतंत्रता के आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंककर अपनी प्राणों की आहुति दे दी.

Also Read: वीर शहीद नीलांबर-पीतांबर को भूल गयी केंद्र और राज्य सरकार, माले विधायक बोले- उनकी धरोहर को बचाना जरूरी

Exit mobile version