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सूदखोरी और सामाजिक अत्याचार के खिलाफ निर्मल महतो ने लड़ी लड़ाई तो कर दिया गया था हमला

शहीद निर्मल महतो के संघर्ष को याद करती हुईं उनकी बड़ी बहन शांतिबाला महतो ने बताया कि 80 के दशक में सूदखोरी व अन्य सामाजिक अत्याचार, शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद करने पर उन पर हमला किया गया था

झारखंड के मसीहा शहीद निर्मल महतो का मंगलवार को समूचे राज्य में शहादत दिवस मनाया जायेगा. वे सूदखोरी व अत्याचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने के साथ अलग झारखंड राज्य के लिए हमेशा संघर्षरत रहे, जिससे आम जनता के दिलों में हमेशा बसे रहेंगे. आज निर्मल दा के गांव उलियान में बतौर मुख्य अतिथि दिशोर गुरु शिबू सोरेन, राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, कैबिनेट के कई मंत्री, सांसद, विधायक समेत झारखंड, बंगाल व ओडिशा के नेता व कार्यकर्ता उन्हें पूरे सम्मान के साथ श्रद्धांजलि देने के लिए आ रहे हैं. उनके संघर्ष से जुड़ी यादों को ताजा करती लाइफ@जमशेदपुर के लिए कुमार आनंद की रिपोर्ट.

घर से बुला कर किया गया था हमला

शहीद निर्मल महतो के संघर्ष को याद करती हुईं उनकी बड़ी बहन शांतिबाला महतो ने बताया कि 80 के दशक में सूदखोरी व अन्य सामाजिक अत्याचार, शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद करने पर उन पर हमला किया गया था. टुसू पर्व के एक दिन पूर्व 13 जनवरी को घर से बुलाकर कदमा शास्त्रीनगर क्वार्टर में निर्मल महतो पर भुजाली से वार में उनकी बांह, पेट व पीठ में गहरे जख्म हो गये थे, लेकिन वह किसी तरह भाग कर बच गये.

भागने के क्रम में घायल अवस्था में बेहोश भी हो गये थे. घटना के बाद उन्हें पांचवें नंबर के भाई सुधीर महतो व चचेरा भाई चीनू महतो ने पहले साइकिल से उठाकर अस्पताल ले जाना चाहा, लेकिन निर्मल के बेहोश होने के कारण किराये का टैक्सी लेकर टीएमएच ले गये. करीब एक माह तक टीएमएच में इलाज कराने के बाद उनकी जान बची थी. अस्पताल से लौटने के बाद उन्होंने पुन: सूदखोरी के खिलाफ संघर्ष शुरू किया. यह संघर्ष उनके मरने के दिन यानी 8 अगस्त 1987 तक जारी रहा.

सूदखोरी के खिलाफ कानून सच्ची श्रद्धांजलि

अलग झारखंड राज्य बनने के 20 वर्ष बाद हेमंत सोरेन सरकार द्वारा सूदखोरी के खिलाफ कानून बनाकर गरीबों को सुरक्षा देने का काम करने पर खुशी जताते हुए कहा कि यह उनके भाई को सच्ची श्रद्धांजलि है. कानून बनने से कोई गरीब, मजदूर, कामगारों पर सूदखोर किसी प्रकार का कोई शोषण व अत्याचार नहीं कर सकेंगे.

उलियान ही नहीं, जमशेदपुर सहित कई जगहों से लोग बुलाते थे

निर्मल महतो सत्य व न्याय प्रिय थे. उलियान गांव में किसी भी घर, परिवार, समाज में झगड़ा, विवाद होने पर उन्हें लोग सम्मानपूर्वक बुलाते थे. अधिकांश समस्या को बैठकर बातचीत के माध्यम से सुलझाने का काम करते थे. न्यायप्रिय छवि के कारण कम समय में जमशेदपुर ही नहीं, बल्कि बंगाल, ओडिशा में लोकप्रिय हो गये थे. राजनीति स्तर के अलावा सामाजिक स्तर के अधिकांश कार्यक्रम, सभा में बढ़कर हिस्सा लेते थे.

किशोरावस्था में बेलबॉटम व बाद में कुर्ता-पायजामा पहनते थे

बड़ी बहन ने बताया कि आठ भाइयों में निर्मल महतो किशोरावस्था में अधिकांश समय बेलबॉटम व बाद में कुर्ता-पायजामा पहनना पसंद करते थे. जाड़े के दिनों में कुर्ता के ऊपर हमेशा साल ओढ़ते थे. पिता जब भी एक थान का कपड़ा सभी भाइयों व बहन के लिए लाते थे, तब निर्मल एक जैसा कपड़ा कभी नहीं पहनते थे. बाद में अपने लिए अलग कपड़ा लेकर ही शांत होते थे.

बचपन से ही सादा भोजन करते थे

निर्मल महतो बचपन से ही शाकाहारी खाना खाते थे. सब्जी में झाल बिल्कुल नहीं खाते थे. खाने में चावल, रोटी में गाय का घी हमेशा लेते थे. घर में उसके लिए सादा खाना बनाकर पहले रख दिया जाता था और घर में आने पर पूछकर दिया जाता था. एक बार गलती से झाल वाली सब्जी खाने में निर्मल बेहोश तक हो गये थे. फिर घर पर उन्हें कभी भी झाल सब्जी या झालवाली कोई चीज नहीं दी गयी.

निर्मल महतो की हत्या की खबर ने राज्य के लोगों को झकझोर दिया था

निर्मल महतो महज 37 वर्ष की उम्र में ही राजनीतिक क्षितिज के शीर्ष पर पहुंच गये थे. अचानक बिष्टुपुर चमरिया गेस्ट हाउस के समीप 8 अगस्त 1987 को निर्मल महतो की हत्या कर दी गयी. इस खबर ने लोगों को झकझोर दिया था. निर्मल को जानने व मानने वाले लोगों की स्थिति काटो तो खून नहीं वाली हो गयी थी. हत्या के दो दिन बाद 10 अगस्त 1987 को टीएमएच से उलियान उनके घर तक उन्हें देखने व श्रद्धांजलि देने वालों का जनसैलाब जमशेदपुर में अद्वितीय रहा था. उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि बड़ी संख्या में झारखंड के लोग अपने घरों में उनकी पूजा तक करते हैं.

-शैलेंद्र महतो, निर्मल महतो के साथी सह पूर्व सांसद, जमशेदपुर

निर्मल न किसी से गलत बात करते थे, न गलत सुनते और सहते थे

निर्मल में एक बात सबसे गौर करने वाली ये थी कि वह न गलत बात करते थे, न गलत किसी की सुनते-सहते थे. गलत के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार रहते थे. कहीं से कोई गलत करने की सूचना या शिकायत मिलने पर तुरंत वहां पहुंचकर गलत के खिलाफ संघर्ष करने से पीछे नहीं रहते थे. राजनीतिक क्षेत्र में ही नहीं, सामाजिक जीवन में कम समय में ही लोगों के दिलों में राज करने वाले निर्मल के दुर्लभ साथ को कभी भूल नहीं सकता हूं. निर्मल को जानने वाले उससे कभी दूर हो नहीं सकते हैं. यही कारण है कि निर्मल झारखंड के लोगों के दिलों में काबिज हैं. उनकी हत्या के बाद झारखंड अगल राज्य के आंदोलन में तेजी आयी थी. इसे राजनीतिक दृष्टिकोण में निर्णायाक मोड़ मानते हैं.

– कृष्णा मार्डी, निर्मल महतो के साथी सह पूर्व सांसद, सिंहभूम

कोविड काल में नहीं हुआ बड़ा आयोजन, इस बार होगा भव्य समारोह

कोविड महामारी को लेकर भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुपालन के कारण पिछले तीन वर्षों से शहीद निर्मल महतो का शहादत दिवस व जयंती समारोह का कार्यक्रम भव्य रूप से नहीं हो पा रहा था. इस बार कदमा उलियान में पूर्व की भांति शहादत दिवस पर मुख्य समारोह आयोजित किया गया है. इसमें श्रद्धांजलि व जनसभा भव्य रूप से होगा. इसमें राज्य सहित ओडिशा व बंगाल के लोग शामिल होंगे.

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